जोधपुर।
सन्नाटे में डूबी रात के अंधेरे में जोधपुर के गंगाना इलाके की एक गली में मौत का खेल खेला जा रहा था। एक खेल, जो प्यार, विश्वास और दर्द की गहरी परतों के बीच दबा हुआ था। 50 साल की अनीता, एक मासूम इंसान जिसने अपनी जिंदगी गुलामुद्दीन नाम के उस व्यक्ति पर भरोसा करके बिताई, जिसे वो ‘भाई’ कहकर बुलाती थी। मगर यही भाई, एक खौफनाक अपराध की तस्वीर बनने वाला था।
पहला कदम: साजिश का बीज
अनीता की दुकान गुलामुद्दीन की दुकान के सामने थी। पिछले 25 साल से दोनों के बीच भाई-बहन जैसा रिश्ता था। मगर रिश्तों के इस चेहरे के पीछे कुछ सुलग रहा था। गुलामुद्दीन के मन में शक, लालच या फिर किसी अनकहे कारण का एक ऐसा बीज पनप चुका था, जिसने उसे नृशंस हत्या की हद तक पहुंचा दिया। इस खौफनाक मंसूबे की शुरुआत तब हुई, जब गुलामुद्दीन ने अपने घर के बाहर एक गहरा गड्ढा खुदवाया।
मौत का सफर
26 अक्टूबर की एक आम सी दोपहर थी। सीसीटीवी फुटेज में अनीता अकेली एक टैक्सी में बैठकर कहीं जा रही थी। ये उसकी आखिरी यात्रा थी। अनीता ने टैक्सी ड्राइवर से गंगाना इलाके में गुलामुद्दीन के घर के बाहर उतरने को कहा। उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि जिस व्यक्ति पर उसने भरोसा किया, वही उसकी जिंदगी का सबसे काला अध्याय लिखने जा रहा है।
शरीर के टुकड़े और खौफनाक गड्ढा
जोधपुर पुलिस की टीम जब गुलामुद्दीन के घर पहुंची तो वहां की शांति में छिपा डर साफ नजर आने लगा। गुलामुद्दीन की पत्नी से पूछताछ में मिली जानकारियों के बाद पुलिस ने उसके घर के सामने खुदाई की, जहां अनीता का क्षत-विक्षत शरीर गहरे में छुपा मिला। दोनों हाथ, पैर और गर्दन अलग कर दिए गए थे। पुलिस के मुताबिक, अनीता को मौत के घाट उतारने के बाद उसके शरीर के टुकड़े किए गए और उन्हें एक बोरे में बंद कर उसी गड्ढे में गाड़ दिया गया जिसे गुलामुद्दीन ने खुदवाया था।
विश्वासघात का तिलिस्म
जोधपुर के सरदारपुरा में अनीता का परिवार इस विश्वासघात से सदमे में है। उसके पति मनमोहन ने बताया कि गुलामुद्दीन ने हमेशा अनीता को बहन माना, मगर इसी भाई ने उसे धोखे से मौत की ओर धकेल दिया। अंतिम बार 26 अक्टूबर को अनीता ने अपने पति से बातचीत की थी, इसके बाद मानो वक्त ठहर गया हो।
अपराध और इंसानियत का खत्म होता रिश्ता
पुलिस अब गुलामुद्दीन की तलाश कर रही है, जो इस खौफनाक खेल के बाद फरार है। रिश्तों की पवित्रता के पीछे छिपा अंधेरा और विश्वास के साथ हुआ ये छल पूरे शहर को हिला देने के लिए काफी था। जोधपुर की गलियों में अनीता की चीखें आज भी गूंजती हैं, मानो इंसानियत से सवाल कर रही हों – क्या अब किसी पर भरोसा करना मुमकिन रह गया है?
अभी कई परतें खुलना बाकी हैं…
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