
नई दिल्ली। वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर संसद में हो रही चर्चा के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराई है। मंगलवार को एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाने की किसी को आवश्यकता नहीं है।
अरशद मदनी ने लिखा, “हमें किसी के वंदे मातरम पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में किसी और को शामिल नहीं कर सकता। वंदे मातरम का अनुवाद शिर्क से जुड़ी मान्यताओं पर आधारित है, क्योंकि इसके कुछ श्लोकों में देश को देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है और पूजा के शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो इस्लामी आस्था के ख़िलाफ़ है।”
उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक को उसकी धार्मिक मान्यता के विपरीत कोई नारा या गीत बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) प्रदान करता है।
अपनी पोस्ट में मदनी ने यह भी कहा कि देश से प्रेम और देश की पूजा, दोनों अलग बातें हैं।
उन्होंने लिखा, “मुसलमानों की देशभक्ति के लिए किसी प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है।”
इससे पहले सोमवार को लोकसभा में एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी वंदे मातरम को अनिवार्य बनाने के प्रयासों का विरोध करते हुए कहा था कि संविधान “भारत माता” नहीं, बल्कि “हम भारत के लोग” से शुरू होता है, और किसी को उसकी धार्मिक मान्यता के विरुद्ध वंदे मातरम गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
Keywords: Arshad Madani, Vande Mataram, Jamiat Ulema-e-Hind, Constitutional Rights, AIMIM, Owaisi, Religious Freedom, India Parliament Debate
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