उदयपुर। दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल उदयपुर को जो कुछ दिया कुदरत ने दिया। झीलें, पहाड़, नदियां, प्राकृतिक सौंदर्य। सोचिए…यदि यह सबकुछ उदयपुर नगर निगम को बनाना पड़ता तो जाने कितने इंजीनियर जनता के बीच से निकल आते। अपने उलटे सीधे तर्कों के पहाड़ खड़े कर देते। वैचारिक प्रदूषण से झीलों को लबालब कर देते। उदयपुर के जलाशयों काे जोड़ने की जिस तकनीक पर लोग गर्व करते हैं, सोचिए उस तकनीक का आज के दौर में क्रियान्वयन करना होता तो कौन-कौन मैदान में होता? एक अदद एलिवेटड रोड पर पिछले डेढ़ दशक से बहस हो रही है। तर्क रखे जा रहे हैं। लोग विरोध और समर्थन में बंट गए हैं।
सच तो यह है कि इतना सबकुछ करने की जरूरत है नहीं। उदयपुर समेत दुनियाभर में एक्सपर्ट हैं, उनको बुलाओ, तकनीकी रिपोर्ट बनवाओ, खामियों को दूर करो और रोड का निर्माण शुरू करवा दो। यहां तो कार, केबल, होटल, किराणा, रेडीमेड की दुकान चलाने वाले एक्सपर्ट बन गए हैं।
बहरहाल जो लाेग एलिवेटेड रोड का विरोध कर रहे हैं, उनकी एक बात से सहमत हुआ जा सकता है कि यदि कोई तकनीकी खामी है तो उसे दूर कर किया जाए, लेकिन एलिवेटेड रोड का निर्माण नहीं होने देना बिल्कुल भी उचित नहीं है।
जो लोग एलिवेटेड रोड का विरोध कर रहे हैं, उन्हें अजमेर में रेलवे स्टेशन के सामने बने एलिवेटेड रोड को देखकर आना चाहिए। यही नहीं जयपुर, कोटा में बने एलिवेटेड रोड को भी देखना चाहिए, जहां जनता ने तय नहीं किया, वहां की एक्सपर्ट कमेटी ने तय किया।
इंदौर शहर की इसी साल की खबर है-जहां शहर में स्वच्छता में नए आयाम गढ़े गए हैं। लेकिन बढ़ते वाहनों की संख्या के चलते लगने वाले जाम से लोगों को परेशान होना ही पड़ता है। एलिवेटेड कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है। सीएम मोहन यादव की घोषणा के बाद 350 करोड़ की लागत से बनने वाले 6.67 किमी लंबे एलिवेटेड कोरिडोर बनाया जाना प्रस्तावित है। खास बात यह है कि इंदौर शहर कई गुना ज्यादा उदयपुर से बड़ा है। वहां की आबादी भी उदयपुर से कई गुना ज्यादा है, इसके बावजूद वहां व्हाट्सग्रुप या मीडिया में एलिवेटेड रोड पर इतना डिस्कशन नहीं हो रहा है।
उदयपुर में एलिवेटेड रोड परियोजना को लेकर जारी घमासान से स्पष्ट है कि इस मुद्दे ने स्थानीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। बीजेपी को इस विवाद का समाधान जल्द से जल्द निकालना होगा, ताकि पार्टी और शहर दोनों के हित सुरक्षित रह सकें।
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