महावीर जयंती : उदयपुर में गूंजे भगवान महावीर के जयकारे…यहां पढ़िए रिपोर्ट और देखिए तस्वीरें

फोटो : कमल कुमावत

— पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया बोले: “अनेकांतवाद अपनाएंगे तो विश्व में तनाव खत्म हो जाएगा”

उदयपुर। भगवान महावीर का जन्मकल्याणक महोत्सव इस बार उदयपुर की धरती पर एक अलौकिक छटा बिखेर गया। पूरे शहर में जब “वीर, वीर, वीर” की गूंज उठी, तो ऐसा लगा मानो धर्म, दर्शन और अहिंसा की ऊर्जा हर दिशा में फैल गई हो। सकल जैन समाज की ओर से निकाली गई शोभायात्रा ना केवल भव्यता में अद्वितीय रही, बल्कि उसमें समाहित था महावीर के आदर्शों का जीवंत संदेश।

“जियो और जीने दो” की झलक हर कदम पर
शोभायात्रा में रथों पर सजे भगवान महावीर के जीवन प्रसंग, बाल महावीर से लेकर दीक्षा और केवलज्ञान तक के दृश्यों ने श्रद्धालुओं को मोह लिया। बच्चों ने महावीर स्वामी के उपदेशों पर आधारित लघु नाटिकाएं प्रस्तुत कीं, तो महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा ने राजस्थान की संस्कृति को नई ऊंचाई दी।

महावीर का यह दोहा शोभायात्रा के हर मोड़ पर प्रतिध्वनित होता रहा:

“अहिंसा परमो धर्म, यही सच्चा ज्ञान।
मन-वचन-काया से करो, प्राणी मात्र का सम्मान।”

गुलाबचंद कटारिया का संदेश : अनेकांतवाद है समाधान की कुंजी


पंजाब के राज्यपाल और उदयपुर के गौरव गुलाबचंद कटारिया ने शोभायात्रा में शिरकत करते हुए कहा, “भगवान महावीर का ‘अनेकांतवाद’ केवल दार्शनिक अवधारणा नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द का आधार है। यदि हम दूसरों के दृष्टिकोण को भी समझें, तो आज के वैश्विक तनाव स्वत: समाप्त हो जाएंगे।”

कटारिया ने आगे कहा:
“समता, संयम, क्षमा और करुणा—महावीर के ये चार स्तंभ यदि जीवन में उतर जाएं, तो न हिंसा रहे, न वैमनस्य।”

नगर के कोने-कोने में धर्म की अलख
शोभायात्रा सूरजपोल से प्रारंभ होकर हाथीपोल, बापू बाजार, टाउनहॉल होते हुए गांधी ग्राउंड पहुंची। मार्ग में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने फूल बरसाकर स्वागत किया। व्यापारियों ने शोभायात्रा के सम्मान में अपने प्रतिष्ठान बंद रखे और सेवा शिविर लगाए। लस्सी, ठंडाई और फलाहार के साथ धर्म की महक बिखरी रही।

महावीर का संदेश जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है:

“न कोई मेरा शत्रु है, न कोई पराया।
मैं सभी में आत्मा देखूं, यही सत्य माया।”

भावपूर्ण समापन
शोभायात्रा का समापन सामूहिक प्रार्थना और ‘शांति पाठ’ के साथ हुआ। अंतिम रथ से उठती ध्वनि – “धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो” – केवल गूंज नहीं थी, बल्कि उदयपुरवासियों की ओर से भगवान महावीर को एक संकल्प-भेंट थी कि हम भी उनके बताये मार्ग पर चलें, और इस धरती को अहिंसा, शांति और सत्य से सराबोर कर दें।

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