उदयपुर की हवाओं में अगस्त की उस दोपहर एक सन्नाटा उतर आया था, जब एक मासूम 13 वर्षीय बच्ची ने अपने पिता को रोते-रोते बताया कि उसके साथ कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी कल्पना भी किसी बाप ने अपनी बेटी के लिए कभी नहीं की होगी। बच्ची ने कांपते हुए कहा—
“पापा… सर ने कहा था, अगर मैंने किसी को बताया तो मुझे नेशनल खेलने नहीं देंगे… और आपको भी उठा लेंगे।”
बाप की आंखें लाल हो गईं। कांपते हाथों से उसने रिपोर्ट लिखवाई। आरोपी था—स्कूल का वेट लिफ्टिंग ट्रेनर, प्रदीप सिंह झाला।
शिकारी का सफर – पुलिस बनाम प्रदीप
रिपोर्ट दर्ज होते ही पूरा शहर गुस्से से सुलग उठा। मामला सिर्फ एक बच्ची का नहीं था, बल्कि हर उस पिता का था जिसकी बेटी स्कूल जाती है। जिला पुलिस अधीक्षक योगेश गोयल ने आदेश दिए—“किसी भी हालत में इस दरिंदे को पकड़ो।”
इसके बाद शुरू हुई पीछा करने की दास्तान।
9 दिनों तक, 6 राज्यों में, करीब 2500 किलोमीटर का सफर… पुलिस के दस्ते ने दर्जनों बार छापे मारे।
कभी वह गोवा की भीड़ में खो गया, तो कभी बेंगलुरु के अंधेरे इलाकों में।
मुंबई, सूरत, अहमदाबाद—हर जगह उसका साया देखा गया लेकिन वो हाथ नहीं आया।
पुलिस ने उसके बैंक अकाउंट फ्रीज़ कर दिए। अब फरारी के पैसे खत्म होने लगे थे। प्रदीप सिंह, जो खुद को बेहद शातिर समझता था, धीरे-धीरे जाल में फंस रहा था।
गिरफ्तारी का क्षण
2 सितंबर की सुबह।
उदयपुर कोर्ट चौराहे के पास, प्रदीप सिंह किसी परिचित से पैसे लेने के इंतजार में खड़ा था।
उसके चेहरे पर थकान, आंखों में बेचैनी और कपड़ों पर भागते-भागते की धूल जमी हुई थी।
अचानक, सादी वर्दी में पुलिसकर्मी भीड़ से निकले और उसे दबोच लिया।
वह तड़प उठा, हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन इस बार भागना मुमकिन नहीं था।
9 दिन और 2500 किलोमीटर के बाद शिकारी अपने ही जाल में फंस गया।
जब टूटा आरोपी – “मुझे छोड़ दो…”
थाने लाकर जब उससे पूछताछ हुई, तो पहले वह सख्ती दिखाता रहा।
लेकिन जैसे ही उसे घटनास्थल—निजी स्कूल की जिम—ले जाया गया, उसके पैर कांपने लगे।
तस्दीक के लिए जगह दिखाते वक्त उसने अचानक धक्का दिया और झाड़ियों की ओर भागा।
नदी की तरफ कूदते ही वह गड्ढे में गिरा।
पैर में चोट आई और वही पहली बार वह बुरी तरह बिलखकर रो पड़ा।
उसके आंसू जमीन पर गिरते रहे और पुलिसकर्मी खामोश खड़े रहे।
“मैंने गलती की है… मुझे माफ कर दो… मुझे जेल मत भेजो…”
उसकी चीखें गूंज रही थीं।
लेकिन ये आंसू किसी मासूम बच्ची की टूटी हुई मासूमियत लौटा नहीं सकते थे।
अपराध का बोझ और काला इतिहास
अनुसंधान में पता चला कि प्रदीप सिंह कोई पहली बार अपराध की राह पर नहीं था।
उसके खिलाफ पहले भी चोरी, लूट और डकैती के मुकदमे दर्ज थे।
तीन महीने जेल की हवा भी खा चुका था।
लेकिन इस बार उसका अपराध सिर्फ कानून के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज की आत्मा के खिलाफ था।
क्राइम स्टोरी का अंत या शुरुआत?
आज प्रदीप सिंह झाला सलाखों के पीछे है।
उसका रोना—एक अपराधी का टूटना—पुलिस डायरी में दर्ज हो गया है।
पर असली सवाल यह है—क्या उसके आंसुओं का कोई मतलब है?
क्या किसी भी अपराधी के आंसू उस मासूम बच्ची की आंखों से निकले आंसुओं के बराबर हो सकते हैं?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
यह शुरुआत है उस लंबी कानूनी लड़ाई की, जिसमें हर आंसू एक सबूत होगा, और हर सबूत न्याय की राह खोलेगा।
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