सेवा की विरासत या प्रचार का मंच? किरण माहेश्वरी को यूं नहीं याद किया जाता

  • फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। स्वर्गीय किरण माहेश्वरी की जयंती पर पहली बार उनके करीबियों की ओर से आयोजित “गो-सेवा अनुष्ठान” देखने वालों के लिए एक भावनात्मक अवसर होना चाहिए था, लेकिन तस्वीरें कुछ और ही कहानी कह रही थीं। जितनी श्रद्धा मंच पर दिखाई जानी चाहिए थी, उतनी उत्सुकता शायद कैमरे के सामने पोज़ देने में नजर आई।
मालूम नहीं यह आयोजन “सेवा” का प्रतीक था या “उपस्थिति दर्ज कराने” का मंच — पर इतना ज़रूर है कि इसमें आत्मा की जगह औपचारिकता भारी पड़ी।

स्वर्गीय किरण माहेश्वरी को लोग उनके कार्य, व्यवहार और सहज संपर्क की वजह से याद करते हैं। वे जनता के बीच सिर्फ नेता नहीं, “अपनों जैसी” दिखती थीं। लेकिन आज उनकी विरासत का प्रदर्शन जिस तरह के आयोजनों में सिमट गया है, वह इस सवाल को जन्म देता है — क्या हम सच में उन्हें याद कर रहे हैं, या बस उनका नाम अपनी राजनीति का हिस्सा बना रहे हैं?

उनकी बेटी, विधायक दीप्ति माहेश्वरी, मां के नाम को गर्व से अपने नाम के साथ जोड़ती हैं — लेकिन जनता की राय साफ है : “दीप्ति का किरण माहेश्वरी बनना फिलहाल मुश्किल है।” किरण माहेश्वरी सिर्फ नाम नहीं थीं, एक दृष्टिकोण थीं — सेवा का, साहस का, और सादगी का। उनकी जगह मंच पर लोग बैठे हैं, पर उनके जैसी आत्मीयता अभी दूर-दूर तक नहीं दिखती।

मंच से उतरी भावनाएं, कैमरे में कैद आयोजन

राजस्थान की पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री और भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय महासचिव स्वर्गीय किरण माहेश्वरी की जन्म जयंती के अवसर पर किरण माहेश्वरी स्मृति मंच द्वारा महाकालेश्वर गौशाला, उदयपुर में गो-सेवा अनुष्ठान का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मंच के अनेक पदाधिकारी, कार्यकर्ता और नागरिक मौजूद रहे।
कार्यक्रम के दौरान भजन-संकीर्तन, गौ-सेवा और श्रद्धांजलि के माध्यम से दिवंगत नेता को याद किया गया।

मंच के महासचिव गोविंद दीक्षित ने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि “उनका नेतृत्व केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं पर आधारित था। वे प्रत्येक कार्यकर्ता के दुःख-सुख में सहभागी बनकर संगठन को परिवार के रूप में देखती थीं।”

उदयपुर जिला अध्यक्ष मनोज लोढ़ा ने कहा कि किरण माहेश्वरी ने उदयपुर के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

“महिला समृद्धि बैंक की स्थापना से लेकर महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उन्होंने रचनात्मक कार्य किए, जिनसे कई परिवारों को नई दिशा मिली,” उन्होंने कहा।

संभाग मीडिया प्रभारी अनिल चतुर्वेदी और डॉ. सत्यनारायण माहेश्वरी ने उनके लोकजीवन, सामाजिक प्रतिबद्धता और जनसेवा की भावना से जुड़े प्रसंगों को याद किया।

कार्यक्रम में ललित सेन, चेतन लुणदिया, नरेंद्र पोरवाल, अनिता दरक, उर्मिला भंडारी, महेंद्र सिंह शेखावत, प्रकाश अग्रवाल, दामोदर खटोड़, प्रदीप श्रीमाली, यशवंत पालीवाल, कमल कुमावत सहित बड़ी संख्या में नागरिक और कार्यकर्ता मौजूद रहे।

श्रद्धांजलि से आगे बढ़ने का वक्त

कार्यक्रम अपने रूप में सफल रहा, पर भावना के स्तर पर अधूरा। किरण माहेश्वरी जैसी नेताओं को केवल मंचों पर याद करने की नहीं, उनके आदर्शों को व्यवहार में उतारने की ज़रूरत है। गौ-सेवा या भजन अनुष्ठान तभी सार्थक होंगे, जब उनमें वह सादगी और सच्चाई झलके जो किरण माहेश्वरी के व्यक्तित्व की पहचान थी।

सवाल यह नहीं कि कार्यक्रम हुआ या नहीं — सवाल यह है कि क्या हम उनकी “जनसेवा की आत्मा” तक पहुँच पाए? फोटो सेशन खत्म हो जाते हैं, पर स्मृतियाँ तभी जीवित रहती हैं जब वे कर्मों में उतरती हैं।

किरण माहेश्वरी की जयंती पर सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होती — अगर उनके नाम पर जुटे चेहरे, उनके मूल विचार — “जनसेवा को राजनीति से ऊपर” — को सच में अपना लेते।

About Author

Leave a Reply