अयोध्या। अयोध्या, जो भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है, ने हमेशा से ही एक विशेष महत्व और धार्मिक प्रतिष्ठा बनाई है। लेकिन इस भूमि की खास बात यह भी है कि इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है कि यहाँ से किसी को भी सत्ता नहीं मिली, यहाँ तक कि भगवान राम को भी नहीं।
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब पूरा बहुमत मिला, जब उन्होंने भगवान राम या अयोध्या के नाम पर वोट नहीं मांगे। यानी 2014 व 2019 में बीजेपी कांग्रेस की एंटी इन्कंबेंसी और 2019 में पुलवामा अटैक के बाद राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता में आई। 2024 में लाख कोशिशों के बावजूद बीजेपी पूर्ण बहुमत पाने से दूर रह गई। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी अयोध्या सीट बीजेपी हार गई।
राजनीति में पीछे जाएं तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह दुबारा सत्ता में नहीं लौट सके। लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी को सत्ता के शिखर तक ले जाने में कामयाब हुए, लेकिन वे खुद पीएम इन वेटिंग बनकर रह गए। ऐसे आपको कई उदाहरण मिल जाएंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के नाम पर आपको लोकप्रियता हासिल होगी, लेकिन सत्ता के लिए तो वनवास जैसा कठिन समय गुजारना पड़ेगा।
भगवान राम का जीवन और अयोध्या
भगवान राम, जिनका जीवन धर्म और मर्यादा का प्रतीक माना जाता है, ने भी अयोध्या की भूमि पर रहते हुए अनेक संघर्षों का सामना किया। अयोध्या के सिंहासन पर बैठने से पहले उन्हें 14 वर्षों के वनवास का कठोर निर्णय स्वीकार करना पड़ा। यह वनवास उनका व्यक्तिगत बलिदान था, जो उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का मान रखने के लिए किया था।
अयोध्या की राजनीतिक धारा
इतिहास में अनेक राजाओं और सत्ताधीशों ने अयोध्या पर शासन किया, लेकिन अयोध्या की मिट्टी की तासीर कुछ ऐसी रही कि यहाँ से किसी भी राजा को सत्ता की स्थायी विरासत नहीं मिली। यह भूमि सत्ता के संघर्ष, त्याग और बलिदान की कहानियों से भरी रही है।
आज की अयोध्या
आज अयोध्या न केवल धार्मिक महत्व का केंद्र है, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ की भूमि पर मंदिर निर्माण और विवादों ने इसे अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में भी रखा है। फिर भी, अयोध्या की आत्मा और इसकी धरोहर वही है: संघर्ष, त्याग और धार्मिकता।
निष्कर्ष
अयोध्या की भूमि का यह अनूठा इतिहास दर्शाता है कि यह केवल सत्ता और शासन का प्रतीक नहीं है, बल्कि धर्म, संघर्ष और नैतिकता का प्रतीक भी है। भगवान राम के जीवन की तरह, अयोध्या की धरती ने हमेशा से ही यह सिखाया है कि सच्ची शक्ति और सच्चा राज्य सत्ता में नहीं, बल्कि धर्म और नैतिकता में निहित है।
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