
जयपुर। राजस्थान की राजनीति में रविवार का दिन एक बड़ी हलचल लेकर आया। बागीदौरा से मौजूदा विधायक जयकृष्ण पटेल को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया। उनके साथ एक दलाल विजय कुमार पटेल को भी पकड़ा गया। यह कार्रवाई जहां सतह पर एक सधी हुई एसीबी कार्रवाई प्रतीत होती है, वहीं इसके राजनीतिक निहितार्थ गहरे और बहुआयामी हैं।
मामला क्या है?
शिकायतकर्ता रविन्द्र कुमार का आरोप है कि विधायक जयकृष्ण पटेल ने उन पर अवैध खनन का झूठा दबाव बनाकर दो करोड़ रुपये की रिश्वत की मांग की। किश्तों में यह रकम वसूलने की रणनीति बनाई गई थी। एसीबी ने जाल बिछाया और जयपुर में पहली किश्त के रूप में 20 लाख रुपये लेते हुए विधायक को पकड़ लिया। गिरफ्तारी के साथ ही जयकृष्ण पटेल के आवास और अन्य ठिकानों पर छापेमारी भी शुरू हो गई।

राजनीतिक पृष्ठभूमि और संदिग्ध संयोग
जयकृष्ण पटेल बागीदौरा सीट से एक प्रभावशाली आदिवासी नेता माने जाते हैं। वे क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे हैं और हालिया वर्षों में उनकी लोकप्रियता में तेजी से उछाल आया है। ऐसे में उनकी छवि को ठेस पहुँचाने वाली ये गिरफ्तारी सिर्फ एक कानूनी कार्रवाई नहीं मानी जा सकती। यह ऐसे वक्त पर हुई है जब प्रदेश की राजनीति नई हलचलों से गुजर रही है—सरकार गठन के समीकरण बदले हैं, और विपक्ष अपने पत्ते खुलकर खेलने की तैयारी में है।
क्या यह “सिलेक्टिव एक्शन” है?
एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या एसीबी की यह कार्रवाई केवल एक “इंडिविजुअल करप्शन” का मामला है, या इसके पीछे कुछ और भी है? इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स में टोडाभीम से विधायक घनश्याम महर का नाम भी शामिल है। जिस कम्पनी से रिश्वत मांगी गई वो बीजेपी प्रत्याशी रहे रामनिवास मीना, उनके पुत्र रविन्द्र मीना की है।

• जयकृष्ण पटेल विपक्ष के उन विधायकों में गिने जाते रहे हैं जिन्होंने कई बार सरकार के खिलाफ तीखे सवाल उठाए हैं।
• हाल ही में पटेल ने विधानसभा में कुछ संवेदनशील विषयों पर सरकार को घेरा भी था—खासकर खनन माफिया और स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार को लेकर।
इस संदर्भ में यह गिरफ्तार होना, राजनीति के जानकारों को “टाइमिंग” पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करता है। अगर ACB के पास ठोस सबूत पहले से थे, तो कार्रवाई अब क्यों?
ACB की निष्पक्षता पर सवाल?
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को लेकर आमजन की धारणा आमतौर पर सकारात्मक रही है, लेकिन जब किसी राजनीतिक व्यक्ति पर कार्रवाई होती है, तो उसका समय और संदर्भ स्वतः सवालों को जन्म देता है।
क्या एसीबी पर सत्ता का दबाव है? क्या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को ठिकाने लगाने के लिए ACB का इस्तेमाल हो रहा है?
या फिर उल्टा सवाल भी उतना ही जायज़ है—क्या यह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निष्पक्ष और निर्भीक कदम है? अगर एक विधायक को भ्रष्टाचार के लिए कानून सज़ा देता है, तो क्या ये लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक नहीं है?
बागीदौरा क्षेत्र पर असर
इस गिरफ्तारी का सीधा प्रभाव बागीदौरा की जनता पर पड़ेगा। पहले से ही अविकसित और समस्याग्रस्त इस क्षेत्र में अब राजनीतिक अस्थिरता का डर है। जयकृष्ण पटेल के समर्थकों में ग़ुस्सा है, जबकि विरोधी इसे जनता की जीत बता रहे हैं। आने वाले दिनों में इस सीट को लेकर सियासी गर्मी और बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
जयकृष्ण पटेल की गिरफ्तारी ने एक बार फिर ये सोचने पर मजबूर किया है कि क्या भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई वाकई “कानून के अनुसार” हो रही है, या फिर यह सत्ता का एक नया हथियार बन चुका है?
जब तक अदालत अपना फ़ैसला नहीं सुनाती, तब तक यह मामला केवल एक गिरफ्तारी नहीं बल्कि राजनीतिक मोहरे की चाल की तरह देखा जाएगा।
क्योंकि भारत की राजनीति में हर गिरफ्तारी, हर छापेमारी, सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं होती—कभी-कभी वो आने वाले सियासी तूफानों का संकेत भी होती है।
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