
उदयपुर/जयपुर। डेंगू और मौसमी बीमारियों के प्रकोप ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया है। सरकारी और निजी दोनों अस्पताल हाउसफुल हैं, लेकिन यहां असली सवाल यह है कि आम आदमी को राहत कहां मिलेगी? जबकि सरकारी अस्पतालों के कर्मचारी सीमित संसाधनों के बावजूद गरीब मरीज़ों की मदद के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं, वहीं निजी अस्पतालों का रवैया पूरी तरह से मुनाफाखोरी और अमानवीयता से भरा हुआ है। उदयपुर में जीबीएच अमेरिकन, गीतांजलि, पैसिफिक, जेके अस्पताल प्रमुख नाम है। अन्य प्राइवेट अस्पतालों में भी यही हाल है।
इन निजी अस्पतालों ने सरकार से न्यूनतम दरों पर ज़मीनें और अन्य सुविधाएं तो बटोर लीं, लेकिन जब बात सेवा देने की आती है, तो ये अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाते हैं। मरीजों को बेड उपलब्ध कराने से इनकार करना और उनके अटेंडेंट्स के साथ अभद्र व्यवहार करना इनकी आदत बन चुकी है। **क्या यही है वो सेवा भावना जिसके नाम पर ये अस्पताल सरकारी ज़मीनें हड़पते हैं?
सत्ता में बैठे मंत्री और अफसर आखिर इन निजी अस्पतालों का निरीक्षण कब करेंगे? क्यों नहीं इन अस्पतालों पर सख्ती से कार्रवाई होती है, जो मरीज़ों की ज़िंदगी को सिर्फ़ पैसों के तराजू में तौलते हैं? **यहां इलाज के नाम पर केवल शोषण हो रहा है। अस्पताल के मालिक एसी कमरों में आराम फरमा रहे हैं, जबकि मरीज इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं।
दूसरी ओर, सरकारी अस्पतालों की स्थिति इतनी भी खराब नहीं है जितनी बताई जाती है। सीमित संसाधनों और भारी भीड़ के बावजूद, ये अस्पताल गरीबों का सहारा बने हुए हैं। यहां के डॉक्टर और कर्मचारी सिफारिशों और सीमित संसाधनों के बावजूद जनता को राहत पहुंचाने का काम कर रहे हैं। सुविधाओं की कमी है, मगर इसके लिए दोष सरकार का है, न कि उन डॉक्टरों का जो दिन-रात लोगों की सेवा में लगे हैं।
अब वक्त आ गया है कि इन निजी अस्पतालों की पोल खोली जाए और जनता को सच्चाई से अवगत कराया जाए। अगर आज भी ये निजी अस्पताल अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटते हैं, तो उन्हें मिलने वाले सरकारी लाभों पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
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