खाने की थाली नहीं, जैसे किसी रसोत्सव की दावत हो — नटराज भोजनालय की कहानी

 

उदयपुर की तपती दोपहरी हो या गर्मियों की ताजगी की तलाश, सूरजपोल की नटराज गली में बसी एक सादगी भरी जगह हर भूखे दिल और ज़ायका पसंद ज़ुबान को तृप्ति का रस देती है। यहां का खाना सिर्फ पेट नहीं भरता, बल्कि आत्मा तक को तृप्त कर देता है।

नाम है – ‘नटराज भोजनालय’।

एक ऐसा स्थान, जहां हर निवाला स्वाद के घाघों की कसौटी पर खरा उतरता है। यहां के खाने में वो बात है, जो दिल्ली के दरबार से लेकर गुजरात के गलियारों तक चर्चा बन जाए। देसी घी की खुशबू, गर्म फुलके की नरमी और सब्जियों में ऐसा ज़ायका जो आपकी बचपन की यादें ताज़ा कर दे।

लोग कहते हैं, “अरे वो नटराज वाला खाना है ना, बस एक बार खा लिया… फिर तो आदत सी लग जाती है!”
यहां की एक थाली — जैसे जीवन की थकान मिटा देने वाली आरती हो।

खास बात क्या है?

यहां के मुखिया जतिन श्रीमाली जी सिर्फ व्यंजन नहीं परोसते, वो अपने व्यवहार से मेहमानों का दिल भी परोस देते हैं। कोई भूखा नहीं लौटता, कोई बेरुखी नहीं पाता। उनका हर ग्राहक के प्रति अपनापन — जैसे किसी रिश्तेदार को घर बुला लिया हो।

और दिलचस्प बात ये है कि यहां खाना खाने वाले सिर्फ आम लोग नहीं, बल्कि देश के नामचीन उद्योगपति भी हैं।

पर कोई दिखावे की गाड़ी लेकर नहीं आते — दोपहिया पर, ऑटो से या पैदल ही…
क्योंकि यहां भोजन की सादगी में जो शाहीपन है, वो किसी पाँच सितारा होटल की चकाचौंध में नहीं मिलता।

नटराज की यही खासियत है — स्वाद, सादगी और सम्मान का संगम।

यह होटल नहीं, एक भावनात्मक जगह है…जहां हर थाली में संस्कार है, हर निवाले में परंपरा और हर स्वाद में एक मुस्कुराहट छुपी है।

गर्मी के मौसम में जब सब कुछ थम सा जाता है, तब नटराज का भोजन ज़िंदगी में फिर से मिठास घोल देता है।

यह सिर्फ खाना नहीं, अनुभव है — और अनुभव वो, जो ज़ुबान से होकर दिल में उतर जाए।

अगर आप भी कभी उदयपुर आएं, तो इस गली से होकर ज़रूर गुज़रिए…
क्योंकि यहां मिलने वाला खाना,
किसी आम भोजनालय का स्वाद नहीं —
ये तो ‘नटराज’ है… नाम ही काफी है।

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