स्थानीय प्रयास से वैश्विक संदेश तक
उदयपुर। दुनिया की सबसे बड़ी जिंक उत्पादक और शीर्ष पांच सिल्वर उत्पादकों में शामिल हिन्दुस्तान जिंक ने यह साबित किया कि कॉर्पोरेट जगत केवल लाभ कमाने तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के निचले तबके तक पहुंचकर जीवन बदलने की ताक़त रखता है। राजस्थान में कंपनी की पोषण और स्वास्थ्य संबंधी पहलों से अब तक 3.7 लाख से अधिक महिलाएं और बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं। लगभग 2,000 नंद घरों के माध्यम से न सिर्फ शुरुआती पोषण और शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी सशक्त किया जा रहा है।
अगर इसे वैश्विक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मॉडल यूनिसेफ़ के अफ्रीका में अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट (ECD) कार्यक्रम और ब्राज़ील के “फोमे जीरो” (Fome Zero – ज़ीरो हंगर) अभियान से मेल खाता है। इन दोनों अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की तरह ही हिन्दुस्तान जिंक की पहल भी यह दिखाती है कि निजी कंपनियाँ भी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) – विशेषकर SDG 2 (Zero Hunger) और SDG 3 (Good Health and Well-Being) – को हासिल करने में महत्वपूर्ण सहयोगी बन सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों से तुलना
भारत के नंद घर बनाम लैटिन अमेरिका का “कुना मास” (Cuna Más – पेरू):
पेरू का यह मॉडल छोटे बच्चों को पोषण, प्री-स्कूल शिक्षा और माताओं के लिए सहयोग प्रदान करता है। ठीक इसी तरह, नंद घरों में पोषण, डिजिटल शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और महिला सशक्तिकरण को एकीकृत किया गया है।
मोबाइल हेल्थ वैन बनाम अफ्रीका के कम्युनिटी हेल्थ प्रोजेक्ट्स :
राजस्थान के 110 गाँवों में चार मोबाइल हेल्थ वैन के ज़रिए स्तनपान, कुपोषण और एनीमिया पर जागरूकता फैलाई जा रही है। इसी तरह, केन्या और युगांडा में “कम्युनिटी हेल्थ वर्कर प्रोग्राम” ग्रामीण इलाकों तक बुनियादी स्वास्थ्य शिक्षा पहुँचाने में सफल रहा है।
भारत का वेदांता जिंक सिटी हाफ मैराथन बनाम यूरोप के “फिटनेस विद ए कॉज” इवेंट्स
भारत में आयोजित यह मैराथन न केवल फिटनेस को बढ़ावा देती है, बल्कि “ज़ीरो हंगर” जैसी सामाजिक सोच से भी जोड़ती है। यूरोप और अमेरिका में भी कई मैराथन और स्पोर्ट्स इवेंट्स को सामाजिक अभियानों से जोड़ा गया है, परन्तु भारत का यह उदाहरण खास है क्योंकि इसमें कॉर्पोरेट, समुदाय और बच्चों का भविष्य—तीनों एक मंच पर आते हैं।
व्यापक प्रभाव और वैश्विक महत्व
वित्तीय वर्ष 2025 तक हिन्दुस्तान जिंक की सामाजिक पहलों से 2,300 से अधिक गाँवों और 23 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। यह भारत की उन गिनी-चुनी कंपनियों में से है जो शीर्ष 10 CSR निवेश में शामिल हैं।
अगर इसे वैश्विक संदर्भ में देखें तो यह पहल उन उदाहरणों की श्रेणी में आती है जहाँ कॉर्पोरेट सेक्टर सामाजिक ढांचे को मजबूत करने का वाहक बनता है। जैसे —
जापान में कॉर्पोरेट-नेतृत्व वाले हेल्थ एंड न्यूट्रिशन प्रोग्राम,
स्कैंडिनेवियन देशों में प्राइवेट-सेक्टर आधारित डे-केयर मॉडल,
अफ्रीकी देशों में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से चलने वाले हेल्थ कैंपेन।
भारत में हिन्दुस्तान जिंक का यह प्रयास यह साबित करता है कि सामाजिक जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट जगत की भी होती है। जब उद्योग पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आगे आते हैं तो वे न केवल स्थानीय समुदाय को मजबूत बनाते हैं, बल्कि दुनिया के लिए एक रोल मॉडल भी पेश करते हैं।
राजस्थान के गांवों में उठाया गया यह कदम आज वैश्विक स्तर पर यह संदेश दे रहा है कि—“सतत विकास की दौड़ में कॉर्पोरेट जगत भी एक धावक है, और उसका लक्ष्य है – भूख और कुपोषण से मुक्त समाज।”
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