उदयपुर के पूर्व-राजपरिवार के सदस्य महेंद्रसिंह मेवाड़ का अंतिम संस्कार : शाही सम्मान के साथ विदाई

फोटो : कमल कुमावत



उदयपुर। उदयपुर की ऐतिहासिक धरती ने सोमवार को अपने एक राजा-जैसे वारिस को अंतिम विदाई दी। महेंद्र सिंह मेवाड़, जो केवल एक पूर्व राजपरिवार के सदस्य ही नहीं थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व में शाही ठाठ-बाट और जनसेवा का अद्भुत संगम था, का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा निवास स्थान समोर बाग पैलेस से शुरू होकर आयड़ स्थित महासतिया घाट पर सम्पन्न हुई, जहाँ उनकी आत्मा को शांति देने के लिए न केवल उनका परिवार, बल्कि शहरभर के लोग भी एकत्रित हुए।

“तेरे जाने से ग़म नहीं, शेर की तरह तू मरा है,
तेरे हर कदम की गूंज, अब भी यहां मर्सिया है।”

महेंद्र सिंह मेवाड़ की अंतिम यात्रा में सड़कों पर उमड़ी भीड़ और बाजारों की बंदी यह साफ दिखाती है कि यह सिर्फ एक परिवार का शोक नहीं था, बल्कि एक ऐतिहासिक युग का समापन था। उनके बेटे, नाथद्वारा से भाजपा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने उन्हें मुखाग्नि दी, और पोते देवजादित्य सिंह भी इस अंतिम यात्रा में उनके साथ थे।

समोर बाग पैलेस में अंतिम दर्शन के लिए उनकी पार्थिव देह रखी गई थी, जहां महेंद्र सिंह मेवाड़ के परिवार और उदयपुर के प्रमुख जनों की मौजूदगी में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। राजनीति और प्रशासन के कई दिग्गजों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। भाजपा के वरिष्ठ नेता, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ समेत कई अन्य नेता और ब्यूरोक्रेट्स भी इस मौके पर उपस्थित रहे।

“दुनिया में हर इंसान का एक वक्त आता है,
लेकिन जो वक्त उनकी ज़िन्दगी में था, वो कभी नहीं जाता है।”

महेंद्र सिंह मेवाड़ का जीवन एक ऐसी दास्तान है, जिसमें अडिग साहस, शाही जिम्मेदारियाँ और जनसेवा का मिश्रण था। जब 28 अक्टूबर को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया, तब से वे अनंता हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती थे, और रविवार को उनका निधन हो गया।

अंतिम यात्रा के दौरान, उदयपुर की सड़कों पर व्यापारी वर्ग ने अपनी दुकानों को बंद रखकर उन्हें सम्मान दिया। यह दर्शाता है कि महेंद्र सिंह मेवाड़ न केवल राजघराने के सदस्य थे, बल्कि उनके हर कदम में एक समाजिक आदर्श भी बसा हुआ था।

“कभी कभी खुदा भी किसी को यूँ अपना बना लेता है,
जैसे वो शाही राजघराना, एक आम इंसान बना लेता है।”

महेंद्र सिंह मेवाड़ का जीवन एक प्रेरणा है, और उनकी विदाई ने यह सिद्ध कर दिया कि सिर्फ नाम और ठाठ ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में बसने वाली शाही पहचान सबसे बडी पहचान होती है।

About Author

Leave a Reply