
एक शादी, एक विस्फोट और एक साजिश
23 फरवरी 2018 की दोपहर, ओडिशा के बलांगीर ज़िले का पटनागढ़ शहर अचानक राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया। एक नवविवाहित जोड़े के घर में एक पार्सल बम विस्फोट हुआ, जिसमें दूल्हा सौम्य शेखर साहू और उसकी दादी की मौत हो गई, जबकि दुल्हन रीमा गंभीर रूप से घायल हो गई। यह कोई आम हादसा नहीं था—यह एक सुनियोजित हत्या थी, जिसमें एक शिक्षक, पूंजीलाल मेहेर, मास्टरमाइंड निकला। यह ‘वेडिंग बम’ केस भारत के सबसे सनसनीखेज क्राइम मामलों में से एक बन गया।
हसीन शुरुआत का दर्दनाक अंत
सौम्य शेखर साहू, एक युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर, हाल ही में शादी के बंधन में बंधे थे। उनकी शादी रीमा से 18 फरवरी को धूमधाम से हुई थी। शादी के बाद नवविवाहित दंपत्ति जब अपने नए जीवन की शुरुआत कर रहे थे, तभी एक पार्सल उनके लिए मौत का पैगाम लेकर आया। सौम्य ने जैसे ही उस पार्सल को खोला, उसमें विस्फोट हो गया। सौम्य की मौके पर ही मौत हो गई, उनकी दादी जेमामणि मेहेर ने भी दम तोड़ दिया, और रीमा अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने लगी।

हत्या की तह में ईर्ष्या
पूंजीलाल मेहेर, एक कॉलेज का पूर्व प्रिंसिपल और सौम्य की मां का सहकर्मी रह चुका था। प्रारंभ में इस वारदात के पीछे कोई स्पष्ट मकसद नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे पुलिस जांच आगे बढ़ी, ईर्ष्या और पेशेवर रंजिश की परतें खुलती गईं।
मेहेर को इस बात की खलिश थी कि सौम्य का परिवार सामाजिक रूप से ऊंचा उठ रहा था। खास तौर पर, सौम्य की मां के कारण उन्हें कॉलेज से हटना पड़ा था, जो उनके लिए अपमानजनक था। यह गहरी व्यक्तिगत रंजिश उन्हें इस कदर खाए जा रही थी कि उन्होंने एक निर्दोष युवक की हत्या की साजिश रच डाली।
साजिश की सुघड़ता : बम, पार्सल और जालसाज़ी
मेहेर ने दिवाली के दौरान पटाखों से गनपाउडर निकालकर देसी बम बनाया। उसने रायपुर जाकर एक फर्जी नाम ‘एस.के. शर्मा’ से पार्सल भेजा और सौम्य के घर के पते पर कुरियर कराया। ताकि खुद को संदेह से बचा सके, उसने जानबूझकर ट्रेन का टिकट नहीं खरीदा, अपना मोबाइल घर पर छोड़ दिया और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल किया जिससे वह सीसीटीवी की पकड़ में न आए।
इतना ही नहीं, मेहेर शादी समारोह और फिर सौम्य की अंतिम यात्रा में भी शरीक हुआ, जिससे वह खुद को मासूम साबित कर सके।
गुमनाम चिट्ठी और जांच की नई दिशा
पहले महीनों तक पुलिस के पास कोई ठोस सुराग नहीं था। लेकिन अप्रैल 2018 में, बलांगीर पुलिस अधीक्षक के पास एक गुमनाम चिट्ठी पहुंची जिसमें विस्फोट की साजिश का उल्लेख था। उसमें ‘एस.के. शर्मा’ की जगह ‘एस.के. सिन्हा’ लिखा गया था, जो कि पार्सल रसीद पर अंकित नाम से मेल खाता था।
यह सूक्ष्म अंतर बेहद अहम साबित हुआ। ओडिशा क्राइम ब्रांच के तत्कालीन प्रमुख अरुण बोथरा को शक हुआ कि यह चिट्ठी खुद आरोपी की लिखी हो सकती है जो पुलिस को गुमराह करना चाहता था। सौम्य की मां ने चिट्ठी की लिखावट को तुरंत पहचान लिया—वह पूंजीलाल की थी।
मनोवैज्ञानिक अपराध : जब अपराधी खुद गवाही देता है
मेहेर का अपराध धीरे-धीरे सामने आने लगा। शुरुआत में वह खुद को निर्दोष बताता रहा और चिट्ठी लिखने की बात से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उसे घेरा तो उसने कबूल किया कि उसने ही बम बनाया था और पार्सल भेजा था।
