
गुवाहाटी। पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार माने जाने वाले असम राज्य में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 21 ज़िलों के 1506 गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं और करीब 6.33 लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं।
बाढ़ की विभीषिका के बीच पिछले 24 घंटों में छह लोगों की मौत हो गई है, जिससे बीते पांच दिनों में बाढ़ और भूस्खलन से मरने वालों की कुल संख्या 18 हो चुकी है।
श्रीभूमि से लेकर धेमाजी तक त्राहिमाम
सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों में श्रीभूमि (पूर्व में करीमगंज) प्रमुख है, जहां अकेले 94,000 से अधिक लोग बाढ़ से जूझ रहे हैं। यहाँ की प्रमुख नदियाँ खतरे के निशान को पार कर चुकी हैं और गांवों से संपर्क के सारे रास्ते टूट चुके हैं।
ब्रह्मपुत्र, बराक, बेकी, मानस, सुबनसिरी, कोपिली और जिया-भराली नदियाँ इस समय विभिन्न स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, जिससे राज्य में और अधिक इलाकों के डूबने की आशंका बढ़ गई है।
लाखों बेघर, राहत शिविरों में शरण
राज्य सरकार ने प्रभावितों की सहायता के लिए 511 राहत शिविरों की स्थापना की है, जिनमें करीब 40,000 विस्थापित लोग शरण लिए हुए हैं। इन शिविरों में ज़रूरी दवाइयों, स्वच्छ जल और खाद्य सामग्री की आपूर्ति की जा रही है, लेकिन भीड़ और संसाधनों की कमी के कारण व्यवस्था चरमराती दिख रही है।
धेमाजी, लखीमपुर, बारपेटा और दरांग जैसे जिलों से भी बड़े पैमाने पर विस्थापन की खबरें सामने आ रही हैं। ग्रामीण इलाकों में फसलें बर्बाद हो गई हैं, मवेशी बह गए हैं और मिट्टी धँसने से कई मकान ढह चुके हैं।
पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी संकट
बाढ़ का असर सिर्फ असम तक सीमित नहीं है। पड़ोसी राज्य मणिपुर में भी स्थिति गंभीर है, जहां 1.60 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। वहाँ कई क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति ठप है और मोबाइल नेटवर्क बाधित है।
मेघालय, नगालैंड, मिज़ोरम और त्रिपुरा में भी भारी बारिश से जनजीवन प्रभावित है। कई जगहों पर भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं, जिससे यातायात अवरुद्ध है और राहत कार्यों में बाधा आ रही है।
मौसम विभाग की चेतावनी : संकट टला नहीं
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने चेतावनी दी है कि 5 जून तक असम सहित समूचे पूर्वोत्तर भारत में भारी से अत्यधिक भारी बारिश जारी रह सकती है। इससे हालात और बिगड़ने की संभावना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बारिश की तीव्रता कम नहीं हुई तो प्रभावित इलाकों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफा हो सकता है और निचले इलाकों में जलजनित बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाएगा।
प्रशासनिक और सैन्य प्रयास तेज़
राज्य सरकार ने एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) और एसडीआरएफ (राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल) की कई टीमों को प्रभावित ज़िलों में तैनात किया है। सेना और वायुसेना को भी तैयार रखा गया है ताकि बाढ़ में फंसे लोगों को निकाला जा सके।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने राज्यभर में आपातकालीन स्थिति घोषित नहीं की है, लेकिन अधिकारियों को “युद्ध स्तर पर राहत कार्य” करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से भी अतिरिक्त राहत सहायता की मांग की है।
ग्रामीणों की पीड़ा: “सबकुछ बह गया, अब सिर्फ जान बची है”
श्रीभूमि ज़िले के रहने वाले रामु दास बताते हैं, “घर, खेत, अनाज, मवेशी – सबकुछ पानी में चला गया। अब तो जान बचाने के लिए हम लोग स्कूल में बने राहत कैंप में रह रहे हैं।”
एक अन्य ग्रामीण मीनाक्षी देवी का कहना है, “पानी इतना तेज़ था कि बच्चों को गोद में लेकर घर से भागना पड़ा। हमारे पास अब पहनने को भी कपड़े नहीं हैं।”
अर्थव्यवस्था पर पड़ता असर
इस बाढ़ से असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जबरदस्त झटका लगा है। चाय बागानों में काम बंद हो गया है, जिससे हजारों मज़दूरों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। इसके अलावा राज्य की धान, सरसों और सब्ज़ियों की खेती भी बर्बाद हो गई है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर यही स्थिति बनी रही तो राज्य को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है और राहत व पुनर्वास में भी भारी खर्च आ सकता है।
सवाल : हर साल बाढ़ क्यों?
