Editor’s comment : इस मामले की खास बात यह है कि एक मुस्लिम प्रिंसिपल के इन आरोपों की जांच में हिंदू भाइयों ने प्रिंसिपल के पक्ष में बयान दिए थे। यही भारत के लोगों की खासियत है।
इंदौर। इंदौर के एक लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ लगे सभी आरोप गलत साबित हुए हैं। इस मामले में अब डेढ़ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज मुकदमें को अनुचित बताते हुए एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया है।
दरअसल इंदौर स्थित गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. इनामुर्रहमान के खिलाफ ख़िलाफ़ नमाज़ पढ़ने, इसके लिए प्रेरित करने, लाइब्रेरी में ‘देश विरोधी’ किताब रखने, मुसलमान शिक्षकों की भर्ती करने और ‘लव जिहाद’ को बढ़ावा देने जैसे आरोपों का मुक़दमा दर्ज कराया गया था।
यह मुकदमा दर्ज होने के बाद सरकार ने उनसे इस्तीफ़ा ले लिया था। मगर अब डेढ़ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे को ‘अनुचित’ बताते हुए एफ़आईआर रद्द करने का आदेश दिया है।
डॉक्टर इनामुर्रहमान को दिसंबर 2022 में उस समय सस्पेंड कर दिया गया था, जब आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े एक समूह ने उनके ख़िलाफ़ द्वेषपूर्ण व्यवहार जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रिंसिपल के खिलाफ जो मुकदमा तो रद्द हो गया, लेकिन जो जख्म उनके दिलो दिमाग में लगे हैं, वो मिना मुश्किल है।
प्रिंसिपल डॉक्टर इनामुर्रहमान ने सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत किया है क्योंकि उनके रिटायर होने से कुछ दिन पहले उन्हें इंसाफ़ मिला है, मगर शायद जो दर्द उनके सीने में है, इससे वह और बढ़ गया है।
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में उन पर यह आरोप भी लगाया गया कि उन्होंने मुसलमान शिक्षकों को कॉलेज में नौकरियां दी हैं और हिंदू छात्रों के ख़िलाफ़ इम्तिहानों में भेदभाव किया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रोफ़ेसर इनामुर्रहमान ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। डॉक्टर इनामुर्रहमान के ख़िलाफ़ आरोपों को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “एफ़आईआर का जायज़ा लेने से यह बात साफ़ हुई कि एफ़आईआर अनुचित होने के सिवा कुछ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफ़आईआर में लगाया गया कोई भी आरोप साबित नहीं होता।
अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार की कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि यह अत्याचार और प्रताड़ना का मामला लगता है।
डॉक्टर इनामुर्रहमान 31 मई को रिटायर हो रहे हैं. अभी सरकार की ओर से शुरू की गई विभागीय जांच में उन्हें अगले माह जांच कमिटी के सामने पेश होने को कहा गया है।
वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ के अनुसार, अदालत ने सरकार के वकील से सवाल किया, “मध्य प्रदेश सरकार ऐसे मामले में अदालत में एक एडिशनल एडवोकेट जनरल को क्यों भेज रही है? साफ़ तौर पर ऐसा लगता है कि यह एक प्रताड़ना का मामला है.”
अदालत ने कहा, “कोई उन्हें यानी आवेदन देने वाले को परेशान करने में दिलचस्पी रखता है। हम अनुसंधान अधिकारी को नोटिस जारी करेंगे।
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