सैयद हबीब। 15 दिसंबर, 2024, भारतीय और वैश्विक संगीत जगत के लिए एक ऐसा दिन बन गया, जब लय और सुर के जादूगर, उस्ताद जाकिर हुसैन, हमेशा के लिए खामोश हो गए। 73 वर्ष की आयु में हृदय संबंधी समस्याओं के कारण उनका निधन हुआ। उनकी इस विदाई से शास्त्रीय संगीत ने अपने सबसे बड़े नायकों में से एक को खो दिया।
एक महान विरासत का आरंभ
9 मार्च, 1951 को मुंबई में जन्मे जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिली थी। उनके पिता, उस्ताद अल्लाह रक्खा, पहले ही तबला वादन में वैश्विक स्तर पर नाम कमा चुके थे। जाकिर बचपन से ही संगीत की धारा में बहने लगे और कम उम्र में ही तबले की बारीकियों में महारत हासिल कर ली।
उन्होंने अपनी शिक्षा सेंट माइकल हाई स्कूल और सेंट जेवियर्स कॉलेज से पूरी की, लेकिन उनकी असली पहचान उनके तबले की थाप थी। संगीत उनके लिए न केवल कला थी, बल्कि एक साधना थी।
तबले की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाना
जाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा और निरंतर अभ्यास से तबला वादन को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया। उनकी उंगलियों का जादू जब तबले पर चलता, तो हर सुर एक कहानी कहता।
उन्हें न केवल भारतीय कलाकारों, जैसे पंडित रवि शंकर और उस्ताद अली अकबर खान के साथ संगत करने का अवसर मिला, बल्कि उन्होंने दुनिया भर के पश्चिमी कलाकारों के साथ भी संगीत के सेतु बनाए।
एक बहुमुखी व्यक्तित्व
जाकिर हुसैन की प्रतिभा केवल संगीत तक सीमित नहीं थी। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी कला का परिचय दिया। ‘साज़’ और ‘हीट एंड डस्ट’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने दर्शकों को प्रभावित किया। उनकी आखिरी फ़िल्म ‘मंकी मैन’, जो 2024 में रिलीज़ हुई, उनकी रचनात्मकता का प्रतीक थी।
निजी जीवन और प्रेरणा
जाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना और शिक्षिका एंटोनिया मिनेकोला से विवाह किया। उनकी दो बेटियां, अनीसा और इसाबेला, उनकी यादों और विरासत को सहेजने वाली होंगी।
श्रद्धांजलियां और शोक
उद्योगपति हर्ष गोयनका ने कहा, “दुनिया खामोश हो गई है क्योंकि तबला अपने उस्ताद को खो चुका है।” राज्यवर्धन सिंह राठौर और गुजरात के पर्यटन मंत्री मुलुभाई बेरा ने भी उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी।
संगीत का अनंत स्वर
जाकिर हुसैन के जाने से संगीत जगत में एक खालीपन जरूर आया है, लेकिन उनकी कला, उनकी धुनें और उनकी प्रेरणा हमेशा जीवित रहेगी। उनका तबला वादन आने वाली पीढ़ियों के लिए न केवल एक प्रेरणा रहेगा, बल्कि यह याद दिलाता रहेगा कि संगीत सीमाओं से परे मानवता को जोड़ने की शक्ति रखता है।
अलविदा, उस्ताद। आपकी थापों की गूंज हमेशा हमारे दिलों में बनी रहेगी।
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