मेरे सास ससुर यहीं रहते हैं मेरा घर है यहां पर इसका क्या मतलब हुआ। सवाल यह है कि क्या राजनीतिक पार्टियों में यही टिकट का आधार होगा। ये बयान लोकल मीडिया के सामने कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ दे रहे हैं। कांग्रेस नेता गौरव वल्लभ इन दोनों उदयपुर में सक्रिय है और सुर्खियों में भी हैं।
दरअसल उनके उदयपुर से चुनाव लड़ने की संभावनाएं जताई जा रही है वह लगातार यहां पर मीडिया कर्मियों और समाज के लोगों से मुखातिब हो रहे हैं। यही कारण है कि उनके यहां से चुनाव लड़ने के कयासों की पुष्टि हो रही है। वे इन दिनों स्थानीय पत्रकारों के साथ हाईकोर्ट बेंच, आयड़ नदी के विकास, नगर निगम के मुद्दों पर बात कर रहे हैं।
सवाल यह भी है कि आखिर गौरव वल्लभ को यहां सक्रिय होने की हरी झंडी कहां से मिली है? क्या उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसी मिशन पर लगाया है या मेवाड़ का कोई और नेता सियासी गेम खेल रहा है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ का उदयपुर से जितना नाता नहीं रहा है, उससे ज्यादा पाली और अजमेर से है। वल्लभ ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पाली से ही पूरी की है। बहरहाल गौरव वल्लभ की उदयपुर में राजनीतिक सक्रियता के अपने मायने हैं। क्या गौरव वल्लभ के रूप में कांग्रेस भविष्य में नए नेता के रूप में देख रही है। क्या गौरव वल्लभ सचिन पायलट का भी विकल्प हो सकते हैं। ये सभी सवाल हैं जो भविष्य की गर्त में है।
बहरहाल उनके व्यक्तित्व को देखकर कई लोगों के पक्ष में खड़े हैं लेकिन उनका यह बयान मेरे यहां सास ससुर रहते हैं मेरा यहां पर घर है मैं यहां पर लोगों को जानता हूं मैं आप लोगों से लगातार मिलता हूं लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सब टिकट मिलने या चुनाव लड़ने के मापदंड है। इन बयानों के साथ-साथ वे यह भी बोल रहे हैं कि चुनाव में टिकट देने की एक प्रक्रिया है वह पार्टी तय करती है।
हालांकि कांग्रेस में बाहरी प्रत्याशी को लेकर लगातार विरोध हो रहा है कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक मंचों से आवाज भी उठाई है।
कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने गौरव वल्लभ की दावेदारी पर चर्चा में बताया कि अगर वे उदयपुर से चुनाव लड़ते हैं तो अच्छी बात है, लेकिन वे कांग्रेस के इस वक्त सबसे चर्चित प्रवक्ता हैं, ऐसे में क्या वे उदयपुर के और यहां के लोगों के साथ न्याय कर पाएंगे? क्योंकि उदयपुर से मुख्यमंत्री चुनने के बाद स्व. मोहनलाल सुखाडिया यहां के लोगों के बेहद करीब रहे। युवाओं को नौकरी दिलाने से लेकर ट्रांसफर तक लोग उनसे फोन पर करवा लेते थे। वहीं उदयपुर के लोकप्रिय विधायक व भाजपा सरकार में नंबर 2 रहे, गुलाबचंद कटारिया असम के राज्यपाल बनने के बाद भी लोगों के दिलों में बसे हैं। कार्यकर्ता उन्हें अब भी बाड़ी व घरों पर दावत पर बुलाकर दिल की बात बोल रहे हैं।
मेरी पर्सनल राय यह है कि उदयपुर में भाजपा व कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की दो पीढ़ी मौजूदा नेताओं के सीट छोड़ने के इंतजार में बूढ़ी हो चुकी है। कई लोग दुनिया को छोड़ कर चले गए। ऐसे में जरूरी है कि उदयपुर का हर नागरिक स्थानीय नेता के साथ खड़ा रहे। बाहरी को टिकट देने वाली पार्टी को हर कीमत पर सब सिखाना जरूरी है। सबक उनको भी सिखाया जाए जो ऐसे नेताओं की चापलूसी में दौड़ भाग कर रहे हैं।
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