-नानी बाई के मायरे का दर्शन करने दूर-दूर से पहुंचे भक्त
-पलाना खुर्द में भक्ति और उल्लास का मेला, टूट कर नाचे सभी
-कथा व्यास ने किया नई पीढ़ी में सनातन संस्कारों के संवर्धन का आह्वान
-गांव के 300 साल पूरे होने पर हुआ यह आयोजन बन गया ऐतिहासिक

पलाना खुर्द/उदयपुर। ‘ऐजी म्हारा नटवर नागरिया, पधारो म्हारा नटवर नागरिया’ भक्त नरसी महता की करुण टेर पर द्वारिकाधीश कच्ची नींद में औचक कर उठ पड़े और नानी बाई का मायरा भरने दौड़ पड़े, उनके साथ उनकी पटरानियां भी जोड़े से मायरा भरने की परम्परा निभाने चल पड़ीं। पचरंगी पाग और मायरे का मौड़ बांधकर द्वारिकानाथ ने ‘सांवलिया सेठ’ का रूप धरा और जैसे ही मायरा भरने पहुंचे और गूंज उठा ‘पलाना में पधारिया चारभुजानाथ, मायरो भरवा ने’। नाचते-गाते भक्तजनों के साथ आए ठाकुरजी और पटरानियों ने ज्यों ही नानी बाई को मायरे की चूंदड़ी ओढ़ाई, द्वारिकाधाम पाण्डाल भक्तवत्सल भगवान चारभुजानाथ के जयकारों से गूंज उठा। कथा महोत्सव में उपस्थित विशाल जनमैदिनी उल्लास से भर उठी और क्या युवा क्या वृद्ध, सभी अपने स्थान पर खड़े होकर उल्लास से नाचने लगे।

उदयपुर जिले की मावली तहसील के पलाना खुर्द गांव में माहेश्वरी समाज के तत्वावधान में चल रहे तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा महोत्सव भगवान चारभुजानाथ के जयकारों और उल्लास के साथ शनिवार को सम्पन्न हुआ। अंतरराष्ट्रीय कथा व्यास रामस्नेही संत दिग्विजय राम महाराज की निर्मल और मधुर वाणी में संगीतमय कथा के तीसरे और अंतिम दिन भक्त नरसी और नानीबाई की करुण पुकार के मार्मिक वर्णन ने भक्तों की भावविह्वल कर दिया। कथा व्यास ने कहा कि जब अंजार नगर के लोगों ने भगवान से पूछा कि इतना क्यों लुटा रहे हो, तब भगवान ने कहा कि वे तो भक्तों के अधीन हैं, वे अपने भक्तों के लिए बीच बाजार में बिकने को तैयार हैं, लेकिन कोई नरसी बनकर आए तो।

समापन अवसर पर उदयपुर शहर के चांदपोल रामद्वारा के महंत नरपतराम महाराज सहित संत निर्मल राम महाराज, संत मुमुक्षुराम महाराज ने भी विचार रखे। सभी ने संस्कारों की इस सरिता को निरंतर प्रवाहमान रखने का आह्वान किया। अंतरराष्ट्रीय कथा व्यास रामस्नेही संत दिग्विजय राम महाराज के गुरु संत रमतराम महाराज का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ। आरंभ में संत वंदन-अभिनंदन के पश्चात इस आयोजन की व्यवस्थाओं में लगे कार्यकर्ताओं, प्रबुद्धजनों तथा अन्य शहरों से आए माहेश्वरी समाज के प्रमुख लोगों को संत वृंद ने आशीर्वाद प्रदान किया। कथा महोत्सव के समापन पर क्षेत्र के विभिन्न समाजों से प्रबुद्धजन, जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए।

तीन दिवसीय इस आयोजन के सानंद सम्पन्न होने के उपलक्ष्य में फाग उत्सव भी रखा गया। भक्तों ने भगवान के साथ पुष्पों की होली खेली। द्वारिकाधाम फाग उत्सव के उल्लास में रम गया। अंत में पोथीजी की महाआरती हुई।
प्री-वेडिंग का क्या औचित्य

-कथा व्यास ने इन दिनों बढ़ चले प्री-वेडिंग शूट के चलन पर भी सवाल उठाया और कहा कि इसका औचित्य क्या है। उन्होंने कहा कि इसके लिए महीने भर पहले परिवार समय देता है, किन्तु विवाह के समय जब पंडित जी परम्पराओं के निर्वहन के लिए कहते हैं, तब उनसे कहा जाता है कि ब्याव शीघ्र करवाओ।
तिलक-शिक्षा-भारतीय परिधान से शर्म क्यों

