उदयपुर। उदयपुर शहर के हृदयस्थल में स्थित ऐतिहासिक और हराभरा गुलाबबाग एक बार फिर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के औचक दौरों की चर्चा में है। शनिवार को शहर विधायक ताराचंद जैन ने गुलाबबाग का निरीक्षण किया और वहां व्याप्त गंदगी और बदइंतजामी पर ‘आक्रोश’ जताते हुए नगर निगम के अधिकारियों को निर्देश दिए।
लेकिन सवाल ये उठता है : क्या ये ‘निरीक्षण’ स्थायी समाधान की ओर कोई गंभीर कदम है या फिर यह एक राजनीतिक रस्म अदायगी मात्र?
निरीक्षण या प्रबंधन की असफलता पर पर्दा?
गुलाबबाग में गंदगी, जर्जर मार्ग, तलाई में जमी काई और ओपन जिम में सुविधाओं की बदहाली कोई नई बात नहीं है। शहरवासी लंबे समय से इसकी शिकायत करते आ रहे हैं। यह तथ्य चिंताजनक है कि स्थानीय विधायक को इस स्थिति की जानकारी ‘शिकायत मिलने’ पर मिली — जबकि गुलाबबाग जैसे केंद्रीय सार्वजनिक स्थल की स्थिति नियमित निगरानी की अपेक्षा रखती है।
क्या यह दर्शाता है कि जनप्रतिनिधि और नगर निगम की निगरानी व्यवस्था केवल ‘शिकायत आधारित’ बनकर रह गई है?
‘तत्काल निर्देश’ कितने प्रभावी?
विधायक ने ठेकेदार पर कार्यवाही और सफाई व्यवस्था सुधारने के लिए तत्काल निर्देश दिए — परंतु यह शैली उदासीन प्रशासनिक रवैये की ओर भी इशारा करती है, जहां अधिकारी बिना निरीक्षण के ही कार्य करते हैं, और जनप्रतिनिधि निरीक्षण के समय मीडिया के सामने ‘दृश्य प्रदर्शन’ करते हैं।
इस बात पर भी विचार जरूरी है कि क्या ठेकेदार की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध है? या यह एक और मौखिक चेतावनी बनकर रह जाएगी?
ओपन जिम और सार्वजनिक भागीदारी
निरीक्षण के दौरान जिम का मुद्दा सामने आया, जिसमें बरसात के बाद उपयोगकर्ताओं को आ रही परेशानी पर समाधान के निर्देश दिए गए। लेकिन यह समाधान कब और कैसे आएगा, इसकी कोई स्पष्ट रूपरेखा सामने नहीं आई।
यहां एक बड़ा प्रश्न यह भी है: क्या स्थानीय नागरिकों और उपयोगकर्ताओं की भागीदारी केवल ‘शिकायत’ तक सीमित है, या प्रशासन उनकी राय को स्थायी सुधार प्रक्रिया का हिस्सा बनाएगा?
प्रशासनिक उपस्थिति : केवल दिखावे के लिए?
नगर निगम कमिश्नर से लेकर अभियंता और राजस्व अधिकारी तक निरीक्षण में शामिल रहे, परंतु निरीक्षण में जिन व्यवस्थागत खामियों की चर्चा हुई — वे वही हैं जिनके समाधान की ज़िम्मेदारी इन अफसरों की है।
ऐसे में यह ‘उपस्थिति’ सशक्त प्रशासनिक संकल्प दर्शाती है या फिर यह मात्र राजनीतिक दबाव में निभाई गई औपचारिकता?
निरीक्षण की राजनीति बनाम नीति
गुलाबबाग का यह निरीक्षण दृश्यात्मक रूप से ‘गतिशील प्रशासन’ की एक तस्वीर ज़रूर पेश करता है, लेकिन ज़मीनी सवाल यही हैं कि : क्या ऐसी निरीक्षण यात्राएं नियमित समीक्षा तंत्र का हिस्सा बनेंगी? क्या ‘निर्देश’ के बाद कोई सार्वजनिक रिपोर्टिंग या फॉलो-अप तंत्र विकसित किया जाएगा? क्या ठेकेदारों और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की कोई पारदर्शी प्रणाली लागू होगी?
जब तक इन सवालों पर स्पष्ट उत्तर और क्रियान्वयन नहीं होता, तब तक ऐसे निरीक्षण केवल “समाचारों की शोभा” बनकर रह जाएंगे, जन-समस्या के समाधान नहीं।
एडिटर कॉमेंट : गुलाबबाग जैसी ऐतिहासिक और सामुदायिक धरोहर को केवल सफाई का मुद्दा मानना एक सीमित दृष्टिकोण है। इसमें नागरिक सहभागिता, पर्यावरणीय संतुलन और दीर्घकालीन रख-रखाव की नीतिगत समझ जरूरी है — जो फिलहाल निरीक्षण के शोर में सुनाई नहीं देती।
स्रोत : ललित तलेसरा, मीडिया प्रतिनिधि विधायक
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