हर साल असम में बाढ़ आना अब एक “नियति” बन गई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ बेबुनियाद अतिक्रमण, नदी प्रबंधन की कमी और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली की विफलता भी है।
गुवाहाटी विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् डॉ. पार्था ज्योति दत्ता कहते हैं, “ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल नदी का प्रवाह पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नहीं है, लेकिन अगर तटबंध, ड्रेनेज और अतिक्रमण हटाने के उपाय समय रहते किए जाएं तो नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है।”
“शांति चाहिए लेकिन शर्तों पर नहीं”: बिलावल भुट्टो का भारत को संदेश
संयुक्त राष्ट्र, न्यूयॉर्क | भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र गए पाकिस्तानी संसदीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान भारत के साथ शांति चाहता है, “लेकिन शर्तों पर नहीं”।
संयुक्त राष्ट्र में भुट्टो का बयान
न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए भुट्टो ज़रदारी ने कहा,
“भारत ने बिना जांच और सबूत के पहलगाम घटना के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया, जबकि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इस मामले की जांच में भारत को सहयोग देने की पेशकश की थी।”
भुट्टो ने आरोप लगाया कि भारत ने सीमा का उल्लंघन किया और “निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया”। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान “हर प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करता है” और उसके खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान ने “भारी कीमत चुकाई है”।
पाकिस्तानी पक्ष की दलील
बिलावल भुट्टो ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हाल के सप्ताहों में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव “बेहद तेज़ी से बढ़ा” और हालात ऐसे थे कि दोनों परमाणु संपन्न राष्ट्र “युद्ध के कगार पर पहुंच गए थे।”
उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति और अन्य अंतरराष्ट्रीय नेताओं की “शांतिपूर्ण हस्तक्षेप” के लिए प्रशंसा की और कहा कि इससे “युद्ध विराम संभव हो सका।”
पहलगाम हमले पर भारत का रुख
गौरतलब है कि भारत के पहलगाम क्षेत्र में हाल ही में हुए आतंकी हमले में कई सुरक्षाकर्मी और नागरिक मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों को ज़िम्मेदार ठहराया था। भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि “भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।”
इस हमले के बाद सीमा पर तनाव बढ़ गया, और भारतीय वायुसेना की कथित जवाबी कार्रवाई की खबरें भी मीडिया में आईं। हालांकि पाकिस्तान इन घटनाओं का खंडन करता रहा है।
विजय माल्या ने RCB की जीत पर जताई खुशी, बोले – “मेरा सपना सच हुआ”
बेंगलुरु | आईपीएल 2025 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की ऐतिहासिक जीत के बाद जहां देशभर में जश्न का माहौल है, वहीं टीम के पूर्व मालिक विजय माल्या ने भी इस उपलब्धि पर भावुक प्रतिक्रिया दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर माल्या ने टीम को बधाई दी और इसे “अपने सपने के सच होने” जैसा बताया।
विजय माल्या का पोस्ट : भावना और गर्व का मिश्रण
विजय माल्या ने लिखा: “जब मैंने RCB की स्थापना की, तो मेरा सपना था कि आईपीएल ट्रॉफी बेंगलुरु में आए। आज वो सपना पूरा हुआ। उन सभी को ढेरों बधाई और धन्यवाद जिन्होंने मेरा यह सपना सच किया।”
उन्होंने आगे लिखा: “मुझे यह सौभाग्य मिला कि एक युवा खिलाड़ी के रूप में मैंने विराट कोहली को चुना। यह वाकई काबिले-तारीफ़ है कि वह 18 सालों से RCB के साथ जुड़े हुए हैं।”
विजय माल्या ने RCB की ऐतिहासिक टीम में शामिल दो दिग्गजों – क्रिस गेल और एबी डिविलियर्स – को भी याद करते हुए कहा: “मुझे यह सम्मान भी मिला कि मैंने यूनिवर्स बॉस क्रिस गेल और मिस्टर 360 एबी डिविलियर्स को टीम में शामिल किया, जो RCB के इतिहास का कभी न भूले जाने वाला हिस्सा रहेंगे।”
इसराइल ने सीरिया में हथियारों के ठिकानों को बनाया निशाना, क्षेत्रीय तनाव फिर चरम पर
दमिश्क/तेल अवीव | सीरिया और इसराइल के बीच एक बार फिर सैन्य तनाव ने गंभीर रूप ले लिया है। इसराइल ने मंगलवार को दक्षिणी सीरिया में हथियारों के ठिकानों पर मिसाइल हमले किए, जिनमें कथित तौर पर “भारी जान-माल का नुक़सान” हुआ है। ये हमले सीरिया से इसराइल की ओर दागी गई दो मिसाइलों के जवाब में किए गए बताए जा रहे हैं।
क्या हुआ?
