“सिंधी स्वाद की सुगंध : एक विरासत, एक अनुभव”


उदयपुर। शक्ति नगर स्थित झूलेलाल भवन की रसोई से इन दिनों कुछ और ही खुशबू आ रही थी — सिर्फ मसालों की नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा, प्रेम और यादों की। यह सिर्फ एक कुकिंग क्लास नहीं थी, यह एक यात्रा थी — उस मिट्टी की, जो सिंध से आई थी, और अब हमारी आत्मा का हिस्सा बन चुकी है।


10 दिवसीय सिंधी कुकिंग क्लासेस का आज भव्य समापन हुआ, लेकिन हर आंख में चमक और हर मन में एक मीठा सा अधूरापन था — जैसे कोई अपना घर छोड़कर जा रहा हो, जैसे कोई त्यौहार खत्म हो गया हो। यह कार्यक्रम सिर्फ व्यंजन सीखने का मंच नहीं था, बल्कि वो सूत्र था जिसने सिंधी समाज की नारी शक्ति को, परंपरा को और स्वाद की विरासत को एक सूत्र में पिरो दिया।
इन दस दिनों में सीखने का सिलसिला इतना सहज, इतना अपनापन भरा रहा कि हर भाग लेने वाली महिला को लगा — “हमने सिर्फ पकाना नहीं सीखा, हमने अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ना सीखा।”


कढ़ी-चावल की सोंधी महक, साईं भाजी की सादगी, सिंगर की मिठाई की मिठास, बड़ी की सब्ज़ी की महत्ता — हर डिश के पीछे सिर्फ रेसिपी नहीं, एक कहानी थी। और जब दाल पकवान या दाल मखनी जैसे पारंपरिक स्वाद के साथ बिस्किट्स, कुकीज़, आइसक्रीम और चॉकलेट्स की आधुनिक मिठास जुड़ी, तब यह अनुभव एक सेतु बन गया — पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच।
अंतिम दिन तो जैसे यादगार बन गया।
उर्मि वरलानी ने जब चॉकलेट लॉलीपॉप, चॉकलेट बकेट और उसकी प्यारी पैकिंग सिखाई, तो हर आंख एक बच्चे की तरह चमक उठी।
सतीश जजवारिया के वियतनामी रोल और चीज़ सिगार रोल ने जैसे यह संदेश दिया कि “खाना सिर्फ पेट नहीं, दिल भी भरता है।”
10 दिनों तक लाइव कैमरे और प्रोजेक्टर की मदद से सजीव प्रसारण हुआ, जिसमें महिलाएं एयर कंडीशंड हॉल में आराम से बैठकर व्यंजन कला को आत्मसात कर सकीं। हर दिन लगभग 180 महिलाएं, एक परिवार की तरह जुड़ती रहीं — सीखती रहीं, हंसती रहीं, और अपने जीवन में एक नई ऊर्जा भरती रहीं।


समापन समारोह के मुख्य अतिथि हरीश राजानी (जैकब आबाद पंचायत के अध्यक्ष एवं पूर्व राज्य मंत्री) ने जब कहा —
“ये कार्यक्रम हमारी जड़ों को सींचते हैं, हमारी आत्मा को पोषण देते हैं…”
तो जैसे हर मन उस बात से गूंज उठा।
उनकी ओर से दिया गया निमंत्रण भी विशेष रहा —
शनिवार को सभी प्रतिभागी वे व्यंजन बनाकर लाएं, जो उन्होंने सीखे हैं।
यह प्रदर्शनी न सिर्फ हुनर की होगी, बल्कि उस आत्मीयता की होगी, जो इन 10 दिनों में पनपी।
“सिंधी किचन क्वीन” जैसे इस पहल में योगदान देने वाले सभी प्रशिक्षकों और सहयोगियों — ज्योति राजानी, मोनिका राजानी, जया पहलवानी, अर्चना चावला, वैशाली मोटवानी, कैलाश नेभनानी, भारत खत्री, कमलेश राजानी, राजेश चुघ, अशोक पाहुजा, राहुल निचलानी — को जितनी बार धन्यवाद दिया जाए, उतना कम है। इन लोगों ने सिर्फ ज्ञान नहीं दिया, बल्कि हर प्रतिभागी को आत्मविश्वास से भर दिया।
समाज के वरिष्ठ प्रताप राय चुघ ने अंत में जो कहा, वो इस पूरी यात्रा का सार था —
“हमारी संस्कृति, हमारे स्वाद और हमारी पहचान को जीवित रखने के लिए ऐसे आयोजन जरूरी हैं… और हम इन्हें जारी रखेंगे।”
और ये सिलसिला थमता नहीं।


सोमवार, 26 मई से महिलाओं के लिए 15 दिवसीय योगा क्लास, ब्यूटी पार्लर कोर्स और अन्य प्रशिक्षण कक्षाएं शुरू होंगी —
हर शाम 4 से 6 तक, झूलेलाल भवन फिर से गुलजार होगा।
अंत में…
यह आयोजन हमें यह सिखा गया कि जब महिलाएं अपने ज्ञान, अपने हुनर, अपनी परंपरा को थामती हैं — तो समाज समृद्ध होता है। जब रसोई से प्रेम, अपनापन और संस्कृति की सुगंध उठती है, तो वह सिर्फ घर नहीं सजाती — एक पूरी सभ्यता को जीवन देती है।
सिंधी कुकिंग क्लासेस का यह समापन नहीं, एक नई शुरुआत है।
“विरासत के स्वाद को महसूस करने का समय है,
खुद को और अपनी जड़ों को पहचानने का समय है।”
वाह! क्या समापन था — और क्या स्वाद था इस संस्कृति का!

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