उसकी कुशलता इस बात में थी कि उसने कहीं भी कोई प्रत्यक्ष सुराग नहीं छोड़ा। उसके खिलाफ मामला पूरी तरह से परिस्थिति जन्य साक्ष्यों, फोरेंसिक जांच और उसकी मानसिक स्थिति के विश्लेषण पर आधारित था।
अदालत का फैसला : आजीवन कारावास और न्याय की जीत
मामले की सुनवाई बलांगीर ज़िले की अदालत में हुई, और 2025 में अदालत ने पूंजीलाल मेहेर को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश), 201 (सबूत नष्ट करना) और एक्सप्लोसिव एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत दोषी पाया।
उसे दो आजीवन कारावास, दो बार 10-10 साल की कैद और एक बार 7 साल की सजा सुनाई गई। साथ ही 1.7 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
सरकारी वकील चित्तरंजन कानूनगो के अनुसार, अदालत ने इस मामले को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ की श्रेणी में नहीं माना, लेकिन इसे एक जघन्य अपराध के रूप में स्वीकार किया।
पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया : न्याय या अधूरा संतोष?
सौम्य के माता-पिता ने अदालत के फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी। जहां उन्होंने न्याय मिलने पर संतोष जताया, वहीं उन्होंने यह भी कहा कि यदि मेहेर ऊपरी अदालत में अपील करता है तो वे भी जवाबी अपील करेंगे।
उनकी मां संयुक्ता साहू ने कहा, “हमने अपने बेटे को खोया है, कोई भी सजा उस पीड़ा की भरपाई नहीं कर सकती। लेकिन हमें खुशी है कि न्याय प्रणाली ने दोषी को सजा दी।”
जांच की सफलता : जब फोरेंसिक और बुद्धि ने जीत हासिल की
अरुण बोथरा और उनकी टीम ने इस मामले में बारीकियों पर ध्यान दिया। कोई चश्मदीद नहीं था, न ही सीधा सबूत—मामला पूरी तरह फोरेंसिक, टेलीफोन रिकॉर्ड, कुरियर कंपनी की रसीदें, और संदिग्ध की मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग पर टिका था।
बोथरा ने इस बारे में कहा था, “यह केस हमें यह सिखाता है कि इंसानी दिमाग कितना जटिल और घातक हो सकता है। तकनीक और धैर्य से हमने साजिशकर्ता को बेनकाब किया।”
मनोविज्ञान और अपराध : पूंजीलाल की मानसिक बनावट
मेहेर की प्रोफाइलिंग से पता चला कि वह आत्मकेंद्रित, अहंकारी और प्रतिशोधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने न केवल सौम्य और उसके परिवार को नुकसान पहुंचाया, बल्कि समाज को भी एक गहरे ज़ख्म से गुजरने पर मजबूर कर दिया।
उसकी अपराध योजना न केवल भयावह थी, बल्कि अत्यंत चतुराई से गढ़ी गई थी—यह दिखाता है कि कैसे एक शिक्षक जैसा पढ़ा-लिखा व्यक्ति, जो समाज में सम्मानित होता है, अपराधी बन सकता है।
एक दुखद घटना, लेकिन न्याय की मिसाल
‘वेडिंग बम’ केस भारत के सबसे दुर्लभ और पेचीदा आपराधिक मामलों में गिना जाएगा। इस मामले में न्याय प्रणाली, जांच एजेंसियों और फोरेंसिक विशेषज्ञों की सतर्कता की जितनी तारीफ की जाए कम है।
पूंजीलाल मेहेर को भले ही फांसी नहीं मिली, लेकिन आजीवन कारावास ने यह संदेश जरूर दिया कि समाज में ईर्ष्या, द्वेष और साज़िश की कोई जगह नहीं है।
यह केस हमें सिखाता है कि न्याय धीरे चलता है, लेकिन जब आता है, तो वह न केवल अपराधी को दंडित करता है बल्कि पीड़ितों को सम्मान भी लौटाता है।
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