-कथा व्यास ने कहा कि नई पीढ़ी को तिलक-शिक्षा-जनेऊ-भारतीय परिधान में शर्म क्यों आती है। कथा व्यास ने कहा कि फिर हम किस बात के हिन्दू हैं। उन्होंने कहा कि धन्य है वह सिख समाज जिसने अपनी गुरु परम्परा को शीश पर पगड़ी को सहेज रखा है, दुनिया में कहीं भी हों, शीश पर पगड़ी उनके मान और शान की प्रतीक है। उन्होंने आज के माता-पिताओं से कहा कि वे स्वयं भी मंदिर जाने की नियमितता बनाएं और बच्चों को भी संस्कारित करेंग। हम मर्यादा, परम्परा और संस्कार का पालन करेंगे तभी बच्चे करेंगे। बच्चों को चांद छूने की कहानियां सुनाने के बजाय चरण छूने के संस्कार दीजिये।
वृद्धाश्रम पर भी सवाल
-कथा व्यास ने देश में बढ़ रहे वृद्धाश्रमों पर भी चिंता व्यक्त की। राम चरित मानस की चौपाई ‘प्रातःकाल उठि के रघुनाथा-मात पिता गुरु नावहि माथा’ सुनाते हुए कहा कि आज यह संस्कार हम बच्चों को देंगे और इनका हम स्वयं पालन करेंगे तभी वृद्धाश्रम कम होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना राक्षस इस बात की सीख देकर जा चुका है कि परिवार का क्या महत्व है, इसे समझें और हमारे धर्मग्रंथ जो हमारे संस्कारों के ज्ञान का भण्डार हैं, उनका सार बच्चों को समझाएं। उन्होंने संतों की संगति का भी आह्वान किया और कहा कि संत हमारे चलते-फिरते पुस्तकालय हैं। सत्संगति हमारे चित्त को चमकाती है।

विज्ञान पर भी खरी हमारी परम्पराएं
-कथा व्यास ने बताया कि ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटी में तिलक व अन्य पर शोध हुआ है। जब आज्ञाचक्र पर चंदन का तिलक लगाया जाता है तो वह शीतलता प्रदान करता है। इसी तरह शिखा एकाग्रता बढ़ाती है। सूर्य को जल अर्पित करने के दौरान जब भोर की रश्मियां जल से गुजरकर हमारे नेत्रों में आती हैं, तो उससे नयनज्योति बढ़ती है।
रात को गरबा, सुबह प्रभातफेरी
-तीन दिवसीय इस कथा महोत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार रात को गांव के चौक में गरबा रास का आयोजन हुआ। इस आयोजन में गांव में कथा श्रवण करने के लिए एकत्र हुए सभी परिवार शामिल हुए और पारम्परिक गरबा किया। शनिवार को प्रभातफेरी का क्रम जारी रहा। सुबह 6 बजे बड़ी संख्या में महिला-पुरुषों ने पूरे गांव में भजन-कीर्तन करते हुए फेरी निकाली।
विदाई की वेला में भावुक हुए सभी
-कथा समापन पर महाप्रसाद का वितरण हुआ। पलाना खुर्द सहित जगह-जगह से आए भक्तगणों ने महाप्रसाद ग्रहण किया। इसके बाद संत वृंद को भावपूर्ण विदाई दी गई। इसके साथ ही पलाना खुर्द गांव में विभिन्न शहरों से आए परिवारजनों ने भी विदा लेना शुरू किया। विदाई की इस वेला में कई की आंखें भर आईं, कथा सुनने आई बहन-बेटियों की विदाई के दौरान एक बार फिर मानो वही माहौल बन गया जैसे विवाह के वक्त बेटी विदा हो रही हो। और होता भी क्यों नहीं, बरसों बाद गांव में सभी परिवार एक साथ एकत्र हुए थे, तीन दिनों से साथ उठना-बैठना, साथ भक्ति-भजन करना, साथ नाचना, साथ कथा सुनना, साथ भोजन करना, साथ रंगोली सजाना, दीप प्रज्वलित करना, ऐसा अवसर बार-बार कहां आता है। भावुक होकर भर आई आखों के साथ सभी इस आध्यात्मिक, आत्मीय, स्नेह एवं प्रेम के महायज्ञ की स्मृतियों को संजो कर लौटे।
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