एसीबी का “ऑपरेशन बेख़ौफ़” : जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है और इनके नल से बह रहा है नोटों का झरना

जयपुर/उदयपुर। कभी सरकारी दफ्तरों में झाड़ू पकड़ कर फोटो खिंचवाने वाले बाबू अब जेसीबी, डम्पर और पोकलेन मशीनों के साथ फोटो खिंचवाते पाए जा रहे हैं। “ऑपरेशन बेख़ौफ़” की आंधी में ACB ने जो परतें खोली हैं, उनमें भ्रष्टाचार की फ़ाइलें नहीं, ज़मीनों के नक़्शे, फार्महाउस के रजिस्ट्रेशन और लीज की सुनहरी प्रतियाँ निकली हैं।

अशोक कुमार जांगिड – नाम सुनते ही लगता है जैसे कोई सरल, सादगी भरा सरकारी अफसर होगा। लेकिन जनाब, ये तो सरकारी सिस्टम के ‘माइनिंग माफिया’ निकले। P.H.E.D. में अधीक्षण अभियंता होकर भी उन्होंने पानी नहीं, बल्कि पत्थर से पैसा निकाला… और इतना निकाला कि 11.50 करोड़ की आय से अधिक संपत्तियाँ गिनते-गिनते ACB की उंगलियों में छाले पड़ गए।

चलते-फिरते जमीन के नक़्शे : खुद के नाम 19 संपत्तियाँ, पत्नी के नाम 3 और सबसे होनहार निवेशक निकला बेटा – 32 संपत्तियाँ! मतलब परिवार ने ‘संपत्ति व्रत’ धारण कर रखा था!

कहाँ-कहाँ?
जयपुर, पावटा, कोटपूतली, अजमेर, टोंक, उदयपुर, जैसलमेर — नाम लो और वहां “जांगिड एस्टेट” मिल जाएगा। घर, दुकान, फार्महाउस, खनिज लीज, मिनरल कंपनी, मशीनरी – सब कुछ जैसे सरकारी वेतन की डायरी में लिखा हो।

मशीनों की बारात : कशर, पोकलेन, एलएण्डटी, डम्पर, ब्लास्टिंग मशीनें – मतलब PHE विभाग से निकले थे पाइप जोड़ने, पहुंच गए ब्लास्टिंग कराने। अब समझ आया कि ये पानी की पाइपलाइन क्यों नहीं बनती? क्योंकि अफसर पत्थरों में खजाने खोज रहे होते हैं।

बेटा निकला ‘Mini Ambani’ : UN MINERALS का मालिक, दर्जनों खनिज लीज का हक़दार और करोड़ों की मशीनों का ऑपरेटर! स्कूल-कॉलेज की फीस में खर्च हुए 30 लाख तो बस ‘ट्रेलर’ है – फिल्म तो खनिज विभाग में चल रही है।

ACB की फौज : करीब 250 अधिकारियों की टीम, दर्जनों ठिकाने, एक ही नाम – और हर जगह से मिल रही है ‘संपत्ति की सुगंध’। गुलमोहर लेन से लेकर कैमरिया फार्महाउस तक, हर लोकेशन ‘मनी मैप’ में तब्दील!

कटाक्ष का कोना : जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है, और इनके नल से बह रहा है नोटों का झरना। ऐसे अफसरों के लिए शायद ACB को नहीं, बल्कि इनकम टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय, और इतिहास विभाग को भी बुला लेना चाहिए – ताकि जांच हो सके कि ये खजाना अकबर के ज़माने से दबा था या पीएचईडी की फाइलों में ही छुपा बैठा था।

“ऑपरेशन बेख़ौफ़” ने दिखा दिया कि सरकारी तनख्वाह से कोई अरबपति नहीं बनता – पर अगर घोटाले की ‘आकांक्षा’ हो, तो हर विभाग में ‘धन कुबेर’ जरूर मिल जाएंगे। जनता को अब पानी नहीं, पारदर्शिता चाहिए — वरना अगला ‘अधिशासी’ कौन होगा, यह ACB भी नहीं बता पाएगी।

जिसे माना था हमने नल का मसीहा,
वो निकला खनिजों का बादशाह सलीमा!

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