नई दिल्ली। भारत की कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब देश में वस्तु एवं सेवा कर (GST) केवल दो प्रमुख स्लैब—5% और 18%—में सिमट जाएगा। 12% और 28% की दरें समाप्त कर दी गई हैं। विलासिता और हानिकारक वस्तुओं के लिए 40% का अलग स्लैब रहेगा। यह व्यवस्था 22 सितंबर से लागू होगी।
लेकिन सवाल यह है कि इसका असर आम आदमी, उद्योग, सरकार और अर्थव्यवस्था पर कैसा पड़ेगा?
पृष्ठभूमि : क्यों ज़रूरी था सुधार?
जीएसटी को 2017 में ‘वन नेशन, वन टैक्स’ के वादे के साथ लागू किया गया था। शुरुआत में इसमें 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार मुख्य स्लैब रखे गए।
समस्या यह थी कि — बहुसंख्य वस्तुएँ मध्य दर (12% और 18%) में आती थीं, जिससे भ्रम पैदा होता था। कारोबारी और टैक्स विशेषज्ञ लगातार शिकायत कर रहे थे कि कर ढांचा बहुत जटिल है। आम जनता को भी यह समझने में कठिनाई होती थी कि किस वस्तु पर कितनी जीएसटी है।
इस पृष्ठभूमि में सरकार पर लगातार दबाव था कि जीएसटी को सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
राजनीतिक और नीतिगत संकेत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह बयान कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर सुधार किया गया” केवल औपचारिक आभार नहीं है। यह संकेत है कि सरकार चुनावी साल में ‘जन-हितैषी कर प्रणाली’ की छवि बनाना चाहती है।
राज्यों के वित्त मंत्रियों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव का समर्थन किया, इससे केंद्र-राज्य संबंधों में सहयोग का संदेश जाता है। यह भी एक राजनीतिक रणनीति है—क्योंकि जीएसटी को लेकर अक्सर राज्यों और केंद्र में विवाद होते रहे हैं, विशेषकर ‘क्षतिपूर्ति उपकर’ के मुद्दे पर।
आम आदमी पर असर
सरकार का दावा है कि यह सुधार “आम आदमी के लिए” है। आइए देखें किस तरह:
शून्य जीएसटी: दूध, ब्रेड, पनीर, सभी तरह की रोटियां। इससे दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कीमतें कम होंगी और महंगाई से राहत मिलेगी। 5% जीएसटी: साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, साइकिल, रसोई के सामान। ये वे चीजें हैं जिनका इस्तेमाल मध्यम और निम्नवर्गीय परिवार रोज़ करते हैं। 18% से 5% पर लाना: खाद्य प्रसंस्कृत वस्तुएँ जैसे पास्ता, नूडल्स, नमकीन, कॉफी आदि। शहरी मध्यम वर्ग को सीधा फायदा होगा।
जीवन रक्षक दवाएँ शून्य पर: यह एक बड़ी राहत है, खासकर गरीब और बुजुर्ग मरीजों के लिए।
कुल मिलाकर मूलभूत उपभोग पर टैक्स घटा है, जिससे महंगाई थोड़ी कम हो सकती है।
उद्योग और रोजगार पर असर
श्रम प्रधान उद्योग : सरकार ने स्पष्ट कहा कि ऐसे उद्योगों को राहत दी जाएगी। कपड़ा, फूड प्रोसेसिंग और कृषि आधारित उद्योगों को सीधा फायदा मिलेगा।
कृषि क्षेत्र : ट्रैक्टर और कृषि मशीनरी पर टैक्स 12% से घटाकर 5%। इससे खेती की लागत कम होगी और किसानों की आमदनी पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
उपभोक्ता वस्तु उद्योग : एफएमसीजी (FMCG) कंपनियों को फायदा होगा क्योंकि टैक्स कटौती से मांग बढ़ सकती है।
इसका नतीजा यह हो सकता है कि उद्योगों में निवेश और रोजगार दोनों में वृद्धि हो।
राजस्व पर असर
यहाँ एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। टैक्स दरें घटाने से सरकार की जीएसटी से आय कम हो सकती है। हालांकि, सरकार का तर्क है कि कम टैक्स → ज्यादा खपत → ज्यादा बिक्री → ज्यादा कुल कर संग्रह।
इसे ‘लाफ़र कर्व’ (Laffer Curve) के सिद्धांत से समझा जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि बहुत ऊँची कर दरें राजस्व नहीं बढ़ातीं बल्कि घटाती हैं।
अगर खपत बढ़ी तो सरकार के राजस्व पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।
विलासिता और हानिकारक वस्तुओं पर 40% कर
यह कदम ‘प्रोग्रेसिव टैक्सेशन’ (अधिक खर्च करने वालों से अधिक टैक्स) की ओर इशारा करता है। लक्ज़री कारें, महंगी शराब, सिगरेट जैसे उत्पाद महंगे रहेंगे।
इससे सरकार दो संदेश देना चाहती है—गरीब और मध्यम वर्ग को राहत, विलासिता पर खर्च करने वालों से राजस्व वसूली।
व्यापक आर्थिक असर
महंगाई पर दबाव कम: ज़रूरी वस्तुओं पर जीएसटी घटने से थोक और खुदरा मूल्य सूचकांक पर सकारात्मक असर होगा। मांग में बढ़ोतरी: घरेलू खपत बढ़ने की संभावना है।
उद्योगों को प्रोत्साहन : खासकर कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में लागत कम होगी।
सरकारी छवि: “जन-हितैषी सुधारक सरकार” की छवि चुनावी राजनीति में कारगर हो सकती है।
संभावित चुनौतियां
राज्यों को राजस्व घाटे की चिंता होगी। कर प्रशासन को नए बदलावों को लागू करने में तकनीकी और ब्यूरोक्रेसी से जूझना पड़ सकता है। अगर खपत अपेक्षित स्तर पर नहीं बढ़ी, तो सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ सकता है।
जीएसटी स्लैब घटाकर 5% और 18% कर देना भारत की कर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और जन-हितैषी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
यह सुधार आम आदमी, किसानों, स्वास्थ्य क्षेत्र और छोटे उद्योगों को तात्कालिक राहत देता है। लेकिन असली परीक्षा होगी—क्या इससे सरकार का राजस्व स्थिर रहेगा और क्या यह महंगाई नियंत्रण में कारगर साबित होगा?
यह बदलाव केवल कर सुधार नहीं, बल्कि एक राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक संदेश भी है कि सरकार “सरलीकरण और राहत” की राह पर है।
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