: अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा), राजस्थान
: 21 सदस्यीय कार्यकरणी चुनाव के साथ मंज़ूलता को अध्यक्ष और फ़रहत बानू को राज्य सचिव चुना गया।
: महिला हिंसा के ख़िलाफ़ राज्यव्यापी प्रतिवाद, आज़ादी और बराबरी की दावेदारी के साथ ऐपवा का तीसरा राज्य सम्मेलन सम्पन्न

जयपुर। जयपुर के कुमारानंद हॉल में ऐपवा का तीसरा राज्य सम्मेलन सम्पन्न हुआ। जिसमें जयपुर, अजमेर, दौसा, उदयपुर, किशनगढ़, भीलवाड़ा, चित्तौड़, प्रतापगढ़, सलूम्बर ज़िलों की 150 से अधिक प्रतिनिधि साथियों ने भाग लिया।
सम्मेलन की शुरुआत में ऐपवा आंदोलन की शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उद्घाटन सत्र के उद्घाटन सत्र को ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, प्रदेश की अध्यक्ष भँवरी बाई, विशिष्ट अतिथि पी यू सी एल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव, एडवा की राज्य महासचिव सीमा जैन, एन एफ आई की राज्य महासचिव निशा सिद्धू, जयपुर एकल महिला मंच अध्यक्ष हेमलता, नेशनल मुस्लिल महिला एसोसिएशन अध्यक्ष निसात हुसैन, सीपीएम नेता सुमित्रा चोपड़ा, सामाजिक कार्यकर्ता ममता जेटली ने सम्बोधित किया।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि इस देश में जब से मोदी सरकार आयी है तब से महिलाओं के हर अधिकार पर हमला किया है। मोदी राज में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों और अपराधियों को,बलात्कारियों को संस्कारी बताया जा रहा है। उसके ख़िलाफ़ उठना ही होगा। सम्मेलन एक ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में हो रहा है जब एक तरफ़ आज़ादी की 75 वीं सालगिरह के अवसर पर सरकार अमृत महोत्सव मना रही है तो दूसरी तरफ़ महिलाऐं अपनी रोजीरोटी के सवाल से लेकर बराबरी-न्याय केलिए हर स्तर पर संघर्षरत हैं और पूंजी,धर्म,सत्ता व सामन्ती तत्वों का गठजोड़ महिलाओं के हर अधिकार व जायेज मांगों को निर्ममता से कुचल रहा है।

सम्मेलन की केंद्रीय पर्यवेक्षक झारखंड की ऐपवा नेता गीता मंडल ने कहा कि महिलाओं के ख़िलाफ़ खड़ी मोदी सरकार हमारे संघर्ष और आंदोलन को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा है। पूरे देश में स्त्रियाँ दमन,शोषण उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं। अमृत काल में भूखा भारत हमारे आंदोलन की ज़रूरत को दर्शाता है। किंतु महिलाओं की बढ़ती दावेदारी और अपने अधिकारों को हासिल करने की चेतना इस चुनौती का सामना बहादुरी से कर रही हैं। इतिहास बताता है कि महिलाएँ अपने आंदोलन को ऐसे ही दौर में नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाया है।

