उदयपुर। एक वक्त था जब उदयपुर में यूडी टैक्स का विरोध इतना बड़ा मुद्दा था कि इसके चलते राजनीतिक समीकरण तक बदल गए। लेकिन आज हालात बिल्कुल अलग हैं। न कोई राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहा है और न ही व्यापारी कोई मोर्चा खोल रहे हैं। अफसरों की सख्ती बढ़ती जा रही है, हर दिन दुकानें और भवन सील किए जा रहे हैं, और जनता के पास टैक्स चुकाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
उदयपुर में यूडी टैक्स की वसूली को लेकर नगर निगम का रुख लगातार सख्त होता जा रहा है। हालात यह हैं कि रोज़ाना किसी न किसी दुकान या भवन को सील करने की कार्रवाई हो रही है। शहर के व्यापारी और आमजन मजबूरी में टैक्स भरने को तैयार हैं, लेकिन सवाल यह है कि इसके बदले में उन्हें क्या सुविधाएं मिल रही हैं?
पूर्व में नगर निगम के चुनावों के दौरान बीजेपी ने यूडी टैक्स का कड़ा विरोध किया था। यूडी टैक्स नहीं लगने देने को लेकर तत्कालीन शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया का नागरिक अभिनंदन भी हुआ था। लेकिन अब न कोई राजनीतिक दल इसके खिलाफ खड़ा है और न ही कोई बड़ा प्रदर्शन हो रहा है। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस भी इसका विरोध नहीं कर रही है। निकायों के चुनाव न होने के कारण फिलहाल कोई निर्वाचित बोर्ड नहीं है, जिससे अधिकारी पूरी तरह से स्वतंत्र होकर कार्रवाई कर रहे हैं।
लोगों का कहना है-“हमसे टैक्स तो वसूला जा रहा है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं दिया जा रहा। न सड़कें सुधर रही हैं, न सीवरेज व्यवस्था ठीक हो रही है। यह टैक्स वसूली कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है।”
यूडी टैक्स की वसूली को लेकर नगर निगम के अधिकारी सिर्फ नोटिस भेजने और सीलिंग की कार्रवाई में जुटे हैं। लेकिन टैक्स की स्पष्ट गाइडलाइन को लेकर स्थिति अब भी धुंधली है। आखिर कितने वर्गफुट क्षेत्र पर कितना टैक्स लागू होगा, इस पर कोई सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई गई है।
“नगर निकाय को अपने वित्तीय संसाधन बढ़ाने की जरूरत है। यूडी टैक्स उसी प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन यदि किसी को वसूली प्रक्रिया में कोई समस्या है, तो वे नगर निगम में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।”
भरतपुर के विधायक डॉ. सुभाष गर्ग ने हाल ही में विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया। उनका कहना था कि सरकार टैक्स वसूल रही है, लेकिन इसके बदले में व्यापारियों और जनता को क्या सुविधाएं मिल रही हैं, इसका कोई जवाब नहीं है।
अब सवाल यह है कि क्या यूडी टैक्स का विरोध अब किसी शहर में मुद्दा बनेगा या फिर जनता को टैक्स जमा करना ही अपनी नियति मान लेनी होगी? क्या निकायों की सख्ती के बावजूद प्रशासन जनता को उतनी ही सुविधाएं देने के लिए जवाबदेह होगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर कोई बड़ा जनआंदोलन खड़ा होता है या नहीं।
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