उदयपुर से कटारिया के जाने से छुट भैया दावेदारों की बाढ़ सी आ गई, दो-दो बार पार्षद का चुनाव हारने वाले भी दावेदार

उदयपुर। राजस्थान के विधानसभा चुनावों को लेकर उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर छुट भैया दावेदारों की बाढ़ सी आ गई है। दो-दो बार पार्षद का चुनाव हारने वाले खुद को जिताऊ मानकर दावेदारी कर रहे हैं। इनकी दावेदारी के पीछे जातिगत राजनीति है।

मेवाड़ के दिग्गज गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाए जाने के बाद भाजपा और कांग्रेस में दावेदारों की बाढ़ आ गई है। सबकी रातों की नींद उड़ी हुई है। मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखते हुए ये सभी दावेदार खुद को जिताऊ प्रत्याशी मान रहे हैं। इनसे मिलोगे तो ये जीत का गणित भी आपको समझा देंगे।

इन छुट भैया नेताओं को यह मालूम होना चाहिए कि उदयपुर शहर विधानसभा सीट संभाग के लिहाज से अति महत्वपूर्ण है। यहां से जीतने वाले प्रत्याशी या तो सीएम बने हैं या नंबर दो पर रहे हैं। एक त्रिलोक पूर्बिया जरूर अपवाद है। यही वजह है कि ओबीसी वर्ग के कुछ नेता भी उसी गणित को सामने रख कर अपनी दावेदारी मान रहे हैं। हालांकि भाजपा से शिवकिशोर सनाढ्य उदयपुर से दो बार विधायक चुने गए, लेकिन मंत्री नहीं बन सके।

बहरहाल कांग्रेस के दावेदारों में कुछ तो प्रेशर पॉलिटिक्स करते आए हैं और अब भी वही कर रहे हैं। इनमें कुछ दावेदार खुद प्रभावशाली दावेदारों के यहां चक्कर लगा रहे हैं ताकि कुछ जुगाड बैठ जाए।

ये दावेदार कटारिया की जीत को सिर्फ जैन समाज की जीत बता कर दावेदारी जता रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि कटरिया सर्वसमाज के सर्वमान्य नेता रहे हैं। अपने भाषणों की वजह से भले ही वो विवादित रहे हों लेकिन वे अपनी राजनीति से सबको चकमा देते रहे हैं। वे मुस्लिमों के बीच जाकर खुद को आरएसएस का स्वयं सेवक बोलने की हिम्मत रखते और कब्रिस्तानों के विवादों का आपसी सहमति से हल करवा देते थे। यह उदहारण इसलिए अहम है कि कटरिया किसी एक समाज के वोटों से नहीं जीतते थे।

अभी तो राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट जैसे नेताओं का भविष्य तय नहीं है और उदयपुर के दावेदार जीत का गणित तय कर रहे हैं।

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