उदयपुर में जगमगाया शायराना दीपोत्सव : संगीत, शब्द और सुरों से महका ‘शायराना परिवार’ का दीपावली मिलन समारोह

उदयपुर। जब शब्दों ने सुरों का हाथ थामा, जब दीपों ने रौशनी से लफ्ज़ों का चेहरा नहलाया, तो उस शाम ऐश्वर्या कॉलेज की फिज़ाओं में कुछ यूँ बिखरी महक— जैसे साहित्य और संगीत ने मिलकर दीपावली को “रूहानी उत्सव” बना दिया हो।

शायराना परिवार, जो बीते 15 वर्षों से साहित्य और संगीत की सामाजिक सेवा में रमा हुआ है, ने इस बार भी अपनी परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। दीपावली मिलन समारोह के अवसर पर, शब्द और स्वर दोनों ने मंच साझा किया, और हर प्रस्तुति ने एक नई कहानी कह दी।

इस रंगीन शाम के मुख्य अतिथि थे रीजनल चीफ कंज़रवेशन ऑफिसर आर. के. जैन,
अध्यक्षता सीमा सिंह (मैनेजिंग डायरेक्टर, ऐश्वर्या कॉलेज) ने की, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रकवि राजकुमार राव, सेवानिवृत्त तहसीलदार दयाराम सुथार और संगीतकार सी.पी. गंधर्व की मौजूदगी ने महफ़िल में एक अलग ही नूर भर दिया।

दीपों की टिमटिमाहट के बीच जब मंच सजा, तो हर शायर, हर गायक ने अपनी कला से रोशनी को सुरों में बदल दिया।

मुख्य सलाहकार महेन्द्र सिंह चौधरी ने बताया कि “शायराना परिवार” पिछले पंद्रह सालों से निःशुल्क कार्यक्रमों के माध्यम से साहित्य और संगीत की नई प्रतिभाओं को मंच दे रहा है। उन्होंने कहा— “हमारा मक़सद सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि हर कलाकार के भीतर की रौशनी को पहचानना और उसे दुनिया तक पहुँचाना है।”

सुर, कविता और दिल से निकले जज़्बात

कार्यक्रम प्रभारी हेमन्त सूर्यवंशी ने बताया कि राजस्थान के विभिन्न जिलों से आए कलाकारों ने दीपावली मिलन को यादगार बना दिया। कविताएं, दोहे, छंद, मुरकियाँ, लोकगीत और फिल्मी गीत—हर रूप में कला ने दीपों की लौ को छू लिया।

मीडिया सलाहकार नरेन्द्र त्रिपाठी ने कहा—“शायराना परिवार कलाकारों को राज्यस्तरीय मंच पर ले जाने का काम करता है। उनकी कला को परखने, निखारने और सहेजने का यही सफ़र कला-संस्कृति की असली साधना है।”

 

उन्होंने बताया कि आने वाले समय में ‘साहित्य सृजन’ नाम से विशेष प्रकाशन भी जारी किया जाएगा।

महफ़िल में एक-एक प्रस्तुति जैसे दिलों को छू रही थी — सी.पी. गंधर्व ने गाया —
“मुझे दर्द दिल का पता लगा, मुझे आज किस लिए मिल गए…”राजकुमार राव ने स्वर में चाँद की चमक घोल दी —“जब-जब भी चाँद निकला, तारे जगमगाए… तुम आए…”

लक्ष्मी जी की आवाज़ में था विरह का संगीत — “ज़रा होले-होले चलो मोरे साजना…” दयाराम सुथार ने महफ़िल में रूमानी रंग भर दिए —

“ज़रा सुन हसीनाएं, नाज़नीन… मेरा दिल तुझी पर निसार है।” एच.डी. कौशल ने समर्पण की महक बिखेरी — “जन्म-जन्म का साथ है निभाने को…” पवन पारिख ने गुनगुनाया — “जिधर देखूँ, तेरी तस्वीर नज़र आती है…”

गुजरात से आईं दिव्यानी शर्मा ने स्वर में जादू भरा — “आएँगे जब सजन…” और खुद हेमन्त सूर्यवंशी ने दिलों को हौसला दिया — “ज़िंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है।”

जब कवि बोले — “ज़िंदगी एक समुंदर है”

मावली से आए कवि नरेन्द्र त्रिपाठी ने अपने शब्दों में समंदर उकेर दिया — “ज़िंदगी एक समुंदर है, उसमें बहुत बवंडर है…”शिक्षाविद् क्विना मेरी ने यादों का कारवाँ सजाया — “याद ना जाए बीते दिनों की…” जबकि ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर उत्पल नरेश सिंह चौहान ने प्रेम के गीत गुनगुनाए — “तेरे मेरे सपने अब एक हैं…”

सम्मान और समर्पण का संगम

कार्यक्रम में शामिल सभी कलाकारों, अतिथियों और सदस्यों का उपर्णा और पगड़ी पहनाकर हार्दिक स्वागत किया गया। हर चेहरे पर रौशनी, हर दिल में एक तरंग थी —
जैसे दीपावली की लौ शब्दों में बस गई हो। समारोह समन्वयक उत्पल नरेश सिंह चौहान के साथ हेमन्त सूर्यवंशी, अजीत सिंह खींची, डॉ. राजकुमार राव, अशोक परियानी, पवन पारिख, आर.पी. ज़िंगर, डॉ. हुकुमराज जोशी, जय आसवानी, सुरेश भट्ट, दिनेश बोरीवाल, आर.जे. शमिल शेख, मनीष जोशी, अनु जोशी और कई अन्य सृजनशील हस्तियों की उपस्थिति ने इस शाम को और भी रोशन बना दिया।

अंतिम सुर… जो गूंजता रह गया

दीपावली की इस जगमग रात में, उदयपुर ने सिर्फ़ दीप नहीं जलाए, बल्कि दिलों में उम्मीद की लौ भी प्रज्वलित की। “शायराना परिवार” ने दिखाया कि जब कला, कविता और इंसानियत साथ आ जाएं — तो हर शाम दीपावली बन जाती है।

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