
जोधपुर। शहर की नेहरू नगर कॉलोनी में किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी कि एक घर के भीतर 17 दिन के मासूम की चीखें हमेशा के लिए खामोश कर दी गई हैं। एक नन्हा-सा जिस्म, जो दुनिया को ठीक से देख भी नहीं पाया था, अपने ही ख़ून के रिश्तों ने ऐसी बेरहमी से मिटा दिया कि सुनने वाले की रूह कांप उठे।
यह कहानी किसी पुराने लोक-वृत्तांत की नहीं, बल्कि राजस्थान की उस ज़मीनी हकीकत की है, जहां अंधविश्वास, जलन और मानसिक विचलन मिलकर एक ऐसी त्रासदी का रूप लेते हैं, जिसे शब्दों में पिरोना आसान नहीं।
सांसियों की ढाणी, गुजरावास की रहने वाली सुमन अपने मायके आई हुई थी। महज डेढ़ महीने पहले। 17 दिन—बस इतने ही दिन हुए थे उसके नवजात प्रत्युक्ष को इस दुनिया में आए। रात गहराई थी। घर की दीवारें नींद में थीं। पर उसी अंधेरे में मौत एक कोने में छिपकर घात लगाए बैठी थी।
सुमन जैसे ही बाथरूम में गई, उसके पीछे से वह पल आया जिसने पूरी ज़िंदगी को शोक में बदल दिया। आरोप है कि सुमन की चारों बहनों ने—जो बच्चे की मौसियां थीं—मासूम को उठाया, और पहले उसके नाज़ुक हाथ-पांव तोड़े, फिर उसका गला दबा दिया। उसके नरम बाल नोचे गए। किसी मासूम के साथ इससे ज़्यादा वहशीपन कौन कर सकता है?
“मेरी बहनों ने मिलकर तुम्हारे बच्चे को मार दिया…” – एक पिता की टूटी हुई आवाज़
पूनाराम का बयान सुनने वाला किसी पत्थर का भी हो तो पिघल जाएगा। वह बताते हैं—“रात करीब साढ़े तीन बजे सुमन का फोन आया। वह रोते-रोते बोली—मेरी बहनों ने… हमारे बच्चे को मार दिया। पहले मुझे लगा झगड़े में शायद बच्चा गिर गया होगा। पर जब सच पता चला कि मेरे बेटे का मुंह दबाया गया, हाथ-पांव तोड़े गए… तो दुनिया ही हिल गई।”
आरोप और भी गहरे हैं—घर की महिलाओं पर ईर्ष्या, मानसिक दबाव और अंधविश्वास के आरोप पहले से थे। पड़ोसियों के मुताबिक इस घर में अक्सर जादू-टोने जैसी गतिविधियां होती दिखती थीं। नींबू-मिर्च, राख, काले धागे—ये सब घर के बाहर यूं ही पड़े मिलते थे।

“जलन थी… कि इसकी दो संतानें हैं, घर बस गया है”
पिता का आरोप है कि चारों मौसियों को सुमन से जलन थी। वह कहता है—“मेरी सालियां चारों कुंवारी हैं। सुमन की दो संतानें हैं… बस यही बात उन्हें चुभती थी। इसी जलन ने मेरे बच्चे की जान ले ली।”
किसी परिवार के भीतर भावनाओं, रिश्तों और ईर्ष्या का ऐसा अंधेरा रूप कम ही सामने आता है।
परिवार की पृष्ठभूमि – एयरफोर्स में तैनात पिता, 7 बेटियां और एक बेटा
जानकारी के अनुसार सुमन के पिता दिल्ली में एयरफोर्स में तैनात हैं। परिवार बड़ा है—सात बेटियां और एक बेटा। जिस मासूम की हत्या हुई, वह उनकी दूसरे नंबर की बेटी सुमन का बच्चा था। लेकिन बड़े परिवार की यह रौनक, दुख और शोक से सराबोर मातम में बदल गई है।
चारों मौसी हिरासत में – पुलिस जादू-टोने के एंगल की भी जांच कर रही है
एयरपोर्ट थाना एसएचओ रामकृष्ण को शनिवार सुबह करीब साढ़े पांच बजे सूचना मिली कि एक नवजात की हत्या हुई है। पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची। पिता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई है।
चारों मौसियों को हिरासत में लिया गया है और उनसे गहन पूछताछ चल रही है। पुलिस इस मामले में हर एंगल—ईर्ष्या, मानसिक असंतुलन और जादू-टोने—सभी पर जांच कर रही है।
एक सवाल—क्या घर में दर्द था या अंधविश्वास का अंधेरा?
पड़ोसियों की गवाही भी कम चौंकाने वाली नहीं। उनका कहना है—“इस घर में अजीब चीजें होती रहती थीं। नींबू-मिर्च, राख, और कुछ अजीब सामान घर के बाहर पड़ा दिखता था। हमें हमेशा शक रहता था कि घर की महिलाएं जादू-टोना करती हैं।”
हालांकि पुलिस ने अभी किसी निष्कर्ष की पुष्टि नहीं की है, पर जांच की दिशा बेहद गंभीर और संवेदनशील है।
17 दिन का जीवन… और 17 सेकंड की निर्दयता
किसी भी समाज में बच्चे पर अत्याचार अस्वीकार्य है। पर जब 17 दिन के एक मासूम पर चार-चार वयस्क टूट पड़ें, और वह भी अपने ही खून के रिश्ते, तो यह सिर्फ अपराध नहीं—मानवता पर सबसे बड़ा सवाल है।
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