
जब रसोई बन गई संस्कारों की पाठशाला
रसोई सिर्फ एक जगह नहीं होती, यह एक संस्कृति की धड़कन होती है — जहां स्वाद, रिश्ते और विरासत एक साथ पकते हैं। झूलेलाल भवन में आयोजित दस दिवसीय “सिंधी रसोई कार्यशाला” ने यह बात पूरी तरह सिद्ध कर दी। इसमें हर उम्र, हर विचार, हर भावना को एक डोरी में पिरोया गया — पकवानों और परंपरा की डोरी में।
दिन 1 : आस्था से आरंभ
कार्यशाला की शुरुआत हुई झूलेलाल साईं की पूजा से। ज्योति राजानी, मोनिका राजानी, हर्षा सिदवानी और अन्य महिलाओं ने जब दीप जलाए तो यह केवल रौशनी नहीं थी, बल्कि एक विश्वास था कि यह आयोजन आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा रहेगा।
दिन 2 : स्वाद की पहली परत – नानखताई और सतपुड़ा

पहले दिन की क्लास में पारंपरिक नानखताई और सतपुड़ा सिखाई गईं। महिलाएं अपने साथ आटा, घी, इलायची और कई यादें लेकर आई थीं। शोभा किशनानी और सिमरन पाहूजा ने इतनी सहजता से सिखाया कि हर प्रतिभागी खुद को प्रोफेशनल शेफ मान बैठा।
दिन 3 : मिठास का दिन – सिंगर की मिठाई और रबड़ी
तीसरे दिन रसोई में घुली वो मिठास जो सिर्फ शक्कर से नहीं, परंपरा से बनी थी। महिमा चुग और रिंकी तेजवानी ने जब रबड़ी बनाना सिखाया, तो कई प्रतिभागियों की आँखें चमक उठीं — जैसे दादी की रसोई फिर ज़िंदा हो गई हो।

दिन 4 : जब रोल बने संस्कार – सोया चाप और सिगार रोल
इस दिन का आकर्षण थे सोया चाप रोल, चीज़ सिगार रोल और वियतनामी रोल। प्रतिभागियों ने सीखा कि कैसे पारंपरिक सामग्री को आधुनिक अंदाज़ में परोसा जाए। उर्मि वरलानी और दिशा बजाज के निर्देशन में यह दिन युवाओं के लिए सबसे खास रहा।
दिन 5 : दाल पकवान और खोराक़ – हर निवाले में इतिहास

इस दिन की सबसे खास बात थी — दाल पकवान और खोराक़। एक ऐसा व्यंजन जो सिर्फ स्वाद नहीं, स्मृतियों का पुल है। इसे सिखाते हुए माया ठाकुर और माला सचदेव ने बताया कि कैसे हर दाल में समाज की आत्मा होती है।
दिन 6 : स्वाद का आधुनिक संगम – ब्रुशेटा और बीटरूट हुमस
छठे दिन क्लास में एक नया मोड़ आया — भारतीयता में वैश्विकता की झलक। बीटरूट हुमस, ब्रुशेटा, टाकोस जैसे व्यंजन बनाकर दिखाया गया कि सिंधी किचन भी इनोवेशन से पीछे नहीं।
दिन 7 : फालूदा, आइसक्रीम और केक – बच्चों का दिन
सातवें दिन बच्चों और युवाओं को सबसे ज्यादा मज़ा आया। चॉकलेट लॉलीपॉप, केक आइसिंग, आइसक्रीम प्रीमिक्स और फालूदा ने रसोई को एक खुशनुमा मेले में बदल दिया। मुस्कान मनवानी और खुशबू मूलचंदानी की टीम बच्चों की पसंदीदा बन गई।
दिन 8 : डोसा और दाल मखनी – दक्षिण और उत्तर का मिलन
आठवें दिन दक्षिण भारत के व्यंजन भी सिखाए गए — डोसा, दाल मखनी, मुरब्बा। अनीता भाटिया और रश्मि किशोर ने यह दिखाया कि सिंधी रसोई में स्वाद की कोई सीमा नहीं होती।
दिन 9: टच ऑफ क्रिएटिविटी – पनीर शॉट्स और चॉकलेट बकेट

इस दिन प्रतिभागियों ने अपनी कल्पनाओं को उड़ान दी — पनीर सूतली शॉट, चॉकलेट बकेट, वियतनामी रोल जैसे व्यंजन बना कर सबको चौंका दिया। जया जेठानी और रश्मि मीरानी की क्लास में न सिर्फ खाना बना, बल्कि कलाकारी भी परोसी गई।
दिन 10: समापन – जब पूरा झूलेलाल भवन महक उठा
कार्यशाला के अंतिम दिन जब सभी प्रतिभागी अपने बनाए व्यंजन लेकर पहुंचे, तो ऐसा लगा जैसे हर थाली एक कहानी कह रही हो।
मंच पर उपस्थित प्रताप राय चुघ और हरीश राजानी ने सभी को सम्मानित करते हुए कहा — “यह सिर्फ रसोई नहीं, एक सांस्कृतिक आंदोलन था।”
18 शेफों को ऊपरना और उपहार देकर सम्मानित किया गया। बच्चों को प्रमाणपत्र देकर प्रोत्साहित किया गया। कार्यक्रम में 180 से अधिक महिलाओं और युवाओं ने हिस्सा लिया — और रसोई से संस्कृति तक का सफर तय किया।

भावनात्मक झलकियाँ
एक 12 साल की बच्ची ने रबड़ी बनाकर सबका दिल जीत लिया — “ये मैंने नानी से सीखा है,” उसने कहा तो सभागार तालियों से गूंज उठा।
एक 60 वर्षीया महिला पहली बार केक आइसिंग सीख कर बोलीं – “अब पोते के जन्मदिन का केक मैं खुद बनाऊंगी।”
प्रतिभागियों ने आयोजन के हर दिन को इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप्स पर लाइव साझा किया, जिससे हजारों लोगों ने रसोई से जुड़े जज़्बात को महसूस किया।
समाज का भविष्य – स्वाद और संस्कृति से जुड़ा
पूर्व मंत्री हरीश राजानी ने घोषणा की कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन होंगे। उनका संदेश साफ था — “हमें अपनी जड़ों से जोड़ने वाली रसोई को सिर्फ स्वाद नहीं, संस्कारों का माध्यम मानना चाहिए।”

सिंधी रसोई ने यह सिद्ध किया कि यदि हम अपनी परंपरा को सही ढंग से संजोएं, तो हर किचन एक संस्कृति केंद्र बन सकता है। यह कार्यक्रम सिर्फ दस दिन का आयोजन नहीं था — यह एक जीवंत विरासत थी, जो अब हर उस घर में महकेगी, जहां सिंधी व्यंजन बनेंगे।
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