खाद्य मुद्रास्फीति: अप्रैल 2025 की स्थिति का विश्लेषण और तुलनात्मक अध्ययन

 

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI) और खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) का आंकलन केवल आर्थिक आंकड़ों की गणना नहीं है, बल्कि यह आम आदमी की रसोई से जुड़ी जमीनी हकीकत को मापने का एक जरिया भी है। अप्रैल 2025 में अखिल भारतीय उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index – CFPI) पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति दर वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 1.78% दर्ज की गई, जो अप्रैल 2024 की तुलना में हल्की राहत का संकेत देती है। इस लेख में हम न केवल इन आंकड़ों की तुलना करेंगे, बल्कि उनके पीछे छिपे कारकों, क्षेत्रीय विभाजन और नीति-प्रतिक्रियाओं का भी विश्लेषण करेंगे।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) क्या है?
CFPI भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग की जाने वाली प्रमुख खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव को मापता है। यह CPI (जिसमें खाद्य, ईंधन, कपड़े, आवास आदि सभी शामिल होते हैं) का एक उप-घटक है और विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति को समझने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत जैसे देश में जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आय का बड़ा भाग खाद्य वस्तुओं पर खर्च करता है, CFPI बेहद अहम संकेतक बन जाता है।

अप्रैल 2025 की खाद्य मुद्रास्फीति दर: तथ्य और आंकड़े
राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य मुद्रास्फीति: 1.78%

ग्रामीण क्षेत्रों में: 1.85%

शहरी क्षेत्रों में: 1.64%

इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी अधिक रही। यह अंतर न केवल आपूर्ति श्रृंखला की भिन्नता, बल्कि क्षेत्रीय जलवायु, बिचौलियों की भूमिका, भंडारण सुविधा और सरकारी हस्तक्षेप की गुणवत्ता को भी उजागर करता है।

तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य: अप्रैल 2024 बनाम अप्रैल 2025
अप्रैल 2024 में CFPI की दर लगभग 3.84% थी। इस लिहाज से 2025 की 1.78% की दर में स्पष्ट गिरावट दर्ज की गई है। यह बदलाव सकारात्मक संकेत देता है, लेकिन यह भी समझना आवश्यक है कि यह गिरावट स्थायी है या मौसमी प्रभावों का परिणाम।

मुख्य कारण जिनकी वजह से 2025 में खाद्य मुद्रास्फीति कम रही:
उत्पादन में वृद्धि: गेहूं, चावल, दलहन और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों की बंपर पैदावार ने आपूर्ति को मजबूत बनाए रखा।

भंडारण और वितरण प्रणाली में सुधार: केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत वितरण को अधिक सुव्यवस्थित किया, जिससे कालाबाज़ारी और जमाखोरी में कमी आई।

मौसमी परिस्थितियाँ अनुकूल रहीं: इस साल मार्च-अप्रैल के दौरान मानसून की पूर्व बारिश और तापमान सामान्य रहने से फल-सब्जियों की फसल को नुकसान नहीं पहुंचा।

आयात नीति का लचीलापन: आवश्यक खाद्य वस्तुओं जैसे दालों और खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में कटौती करके सरकार ने घरेलू कीमतों को नियंत्रित किया।

शहरी बनाम ग्रामीण अंतर
ग्रामीण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति दर 1.85% रही, जो शहरी भारत की दर 1.64% से अधिक है। इसका कारण निम्नलिखित हो सकता है:

आपूर्ति श्रृंखला की दूरी: ग्रामीण इलाकों तक खाद्य आपूर्ति पहुंचने में अधिक समय लगता है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं।

कम विकल्प: शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण बाजारों में प्रतिस्पर्धा और विकल्प कम होते हैं, जिससे विक्रेताओं को कीमतें अधिक रखने की छूट मिल जाती है।

सरकारी हस्तक्षेप की पहुंच: कई बार PDS जैसी योजनाओं की प्रभावशीलता ग्रामीण क्षेत्रों में कम देखने को मिलती है।

खाद्य मुद्रास्फीति के घटक
CFPI में कई प्रमुख खाद्य समूह शामिल होते हैं। आइए इन पर भी एक नजर डालें:

अनाज और उत्पाद: गेहूं, चावल, मक्का जैसे अनाजों की कीमतें स्थिर रही हैं, जिससे CFPI में स्थिरता आई।

दालें और उत्पाद: सरकार द्वारा समय पर आयात और बफर स्टॉक रिलीज़ की नीति ने दालों की कीमतें नियंत्रण में रखीं।

ताजा फल और सब्ज़ियां: इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव मौसमी होते हैं, लेकिन अप्रैल 2025 में आपूर्ति बाधित नहीं हुई।

दुग्ध उत्पाद: दूध की कीमतों में मामूली वृद्धि देखी गई, लेकिन यह राष्ट्रीय औसत पर प्रभावी नहीं रही।

मांस, मछली और अंडा: इन उत्पादों की कीमतों में थोड़ी वृद्धि हुई, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में।

वैश्विक प्रभाव और भारत की स्थिति
खाद्य मुद्रास्फीति पर वैश्विक घटनाओं का प्रभाव पड़ना आम बात है। रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व में अस्थिरता, और जलवायु परिवर्तन ने वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया। हालांकि, अप्रैल 2025 तक भारत ने आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम करके इन वैश्विक झटकों को काफी हद तक निष्प्रभावी बनाया।

नीतिगत हस्तक्षेप और सरकारी भूमिका
अप्रैल 2025 तक केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने निम्नलिखित कदम उठाए:

मुद्रास्फीति को लक्षित करने वाली मौद्रिक नीति: RBI ने ब्याज दरों को यथावत रखते हुए उपभोक्ता मांग को संतुलित किया।

खाद्य सब्सिडी पर फोकस: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसे कार्यक्रमों के तहत मुफ्त राशन वितरण ने गरीब तबके को राहत दी।

आयात शुल्क में बदलाव: आवश्यक वस्तुओं पर शुल्क घटाकर सरकार ने बाज़ार को स्थिर करने में मदद की।

डिजिटल वितरण प्रणाली (e-Ration Cards): पारदर्शिता और समयबद्ध वितरण सुनिश्चित करने में मदद मिली।

चुनौतियाँ जो अभी भी बनी हुई हैं
मौसमी अनिश्चितता: भारत की कृषि अब भी मानसून पर अत्यधिक निर्भर है। असामान्य बारिश या सूखा भविष्य में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ा सकते हैं।

खाद्य तेलों पर आयात निर्भरता: भारत अपनी खाद्य तेल आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। वैश्विक कीमतों में उछाल से घरेलू मुद्रास्फीति प्रभावित हो सकती है।

बिचौलियों की भूमिका: किसान से उपभोक्ता तक पहुँचने में कई स्तर होते हैं, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं

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