फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। उदयपुर की यह शिवरात्रि हर साल एक नई कथा लिखती है, जहां भक्ति, प्रेम और श्रद्धा का महासंगम होता है। बाबा महाकाल और भगवान एकलिंगनाथ की छत्रछाया में हर भक्त स्वयं को धन्य महसूस करता है। इस रात की अनुभूति शब्दों में नहीं, केवल हृदय में महसूस की जा सकती है—जहां हर सांस में शिव हैं, और हर धड़कन में ‘हर-हर महादेव’ का निनाद!
उदयपुर, महाशिवरात्रि—रात्रि आधी थी, पर भक्तों के मन में भक्ति की ज्योत पूरी तरह प्रज्वलित थी। महाकाल मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हर कोई बस भोलेनाथ के दर्शन के लिए लालायित था। पूरा माहौल ‘हर-हर महादेव’ और ‘शंभो शंकर’ के गगनभेदी जयकारों से गूंज रहा था।

मेवाड़ के आराध्य भगवान एकलिंगनाथ की विशेष पूजा के साथ ही शहर के हर मंदिर में शिव आराधना अपने चरम पर थी। घंटियों की गूंज, भस्म और बेलपत्र से सजी शिवलिंग की मनमोहक झांकी, और भक्तों के श्रद्धा से छलकते भाव—हर कोने में एक दिव्यता का अहसास था।
बाबा महाकाल के इस पावन धाम में आस्था का ऐसा दरिया बहा कि न केवल बुजुर्गों की आंखें नम हो गईं, बल्कि युवाओं और बच्चों तक में शिवभक्ति की अनोखी लहर दौड़ पड़ी। मंदिर के गर्भगृह में भक्तों का अपार स्नेह उमड़ पड़ा—कहीं महिलाएं पार्थिव शिवलिंग बनाकर जलाभिषेक कर रही थीं, तो कहीं भक्त कांवड़ लेकर जल चढ़ाने पहुंचे थे।

शिवरात्रि की यह रात सिर्फ एक पर्व नहीं, एक आध्यात्मिक यात्रा है
उदयपुर के लिए महाशिवरात्रि महज एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का उत्सव है। यहां भगवान एकलिंगनाथ को केवल एक देवता नहीं, बल्कि मेवाड़ के अधिपति, कुल देवता और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। महाराणा प्रताप से लेकर आज तक, शिव की इस पावन परंपरा ने हर पीढ़ी को शक्ति और भक्ति से जोड़ा है।

श्रद्धा की बयार में बहते आंसू, भक्ति का चरम अनुभव
मंदिर परिसर में हजारों भक्तों ने अपनी मनोकामनाओं की थाल सजाई थी। कोई शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहा था, तो कोई रुद्राष्टक का पाठ कर रहा था। जब भजन संध्या शुरू हुई, तो ऐसा लगा मानो पूरी कायनात शिवमय हो गई हो। ‘भोले तेरे दरबार में, दुखिया की सुधि ली जाती है…’ जैसे भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे। किसी की आंखें शिव प्रेम में भीग गईं, तो किसी की झोली भोलेनाथ ने भर दी।


रात्रि के अंतिम प्रहर में ‘महाआरती’—जहां शिव स्वयं विराजमान थे
रात के अंतिम पहर में जब महाआरती शुरू हुई, तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो स्वयं भगवान शिव अपने भक्तों के बीच विराजमान हैं। चारों ओर दीपों की रोशनी, भक्ति की महक और आस्था की लहरों में डूबे श्रद्धालु—यह नजारा दिल को छू लेने वाला था।
‘जय महाकाल! जय एकलिंगनाथ!’
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