स्मृति शेष : एक सूरज था जो अस्त हो गया

मेवाड़ की हवाओं में एक अनूठी ख़ुशबू बसी रहती है—इतिहास की, वीरता की, और उस गौरवशाली परंपरा की, जिसने सदियों से इस भूमि को रौशन किया है। लेकिन आज, उस उजाले का एक बड़ा हिस्सा अंधेरे में समा चुका है। मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़, जो अपने वंश की 76वीं पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। 16 मार्च 2025 को उन्होंने इस दुनिया से विदाई ले ली। उनका जाना सिर्फ एक व्यक्ति का बिछड़ना नहीं था, बल्कि एक युग का अवसान था।

एक राजसी सुबह का जन्म

13 दिसंबर 1944 को जब उदयपुर के सिटी पैलेस में एक नन्हे शहज़ादे की किलकारी गूंजी, तो पूरे मेवाड़ में उत्सव का माहौल था। यह शहज़ादा कोई और नहीं, बल्कि महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के पुत्र अरविंद सिंह थे। उनके रगों में वही लहू दौड़ता था, जिसने हल्दीघाटी में इतिहास रचा था, जिसने मेवाड़ की आन-बान और शान के लिए कभी सिर नहीं झुकाया था।

बचपन से ही उनकी परवरिश शाही रीति-रिवाजों के साथ हुई, लेकिन उनमें सादगी और जिज्ञासा कूट-कूट कर भरी थी। शुरुआती शिक्षा उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज से प्राप्त की और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षा उत्तीर्ण की। उदयपुर के महाराणा भूपाल महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के बाद, वे इंग्लैंड और अमेरिका चले गए, जहाँ उन्होंने होटल प्रबंधन और प्रशासन की बारीकियाँ सीखीं। मगर उनकी आत्मा हमेशा मेवाड़ की धूल से जुड़ी रही।

एक विरासत का रखवाला

1984 में जब उनके पिता महाराणा भगवत सिंह का निधन हुआ, तब उनके कंधों पर 1500 वर्षों की विरासत को संभालने की ज़िम्मेदारी आ गई। उन्होंने इसे एक मिशन की तरह लिया। सिटी पैलेस हो, जगमंदिर हो, या मेवाड़ के ऐतिहासिक मंदिर—हर धरोहर को उन्होंने आधुनिकता और परंपरा का संगम बनाकर संरक्षित किया।

उन्होंने मेवाड़ को पर्यटन के वैश्विक नक्शे पर स्थान दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। उनके नेतृत्व में होटल, महल और सांस्कृतिक केंद्र सिर्फ इमारतें नहीं, बल्कि ‘जीवंत धरोहर’ बन गए। वे हमेशा कहते थे, “विरासत केवल दीवारों में नहीं, संस्कारों में होती है।”

धर्म, समाज और संगीत से अनुराग

एकलिंगनाथ जी के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। वे सिर्फ राजसी परिवार के उत्तराधिकारी नहीं, बल्कि एक ऐसे सेवक थे, जिन्होंने धर्म और समाज सेवा को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया। वे नियमित रूप से मंदिरों का दौरा करते, दान-पुण्य करते और समाज के हर वर्ग के साथ आत्मीयता से मिलते।

संगीत उनके जीवन का दूसरा प्यार था। वे स्वयं एक उत्कृष्ट सितार वादक थे और भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि रखते थे। उनकी पहल पर मेवाड़ में वार्षिक संगीत समारोह आयोजित किए जाने लगे, जहाँ देशभर के ख्याति प्राप्त कलाकार प्रस्तुति देते थे।

खेलों में रुचि और नेतृत्व क्षमता

अरविंद सिंह मेवाड़ सिर्फ एक प्रशासक या कला संरक्षक ही नहीं थे, बल्कि खेलों के भी बड़े प्रेमी थे। उन्होंने मेयो कॉलेज की क्रिकेट टीम का नेतृत्व किया और राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन से भी जुड़े रहे। पोलो खेल को जीवित रखने के लिए उन्होंने विशेष संस्थाएँ स्थापित कीं, जिससे यह शाही खेल आज भी मेवाड़ की धरती पर सांस ले रहा है।

सूरज का अस्त होना

समय किसी के लिए नहीं रुकता। 16 मार्च 2025 को, इस सूर्यवंशी योद्धा ने अपनी अंतिम सांस ली। उदयपुर ही नहीं, पूरा देश शोक में डूब गया। सिटी पैलेस में हज़ारों लोगों की आँखें नम थीं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की विदाई नहीं, बल्कि मेवाड़ की उस परंपरा का अंत था, जिसमें शासक को राजा नहीं, जनता का सेवक माना जाता था।

विरासत जो अमर रहेगी

आज, जब हम उनकी स्मृति में सिर झुकाते हैं, तो यह केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक प्रण भी है—कि उनकी छोड़ी हुई विरासत को आगे बढ़ाया जाए। उनका जीवन हमें सिखाता है कि असली राजसी ठाट-बाठ महलों में नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और संस्कृति के संरक्षण में है।

अरविंद सिंह मेवाड़ चले गए, मगर उनकी कहानी हमेशा जिंदा रहेगी। उनके विचार, उनका योगदान, और उनकी विरासत—ये सब कभी भी धुंधले नहीं होंगे। वे एक सूरज थे, जो अस्त तो हो गए, मगर उनकी रोशनी अनंतकाल तक इस धरती को आलोकित करती रहेगी।

 

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