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दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी नेताओं में असंतोष की आंच : दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान से मुलाकात के पीछे का असल संदेश

By Habib Ki Report / 23 July, 2025

नई दिल्ली | राजस्थान की राजनीति में आदिवासी क्षेत्र लंबे समय से कांग्रेस के लिए एक सुरक्षित वोटबैंक रहे हैं, लेकिन अब यही इलाका पार्टी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। बीते बुधवार को उदयपुर डिविजन के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं का दिल्ली जाकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात करना, दिखने में एक औपचारिक शिष्टाचार भेंट भले लगे, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक बुनावट कुछ और ही कहानी कहती है — एक गहरा असंतोष, उपेक्षा की पीड़ा और संगठन में लगातार हो रही अनदेखी।

भेंट का बहाना, असंतोष का इज़हार

यह प्रतिनिधिमंडल पूर्व सांसद और सीडब्ल्यूसी सदस्य रघुवीर सिंह मीणा व पूर्व एआईसीसी सचिव ताराचंद भगोरा के नेतृत्व में दिल्ली पहुंचा। साथ में डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर ज़िलों से जुड़े कई पूर्व विधायक, पीसीसी पदाधिकारी और जिला अध्यक्ष भी शामिल थे। यह वही नेता हैं जिन्होंने दशकों तक कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में ज़मीन दी, लेकिन आज खुद को हाशिये पर पाते हैं।

राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे को जन्मदिन की शुभकामनाएं देना इस दौरे का औपचारिक कारण था, लेकिन असली मकसद दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी नेताओं की उपेक्षा और संगठन में गहराती खाई को उजागर करना था।

आदिवासी नेताओं के बीच क्यों बढ़ रहा है असंतोष?

1. संगठन में निर्णयों से दूरी

वागड़ और मेवाड़ के कई वरिष्ठ नेताओं का आरोप रहा है कि प्रदेश नेतृत्व से लेकर दिल्ली तक की निर्णय प्रक्रिया में आदिवासी नेताओं को शामिल नहीं किया जा रहा है। टिकट वितरण से लेकर रैलियों के आयोजन और स्थानीय मुद्दों पर रणनीति बनाने तक, निर्णय अक्सर ऊपर से थोपे जा रहे हैं।

2. प्रतीकात्मक उपस्थिति, वास्तविक भागीदारी नहीं

हाल के वर्षों में कांग्रेस ने आदिवासी प्रतीकों को मंच पर तो जरूर सजाया, लेकिन निर्णयों में उनकी भागीदारी को गौण कर दिया गया। यही कारण है कि कई पूर्व विधायक और संगठन के ज़मीनी कार्यकर्ता अब खुद को केवल “सभा सजाने वाला चेहरा” मानते हैं, नीति निर्धारक नहीं।

3. संविधान रैली में उपेक्षा की पीड़ा

उदयपुर में हाल ही में हुई ‘संविधान बचाओ जनसभा’ को लेकर भी यह असंतोष और मुखर हुआ। आदिवासी नेताओं का कहना है कि उनकी सहभागिता केवल भीड़ जुटाने तक सीमित रही, जबकि आयोजन से जुड़े निर्णय, वक्ताओं की सूची और मीडिया विमर्श पूरी तरह से बाहर से नियंत्रित किया गया।

दिल्ली यात्रा : एक ‘चेतावनी संकेत’

राजनीतिक गलियारों में इस दौरे को एक संकेतात्मक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा पहली बार नहीं है जब दक्षिण राजस्थान के नेता दिल्ली दरबार में अपनी बात रखने पहुंचे हों, लेकिन इस बार स्वर पहले से ज्यादा तल्ख़ था।

खड़गे को दिए गए फीडबैक में नेताओं ने साफ-साफ कहा कि यदि आदिवासी क्षेत्र को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो न केवल संगठन में टूट का खतरा है, बल्कि बीजेपी और स्थानीय जनजातीय दलों को खुला मैदान मिल जाएगा। यह संकेत है कि कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक अब निष्ठा पर नहीं, सुनवाई और सम्मान पर टिकेगा।

खड़गे का जवाब : ‘न्याय होगा’, लेकिन कैसे?

राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आश्वासन दिया कि संगठन में आदिवासी नेताओं के साथ “न्याय” किया जाएगा और सभी को साथ लेकर चलने की रणनीति बनाई जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह भरोसा जमीनी स्तर पर कार्रवाई में बदलेगा या फिर यह भी पार्टी के लंबे समय से चल रहे “अगली बार” वाले वादों की श्रृंखला में एक और वादा बनकर रह जाएगा?

राजनीतिक नज़रिए से इस मुलाकात के निहितार्थ

आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस की बुनियाद खिसक रही है
पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन इन क्षेत्रों में लगातार कमजोर हुआ है। बीजेपी, भाकपा (माले), और स्थानीय जनजातीय संगठनों ने कांग्रेस के पारंपरिक समर्थन को तोड़ने में आंशिक सफलता हासिल की है।

2028 की तैयारी की शुरुआत?

इस भेंट को कांग्रेस के भविष्य की रणनीति की नींव के रूप में भी देखा जा सकता है, जहां पार्टी आदिवासी नेतृत्व को दोबारा ‘प्रभावशाली’ बनाना चाहती है, ताकि वे जनता के साथ संवाद बहाल कर सकें।

अनदेखा किया तो नेतृत्व संकट गहराएगा

यदि कांग्रेस ने अपने पुराने, प्रभावशाली आदिवासी नेताओं की बातों को नजरअंदाज किया, तो न केवल संगठन को नुकसान होगा, बल्कि पार्टी को नए चेहरे भी नहीं मिलेंगे जो संगठनात्मक विरासत को आगे बढ़ा सकें।

सुनवाई नहीं तो दूरी तय

दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी नेताओं की यह दिल्ली यात्रा पार्टी हाईकमान के लिए एक चेतावनी, एक अवसर और एक निर्णायक मोड़ है। यदि कांग्रेस ने इस असंतोष को केवल एक ‘अंदरूनी गुटबाज़ी’ समझकर टालने की कोशिश की, तो इसके नतीजे केवल चुनावी हार तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि संगठन का जमीनी ढांचा भी दरक सकता है।

अब गेंद कांग्रेस नेतृत्व के पाले में है—क्या वह वागड़ और मेवाड़ की इन आवाज़ों को सुनेगा, या फिर एक और जनाधार क्षेत्र हाथ से निकल जाएगा?

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Tags: Adivasi discontent, Congress high command, Congress leaders, Congress strategy, Constitution rally, dungarpur, internal dissent, Mallikarjun Kharge, party organization, party unity, political feedback, Raghuveer Singh Meena, Rajasthan Politics, South Rajasthan, Sukjinder Singh Randhawa, Tarachand Bhagora, tribal leadership, tribal vote bank, Udaipur Division, Wagad region

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