इसराइल के रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए बताया कि सीरिया के दक्षिणी इलाक़ों में मौजूद हथियार भंडारण केंद्रों और सैन्य ठिकानों को इसराइली वायुसेना ने निशाना बनाया।
इसराइल के रक्षा मंत्री इसराइल काट्ज़ ने सीधा आरोप लगाते हुए कहा:
“हम इन हमलों के लिए सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा को ज़िम्मेदार मानते हैं। उन्होंने हमारे नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डाला है।”
दूसरी ओर, सीरिया के विदेश मंत्रालय ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि:
“इसराइल जानबूझकर दक्षिणी सीरिया को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है और ये हमला सीरियाई संप्रभुता का घोर उल्लंघन है।”
बदलता परिदृश्य: बशर अल-असद की विदाई और अल-शरा का उदय
गौरतलब है कि दिसंबर 2024 में एक सशस्त्र विद्रोह के बाद लंबे समय तक सीरिया पर शासन करने वाले बशर अल-असद को सत्ता से हटना पड़ा था। इस विद्रोह का नेतृत्व अहमद अल-शरा ने किया था, जो अब सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति हैं।
हालांकि, उनकी सरकार को अब तक संयुक्त राष्ट्र सहित कुछ ही देशों ने मान्यता दी है। इसराइल समेत कई देशों ने अल-शरा की सरकार पर अविश्वास जताया है, खासकर सीरिया में ईरान समर्थित गुटों की मौजूदगी को लेकर।
हालात क्यों हैं तनावपूर्ण?
1. ईरानी प्रभाव और इसराइल की आशंका
इसराइल का पुराना आरोप रहा है कि सीरिया में मौजूद ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह और अन्य मिलिशिया गुट उसके लिए बड़ा खतरा हैं। अब जबकि अल-शरा सत्ता में हैं, इसराइल को आशंका है कि इन समूहों की गतिविधियां और बढ़ सकती हैं।
2. सीमा पर मिसाइलें
सीरियाई क्षेत्र से इसराइल की ओर दागी गई मिसाइलें भले सीधे नुकसान न पहुँचा सकी हों, लेकिन वे इसराइल की “शून्य सहिष्णुता नीति” का उल्लंघन मानी गईं। इससे जवाबी हमले को लेकर इसराइल के तर्क को बल मिला।
3. वार्ता का विफल होना
पिछले कुछ हफ्तों में मिस्र और रूस की मध्यस्थता में इसराइल और सीरिया के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता हुई थी, लेकिन अहम मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई। इसराइल ने खासकर ईरानी हथियारों की आपूर्ति को लेकर सख्त रुख अपनाया था।
क्षेत्रीय संतुलन पर असर
यह ताज़ा हमला केवल सीरिया और इसराइल के बीच नहीं, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि सीरिया के भीतर लड़ाई और भड़कती है, तो इसमें ईरान, रूस और तुर्की जैसे अन्य पक्ष भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं।
एलन मस्क की तीखी आलोचना: ट्रंप के टैक्स-बिल को बताया ‘घिनौना’, बोले – “वोट करने वालों को शर्म आनी चाहिए”
वॉशिंगटन/सैन फ्रांसिस्को | अमेरिकी टेक अरबपति और टेस्ला-एक्स-स्पेसX प्रमुख एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के एक अहम आर्थिक क़ानून पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने अमेरिका के टैक्स और खर्च से जुड़े बिल को न केवल ‘निराशाजनक’ बताया, बल्कि उसे ‘घिनौना’ (disgusting) कहते हुए ट्रंप के समर्थकों पर भी करारा तंज कसा है।
📜 बात किस बिल की हो रही है?
