मां जंगल में भी जिंदा है…एक बेटे की खोज, जो जंगल की बाघिन में अपनी मां को ढूंढ रहा है

 

“मां अब भी मेरे भीतर जिंदा है। बचपन में उसकी गोद में जो सुकून पाया, उसे अब जंगल-जंगल ढूंढता हूं… पेड़ों की सरसराहट में, बाघिन की आंखों में, उसके दहाड़ में भी कहीं उसकी ममता सुनाई देती है।”

यह कहना है सुब्बैया नल्लामुथु का—वो वाइल्ड लाइफ फिल्ममेकर जिनकी फिल्मों में कहानी चाहे जैसे भी हो, किरदार चाहे कितने भी हों, लेकिन हर बार लीड रोल में होती है ‘मां’—बाघिन के रूप में।

20 साल, 5 फिल्में और हर बार ‘मां’ ही नायक बनी। और हर बार इस ‘मां’ ने राष्ट्रपति अवार्ड जितवाया। ये कोई इत्तेफाक नहीं… ये एक बेटे की तलाश है, जो शायद अब तक अपनी मां की ममता को फिर से जीना चाहता है।

नल्ला कहते हैं—“मां के बिना हर कहानी अधूरी लगती है। वो चाहे इंसान की हो या जंगल के बाघ की। मां जब जंगल में शावकों को गोद में लिए चलती है, तो मुझे अपनी मां की उंगलियों का सहारा याद आता है।”

मां… जो जंगल की भी रक्षक है

नल्ला मुत्थु की सभी फिल्में इस बात की गवाही हैं कि जंगल में भी मां वही है जो शहरों में होती है—संघर्ष करती, सीने से लगाए चलती, दर्द छिपाती और दुनिया से लड़ती।

उनकी पहली फिल्म ‘टाइगर क्वीन’ (2007) की बाघिन ‘सुंदरी’ हो या ‘टाइगर डेनेस्टी’ (2008) की बाघिन टी-18, सभी माएं अपनी संतानों के लिए जंगल के हर उसूल से भिड़ती नजर आती हैं।

‘क्लैश ऑफ टाइगर्स’ की वो मां, जो कमजोर शावक को लेकर नदी पार कर रही होती है, मगरमच्छ शिकार कर लेता है फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती। वो बाघिन नहीं, हर मां की तस्वीर है जो अपने बच्चों के लिए टूटती नहीं—और जो टूटे भी, तो भी बिखरने नहीं देती।

टाइगर रिवेंज हो या मछली की कहानी—हर फिल्म में ‘मां’ ही वजह बनी

2015 में बनी ‘वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस टाइग्रेस’ मछली की कहानी हो या ‘टाइगर रिवेंज’ की कृष्णा और टी-17—हर एक फिल्म में मां की उपस्थिति एक ऐसी शक्ति बनकर उभरती है जो अकेले ही जंगल को सभ्य बना देती है।

एक मां, जो जानती है कि उसका ही बेटा बड़ा होकर उसकी जगह लेगा, उसे खदेड़ देगा… फिर भी उसे वो सब सिखाती है जो उसे ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी है। यही तो मां होती है—निस्वार्थ, संपूर्ण और अपराजेय।

मां ही क्यों?

जब नल्ला से पूछा गया कि हर फिल्म में मां-बाघिन ही क्यों?

तो जवाब आया—“मैं मां को ही सबसे बड़ा हीरो मानता हूं। जिसने मुझे जीवन दिया, जिसने सिखाया कैसे लड़ना है, कैसे सहना है, कैसे देना है बिना बदले में कुछ मांगे। आज जब मैं जंगल में बाघिन को अपने शावकों के साथ देखता हूं, तो लगता है—मैं फिर से अपने बचपन में लौट आया हूं। और शायद यही वजह है कि मेरी हर फिल्म में मां ही मुख्य किरदार बन जाती है।”


टाइगर एंथम—बाघ का बच्चा मां से पूछता है…

2023 में प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किया गया ‘टाइगर एंथम’—महज एक गीत नहीं, बल्कि एक गूंज है, जंगल से उठी एक पुकार है। एक शावक, अपनी मां बाघिन से पूछता है—

“आप तो हमें पैदा कर देती हो, पर अगर जंगल नहीं बचे तो हमें जन्म देने का क्या फायदा?”

यह सवाल सिर्फ शावक का नहीं, पूरी मानवता से पूछा गया है। नल्ला की यह फिल्म इस सवाल को तीन पार्ट्स में जवाब देती है—जहां मां जंगल बचाने की तरकीबें निकालती है, अपने बच्चों के लिए शिकार करती है, शिकारी से लड़ती है, और तमाम दुख सहकर भी एक मुस्कान में सब कुछ समेट लेती है।

नल्लाज आर्क—जहां दीवारें भी कहेंगी ‘मां’

नल्ला अब एक होम स्टे भी बना रहे हैं—‘नल्लाज आर्क’, जो एक थीम बेस्ड जगह होगी। यहां की छतें, दीवारें और हर कोना मां-बाघिन की कहानियों को जीवंत करेगा। थ्री डी इफेक्ट्स से वो पल दोबारा देखे जा सकेंगे, जब मां अपने बच्चों को सिखा रही होती है, दुलार कर रही होती है, या मौत से जूझ रही होती है।

जंगल की मां—Top of the Chain

बाघों की दुनिया में मां का कोई विकल्प नहीं। नर बाघ कई बार शावकों को मार देता है, लेकिन मां बाघिन उन्हें अपनी जान पर खेलकर बचाती है। वह उन्हें खाने का तरीका सिखाती है, शिकार करना सिखाती है, और साथ ही जंगल के नियम भी।

शावकों को पता नहीं होता कि एक दिन वे ही अपनी मां की टेरिटरी छीन लेंगे… लेकिन मां को सब पता होता है—फिर भी वह सिखाती है, देती है, और बिना शिकायत के चली जाती है।


अंतिम शब्द…

शहरों में मां के लिए जितनी कविताएं लिखी गईं, जंगल की मां के लिए शायद ही कोई गीत बना हो… लेकिन नल्ला की फिल्मों ने इस खालीपन को भर दिया है। उन्होंने हमें दिखाया है कि मां सिर्फ कोख नहीं, एक भावना है… और यह भावना पेड़ों से लेकर बाघिन की आंखों तक, हर उस जगह मौजूद है जहां जीवन पलता है।

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