सप्ताह : मई 2025 | स्थान: NDPS एडीजे-1 कोर्ट, उदयपुर | न्यायाधीश: मनीष वैष्णव
“Order! Silence in the Court!”
उदयपुर। 9 साल बाद, अदालत की उस खचाखच भरी कोर्टरूम में हर कोई साँस रोके बैठा था। सामने जज की कुर्सी पर बैठे थे न्यायाधीश मनीष वैष्णव। उनके चेहरे पर न कोई भाव था, न कोई जल्दबाज़ी। लेकिन उनकी आंखों में देश के इतिहास के सबसे बड़े ड्रग केस का 4000 से अधिक पन्नों का भार था।
वकीलों की कुर्सियों के पीछे बैठे थे वो 7 चेहरे – रवि दूदानी, परमेश्वर व्यास, अनिल मलकानी, संजय आर पटेल, निर्मल दूदानी, गुंजन दूदानी और अतुल महात्रे।
इनकी कहानी एक गैंगस्टर थ्रिलर से कम नहीं थी, लेकिन आज न कोई थ्रिल था, न ग्लैमर। आज था सिर्फ न्याय का दिन।
विशिष्ट लोक अभियोजक राजेश वसीटा की आवाज गूंजी…
“माई लॉर्ड, ये सिर्फ भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा ड्रग बरामदगी केस है। ये आरोपी फैक्ट्रियों की दीवारों के पीछे नहीं छिपे थे, ये एक इंटरनेशनल नेटवर्क के माफिया थे। ये लोग सिर्फ रसायन नहीं बेचते थे, ये जिंदगियां नष्ट करते थे — साउथ अफ्रीका, इंडोनेशिया तक!”
उन्होंने 1000 दस्तावेजों, 1600 सैंपल्स और 300 इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की श्रृंखला से एक-एक लिंक को जोड़ते हुए अदालत के सामने पूरा नेटवर्क खोलकर रख दिया।
प्रमुख गवाह #14 — नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अधिकारी
“हमने जब उस फैक्ट्री का दरवाज़ा तोड़ा था, तो पहले लगा जैसे कोई केमिकल स्टोर है। लेकिन फिर एक-एक बैरल खुलने लगा… और जो सामने आया, वो किसी भूतिया प्लांट से कम नहीं था — 23,500 किलो मेथाक्वालोन (MD), इंटरनेशनल मार्केट वैल्यू: 8000 करोड़ रुपए।
“हमारे होश उड़ गए, माई लॉर्ड…”
पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया। आरोपी खुद अपनी आंखें झुका चुके थे।
डिफेंस लॉयर की आखिरी दलील :
“माई लॉर्ड, यह मुनासिब नहीं होगा कि सबको एक ही तराजू में तौला जाए। श्री अतुल महात्रे गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, उनका इस नेटवर्क में छोटा रोल था… mercy be granted…”
फैसला : कोर्ट की हथौड़ी गूंजी
“आरोपीगण रवि दूदानी, परमेश्वर व्यास, अनिल मलकानी, संजय आर पटेल, निर्मल दूदानी और गुंजन दूदानी को…NDPS Act की धारा 8/22(c), 25, 28, और 29 के तहत… 20-20 वर्ष का कठोर कारावास और ₹2 लाख जुर्माने की सजा दी जाती है।”
“अतुल महात्रे की स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उन्हें 10 वर्ष की सजा और ₹1 लाख जुर्माना सुनाया जाता है।”
कोर्टरूम में माहौल…
बाहर 30 से ज़्यादा वकील फैसले का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही जज साहब ने “Court is adjourned” कहा — कोर्टरूम के हर कोने में इतिहास लिखा गया। मीडिया कैमरे फ्लैश करने लगे। आरोपी चुपचाप पुलिस की निगरानी में बाहर ले जाए गए।
लेकिन कहीं न कहीं, एक चेहरा था जो अब भी इस कहानी से गायब था…
THE GHOST IN THE CASE: सुभाष दूदानी (मृत)
यह सब कुछ शुरू करने वाला – मुंबई का माफिया, अंतरराष्ट्रीय सप्लायर – तीन साल पहले मृत्यु को प्राप्त हो चुका था। न कोई ट्रायल, न कोई कबूलनामा। लेकिन आज उसकी छाया में पलने वाले सब कानून की गिरफ्त में थे।
कौन है सुभाष दूदानी
मुंबई में जन्मा, दुबई में पला-बढ़ा, और साउथ अफ्रीका की गलियों में नाइट क्लब्स से लेकर केमिकल लैब्स तक अपनी सल्तनत फैला चुका था सुभाष दूदानी। भारत में उसका नाम तक शायद ही कोई जानता था। लेकिन इंटरपोल की फाइलों में वो “द इंडियन मेंड्रेक्स माफिया” के नाम से कुख्यात था। DRI को शक भी नहीं था कि मुंबई की गलियों से चल रही यह साजिश जोहान्सबर्ग और जकार्ता तक जड़ें जमा चुकी थी।
सुभाष ने पूरे ऑपरेशन को फैमिली बिजनेस की तरह चलाया – उसका भतीजा रवि दूदानी, बेटा गुंजन, और सहयोगी – परमेश्वर व्यास, अनिल मलकानी, संजय आर पटेल, निर्मल और अतुल महात्रे।
एंड क्रेडिट स्टाइल लाइनें :
यह केस 9 साल तक NDPS कोर्ट में चला।
50 से अधिक गवाहों ने बयान दिए।
DRI मुंबई और राजस्थान पुलिस की संयुक्त कार्रवाई थी।
सुभाष दूदानी की संपत्ति की जांच अभी भी जारी है।
NDPS कोर्ट के इस फैसले को ‘नार्को लॉजिस्टिक जस्टिस’ की बड़ी जीत माना जा रहा है।
“कोर्ट रूम लाइव” का आखिरी डायलॉग :
“न्याय धीमा हो सकता है… पर जब आता है, तो वो गूंजता है — हर लैब, हर रैकेट और हर सिंडिकेट की नींव हिलाकर रख देता है।”
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