यह बिल मई 2025 में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (अमेरिकी संसद का निचला सदन) में पारित हुआ था। इसके तहत:
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कई ट्रिलियन डॉलर की टैक्स छूट दी गई,
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रक्षा खर्च में बड़ी बढ़ोतरी की गई,
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और अमेरिकी सरकार को अधिक कर्ज लेने की अनुमति दी गई।
 
इस बिल का मकसद ट्रंप प्रशासन के अनुसार आर्थिक प्रगति, सैन्य मज़बूती और निवेश को प्रोत्साहन देना है। लेकिन आलोचकों की नजर में यह कानून राजकोषीय अनुशासन को कमजोर, धनी वर्ग को लाभ पहुंचाने वाला, और राष्ट्रीय बजट घाटा बढ़ाने वाला है।
मंगलवार को एलन मस्क ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर सिलसिलेवार पोस्ट किए। उन्होंने लिखा:
“यह बिल घिनौना है। जिन्होंने इसके पक्ष में वोट किया उन्हें शर्म आनी चाहिए।”
“यह अमेरिका के पहले से ही बहुत बड़े बजट घाटे को और बढ़ाकर 2.5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाएगा। यह भविष्य की पीढ़ियों पर असहनीय कर्ज़ का बोझ डालेगा।”
एलन मस्क हाल ही में बनाए गए Department of Government Efficiency (DOGE) के सदस्य थे, जिसे सरकार के खर्च को तर्कसंगत बनाने के लिए गठित किया गया था। लेकिन मस्क ने सिर्फ 129 दिनों के बाद ही ट्रंप प्रशासन को अलविदा कह दिया।
प्रशासन से बाहर आने के बाद यह पहली बार है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से ट्रंप की आर्थिक नीतियों की इतनी कड़ी आलोचना की है।
पहले वे इस बिल को ‘निराशाजनक’ कहते रहे थे, लेकिन अब ‘घिनौना’ कहना दर्शाता है कि उनका मोहभंग काफी गहरा है।
📉 क्या हैं मस्क की आपत्तियां?
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बजट घाटा:
मस्क का कहना है कि यह कानून अमेरिकी बजट घाटे को $2.5 ट्रिलियन तक पहुँचा देगा। - 
जनता पर बोझ:
उनका मानना है कि इसका असर सीधे नागरिकों की जेब और अगली पीढ़ियों के भविष्य पर पड़ेगा। - 
अधिकारियों की ज़िम्मेदारी पर सवाल:
उन्होंने कहा, “हमें ऐसे लोगों को जवाबदेह ठहराना चाहिए जो इस तरह के विधेयकों के लिए वोट करते हैं, जो हमारे बच्चों को कर्ज में डुबो देंगे।” 
🇺🇸 राजनीतिक भूचाल की आहट?
एलन मस्क की इस टिप्पणी को ट्रंप समर्थकों के बीच गंभीर असहमति के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। एक ओर ट्रंप 2024 के चुनाव जीतकर दूसरे कार्यकाल में हैं और आक्रामक आर्थिक नीतियों को लागू कर रहे हैं, वहीं मस्क जैसे कारोबारी दिग्गज का विरोध रिपब्लिकन पार्टी के भीतर मतभेदों को उजागर करता है।
राजनीतिक विश्लेषक नैन्सी ब्रूक्स कहती हैं:
“एलन मस्क जैसे हाई-प्रोफाइल इनोवेटर का ट्रंप के खिलाफ इस तरह बोलना दर्शाता है कि टेक और बिजनेस समुदाय में आर्थिक नीति को लेकर दरारें बढ़ रही हैं।”
मस्क ने साफ किया है कि वे इस मुद्दे पर “मौन नहीं रहेंगे”। उन्होंने अपने फॉलोअर्स से अपील की है कि वे उन सांसदों से जवाब मांगें जिन्होंने “आर्थिक आत्मघाती बिल” का समर्थन किया।
संभावना जताई जा रही है कि एलन मस्क निकट भविष्य में स्वतंत्र रूप से एक सार्वजनिक बजट-जागरूकता अभियान शुरू कर सकते हैं।
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