फोटो : कमल कुमावत
उदयपुर। आदमखोर पैंथर द्वारा 9 ग्रामीणों की मौत का मामला आजकल उदयपुर में कांग्रेस की सियासी लड़ाई का केंद्र बना हुआ है। कांग्रेस, विपक्ष में रहते हुए लगातार धरना-प्रदर्शन कर रही है और मृतकों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग को उठाकर सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है। यह मांग स्वाभाविक तौर पर सही भी लगती है, आखिरकार उन लोगों के परिवारों का क्या होगा जो इस दरिंदगी के शिकार हुए हैं। लेकिन इसके पीछे की राजनीति पर भी सवाल उठना लाज़मी है, खासकर जब कांग्रेस ने टाइगर रिजर्व के लिए भूमि अवाप्ति को रोकने की मांग जोड़ दी है।
दरअसल, टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट के लिए भूमि अवाप्ति को रोकने की यह मांग कांग्रेस के असली मंशा पर शक पैदा करती है। आदमखोर पैंथर को पकड़ने की मांग की आड़ में भूमि संरक्षण की राजनीति करना यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह सचमुच जनता के हित की लड़ाई है, या कुछ नेताओं की जमीनों और निजी स्वार्थों की रक्षा करने का तरीका? उदयपुर और उसके आसपास की भूमि की कीमतें आसमान छू रही हैं, और यह संभव है कि कुछ प्रभावशाली लोगों की ज़मीनें इस प्रोजेक्ट की चपेट में आ रही हों। ऐसे में यह धरना क्या जमीन बचाने की छुपी हुई लड़ाई है?
उदयपुर देहात जिला कांग्रेस कमेटी ने शुक्रवार को कलेक्ट्री के सामने पैंथर के हमलों के खिलाफ प्रदर्शन किया। गोगुंदा और झाड़ोल जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में पैंथर द्वारा नौ ग्रामीणों की जान ली जा चुकी है, और प्रशासन की सुस्ती ने इस स्थिति को और विकराल बना दिया है। कांग्रेस ने सही दिशा में कदम बढ़ाते हुए पैंथर को पकड़ने और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग की, लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह कांग्रेस की मानवता के प्रति चिंता है या एक सुनियोजित राजनीतिक चाल?
‘पर्ची सरकार’ पर तीखे तीर
कांग्रेस नेताओं ने राज्य सरकार पर आरोपों की बौछार कर दी। “पर्ची सरकार” कहकर तंज कसते हुए, उन्होंने सरकार पर सुस्ती और लापरवाही का आरोप लगाया। राजस्थान सरकार की अदूरदर्शिता और असंवेदनशीलता पर पूर्व अध्यक्ष लाल सिंह झाला और कचरू लाल चौधरी ने तीखा हमला किया। उनका दावा है कि भाजपा सरकार के लिए ग्रामीणों की जान की कोई कीमत नहीं है। कांग्रेस महासचिव ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह पहली बार है जब पैंथर के हमलों ने इतनी जानें ली हैं और इसके बावजूद सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
लेकिन कांग्रेस की राजनीति में यह भी ध्यान देने योग्य है कि मुआवजे के नाम पर इकावन लाख रुपये और सरकारी नौकरी की मांग को सामने लाना एक आसान रास्ता है जो जनता के गुस्से को भुनाने के लिए उठाया गया है। सवाल उठता है कि जब कांग्रेस खुद सत्ता में थी, तब वन्यजीव संरक्षण और सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए थे? अब यह “आदमखोर पैंथर” का मुद्दा, क्या सिर्फ चुनावी फायदा उठाने का एक तरीका है?
वास्तविक मुद्दा और राजनीति का मिश्रण
आदमखोर पैंथर की समस्या गंभीर है और इसमें दो राय नहीं कि मृतकों के परिवारों को मुआवजा और सहायता मिलनी चाहिए। लेकिन जब इसी मुद्दे के साथ भूमि अवाप्ति के विरोध को जोड़ दिया जाता है, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीति और निजी स्वार्थ का घालमेल इस लड़ाई को प्रदूषित कर रहा है। जनता के असली मुद्दों को नजरअंदाज कर, भूमि विवाद और सियासी फायदों के खेल में ग्रामीणों की पीड़ा कहीं पीछे छूटती जा रही है।
कांग्रेस की मांगें भले ही सही हों, लेकिन उनके पीछे छिपी मंशा पर सवाल उठना लाजमी है।
इस अवसर पर रघुवीर सिंह मीणा, ताराचंद मीणा, मांगीलाल गरासिया, कचरूलाल चौधरी, फतेह सिंह राठौर, पुष्कर लाल डांगी, दिनेश श्रीमाली, हीरालाल दरांगी, सुरेश सुथार, प्रधान सवाराम गमेती, राधा देवी, ब्लॉक अध्यक्ष रामसिंह, गुलाब सिंह राव, अभिमन्यु सिंह झाला, नारायण पालीवाल, पंकज पालीवाल, टीटू सुथार, संजीव राजपुरोहित, हर्षवर्धन सिंह, गौरव प्रताप आदि मौजूद थे।
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