इस अवसर पर पीयूसीएल की राष्ट्रीय महासचिव कविता श्रीवास्तव ने कहा कि बुलडोज़र राज के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी है। सरकारें महिलाओं की आवाज़ को नहीं सुनते हैं। एक तरफ़ हमने बिलक़िस बानो के साथ हुए अन्याय,हिज़ाफ के नाम पर साम्प्रदायिक हमले, समान नागरिक संहिता क़ानून में देखा है कि किस प्रकार भाजपा न्याय के नाम पर एक समुदाय को अपराधी दिखा रही है और महिलाओं पर होनेवाले उत्पीड़न- दमन केलिए महिलाओं को ही कटघरे में खड़ा कर आपराधिक तत्वों को पूरा संरक्षण दे रही है. किंतु इन सब के ख़िलाफ़ महिलाओं ने जिस तरह से किसान आंदोलन, मी टु आंदोलन से लेकर पहलवान खिलाड़ियों की लड़ाई और उसमें देशभर की महिलाओं की एकजुटता दिखाई दी, वह हमें संघर्ष केलिए ऊर्जा व साहस देती है।
एडवा राज्य महासचिव सीमा जैन ने कहा कि हम देख रहे हैं कि सरकार किस तरह महिलाओं की आजादी व सशक्तिकरण का होहल्ला कर उनके हक़ में बने हर तरह के कानूनों को कमजोर कर रही है। बलात्कार, डायन, कन्या भ्रूणहत्या, दहेज़, ऑनर किलिंग, जैसे बढ़ते अपराध और उनकी क्रूरता, आज के महिला जीवन की असलियत हैं.
ऐपवा राज्य अध्यक्ष भँवरी बाई ने कहा कि महिलाओं पर होनेवाले स्कूल-कालेजों में यौन-उत्पीड़न व सांस्थानिक हत्या के विरोध में उनकी प्रतिरोध की आवाज को दबाने के तरह-तरह के कुतर्क व हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. महिलाओं की चयन की आजादी व नागरिक के रूप में रहने व जीने की बढ़ती राजनैतिक दावेदारी को कुंद करने के लिए सत्ता द्वारा तरह-तरह के षडयन्त्र किये जा रहे हैं.
जयपुर एकल महिला मंच अध्यक्ष हेमलता कंसोटिया ने एकल महिला की समस्याओं को इंगित करते हुए एपवा के संघर्ष के एजेंडे में शामिल करना होगा।
नेशनल मुस्लिम महिला एसोसिएशन अध्यक्ष निसात हुसैन ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं दोहरे फासीवादी हमले व शोषण की शिकार हैं एक तरफ देश मे धर्म के आधार पर भेदभाव व दुसरीं ओर परिवार के अंदर दमघोटू वातावरण। इसके लिए हमें शिक्षा व अपने हकों के लिए बढ़कर संघर्ष करना होगा।
एन एफ आई राज्य महासचिव निशा सिद्धू ने कहा कि वर्तमान में जिस तरह से सरकारें श्रम कानूनों को खत्म कर कोरपोरेट लूट को बढावा दे रही हैं, जिसमें महिलाओं को आरक्षित मजदूर का दर्जा दिया जा रहा है,उन्हें असंगठित क्षेत्र में धकेला जा रहा है, मानदेय के नाम पर शोषण किया जा रहा है,मजदूर युनियन बनाने का अधिकार छीना जा रहा है,महिला बराबरी-न्याय के सवालों को पृष्ठभूमि में धकेला जा रहा है, उसके चलते जरुरी हो गया है कि महिलाऐं अपनी पूरी ताकत के साथ ऐपवा जैसे क्रांतिकारी महिला संगठन के बैनर तले एकजुट होकर कारपोरेट पोषक जनविरोधी सरकार को उखाड़ फेंके| प्रथम सत्र को सीपीएम नेता सुमित्रा चोपड़ा व सामाजिक कार्यकर्ता ममता जेटली ने भी सम्बोधित किया।
प्रतिनिधि सत्र में पूर्व राज्य सचिव सुधा चौधरी ने रिपोर्ट रखते हुए कहा कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ हमलों , शोषण एवं दमन की हर घटना पर एपवा ने दृढ़ता से मुकाबला किया है और भविष्य में भी मुकम्मल लड़ाई लड़ता रहेगा। चर्चा उपरांत सहमति से रिपोर्ट पास हुई। अध्यक्ष मंडल में तसकीन चिश्ती, मंज़ूलता, विमला, नजमा और ऊषा यादव शामिल रहे। अंत में, सम्मेलन की पर्यवेक्षक गीता मंडल की देख रेख में कमेटी का निर्माण सम्पन्न हुआ। 21 सदस्यीय राज्य कार्यकारिणी का गठन किया। जिसमें मंज़ूलता, उषा यादव, गीता बाई, केसर बाई, सलुंबर से खानकी, कालकी, वालकी, अजमेर से तसकीन चिश्ती, प्रेम बरवा, शाहीन, हफ़ीजा, कौशल्या, दौसा से विमला, पिंकी, कमलेश उदयपुर से सुधा चौधरी, रिंकु परिहार फ़रहत बानू । प्रतापगढ़ से शहनाज़, रसीदा। नागौर से मधु को शामील किया गया है। कार्यकारिणी ने सर्व सहमति से का॰ मंज़ूलता को अध्यक्ष और प्रो॰ फ़रहत बानू को राज्य सचिव की ज़िम्मेदारी दी गई ।
नव निर्वाचित ऐपवा सचिव फ़रहत बानू ने कहा कि फ़ासीवाद के इस दौर में महिलाएँ सबसे ख़राब समय का सामना कर रही हैं और लड़ रही हैं। संविधान और लोकतंत्र के अनुसार देश चले, यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है। जिसके लिए महिलाओं को आगे आना होगा।
नवनिर्वाचित अध्यक्ष मंज़ूलता ने कहा कि आज समय की माँग है कि हम अपनी पूरी ताकत के साथ गोलबंद हों और अपने नागरिक अधिकारों केलिए संघर्ष तेज करें और एक लोकतांत्रिक समाज बनाने में हमारी सक्रिय भागीदारी व हिस्सेदारी करते हुए हमारे आंदोलन को आगे बढ़ाए| सभी कल्याणकारी योजनाओं को केंद्र में बैठी भाजपा निर्मम तरीक़े से कुचल रही है। राजस्थान में ऐपवा को ओर मज़बूत व क्रांतिकारी संगठन के बतौर स्थापित करने और प्रदेश के हर ज़िले में ऐपवा खड़ा करने का कार्यभार लेंगे।
कार्यक्रम का संचालन रिंकु परिहार ने किया और धन्यवाद फ़रहत बानू ने दिया।
सम्मेलन में कुछ राजनैतिक प्रस्ताव पास किए गए:
- यह सम्मेलन माँग करता है कि सरकार महिलाओं केलिए शहरी रोज़गार योजना चालू करे जिसमें कम से कम 10,000/ (दस हज़ार रुपये प्रतिदिन ) की मज़दूरी मिले और तीन सौ पैंसठ दिन काम मिले।
- मनरेगा में 365 दिन काम मिले और कम से कम 400/ रुपये ( चार सौ रुपये प्रतिदिन ) मज़दूरी मिले।
- महिलाओं की पेंशन राशि कम से कम 3,000/ रुपये महीना हो।
- श्रम डायरी में ठेकेदार के हस्ताक्षर करने की शर्त को हटाया जाये और डायरी का लाभ हक़दार लोगों को मिले।
- प्रदेश में सांप्रदायिक नफ़रत, भय और आतंक के माहौल को ख़त्म किया जाये। महँगाई पर रोक लगाई जाये।
- शिक्षा का निजीकरण बंद करो और सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता आधारित शिक्षा की गारंटी करो।
- राशन में व्याप्त अनियमितताओं को ख़त्म किया जाये।
- माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की मनमानी वसूली और फैलते जाल को रोका जाये।
- गरीब परिवारों को बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध किया जाये।
- यह सम्मेलन सभी मानवाधिकार कार्य कर्ताओं और राजनीतिक बंदियों की गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा करता है और सभी राजनैतिक बंदियों की बिना शर्त रिहाई की माँग करता है।
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