
नई दिल्ली। दिल्ली की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नेता रेखा गुप्ता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। रामलीला मैदान में हुए इस भव्य शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी के कई दिग्गज नेता मौजूद रहे। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने रेखा गुप्ता को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उनके साथ प्रवेश वर्मा, मनजिंदर सिंह सिरसा, रविंद्र इंद्राज सिंह, आशीष सूद, कपिल मिश्रा और पंकज कुमार सिंह को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
चुनाव नतीजों के बाद सबसे बड़ा सवाल था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? कई नामों की चर्चा हुई, लेकिन अंततः पार्टी ने रेखा गुप्ता को चुना। खास बात यह रही कि प्रवेश वर्मा, जिन्होंने नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को हराया था, भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन आखिरकार बाजी रेखा गुप्ता के हाथ लगी।
बीजेपी ने इस कदम को महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। पार्टी लंबे समय से महिला नेतृत्व को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही थी, क्योंकि राजस्थान में वसुंधरा राजे के बाद उसके पास कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं थी। ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल) और आतिशी (दिल्ली) के बाद अब रेखा गुप्ता देश की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनी हैं, जिससे बीजेपी अपनी ‘महिला सशक्तिकरण’ वाली छवि को मजबूती देने की कोशिश कर रही है।
दिल्ली की राजनीति में 2025 की यह करवट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीतिक सोच का एक नया अध्याय लिखती है। रेखा गुप्ता की मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति केवल एक व्यक्ति विशेष का सत्तारोहण नहीं, बल्कि बीजेपी की दीर्घकालिक चुनावी रणनीति, संगठनात्मक सोच और सामाजिक समीकरणों को साधने की कवायद का हिस्सा है।
दिल्ली में लंबे समय बाद बीजेपी ने विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया, जो खुद में एक ऐतिहासिक घटना है। पार्टी ने 70 में से 48 सीटें जीतकर 25 वर्षों की सत्ता-विहीनता को समाप्त किया। ऐसे में मुख्यमंत्री के पद के लिए कई नामों पर चर्चा हुई, लेकिन अंततः संघ और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने रेखा गुप्ता को इस पद के लिए चुना। यह निर्णय केवल उनकी राजनीतिक सक्षमता के आधार पर नहीं, बल्कि कई अन्य रणनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर लिया गया है।
रेखा गुप्ता क्यों बनीं मुख्यमंत्री?
बीजेपी का यह फैसला सिर्फ एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं बल्कि रणनीतिक चाल भी है। रेखा गुप्ता का संघ (RSS) और विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ाव रहा है, जो बीजेपी के संगठन में बड़ा फैक्टर माना जाता है। इसके अलावा, दिल्ली में महिलाओं के समर्थन को मजबूत करने के लिए भी यह कदम उठाया गया है।
दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने वाली रेखा गुप्ता हरियाणा से हैं और बनिया समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले अरविंद केजरीवाल और सुषमा स्वराज भी हरियाणा से ही दिल्ली की सत्ता तक पहुंचे थे। बीजेपी इस जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को भुनाने की कोशिश कर रही है।
प्रवेश वर्मा क्यों नहीं बने मुख्यमंत्री?
प्रवेश वर्मा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा चर्चा में था। उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल को हराया था, लेकिन उनकी विवादास्पद छवि और परिवारवाद को लेकर पार्टी की स्पष्ट नीति ने उनके रास्ते में बाधा डाल दी। बीजेपी लंबे समय से परिवारवाद के खिलाफ मुखर रही है और अगर प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया जाता, तो पार्टी को विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ता।
इसके अलावा, बीजेपी आमतौर पर मुख्यमंत्रियों के बेटों को मुख्यमंत्री बनाने से बचती रही है। हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को नजरअंदाज कर जयराम ठाकुर को चुना गया था। इसी नीति को दिल्ली में भी दोहराया गया।
जातीय और राजनीतिक समीकरणों का गणित
दिल्ली में जाट वोटर्स की नाराजगी को दूर करने के लिए प्रवेश वर्मा का नाम आगे बढ़ाया जा रहा था, लेकिन बीजेपी की रणनीति आमतौर पर बहुसंख्यक जाति के बजाय किसी दूसरी जाति के नेता को आगे करने की रही है। हरियाणा में जाटों के प्रभाव के बावजूद बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया। महाराष्ट्र में मराठों के प्रभाव को दरकिनार कर देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया। इसी तर्ज पर दिल्ली में भी बनिया समुदाय की रेखा गुप्ता को चुना गया।
भविष्य की राजनीति और बीजेपी की रणनीति
बीजेपी की यह जीत दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लगातार दो कार्यकालों के बाद एक बड़ी वापसी मानी जा रही है। चुनावी वादों में महिलाओं को हर महीने ₹2500 देने जैसे फैसले से पार्टी ने महिला वोटर्स को आकर्षित करने की कोशिश की है। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को भी बीजेपी ने जमकर भुनाया।
अब सवाल यह है कि रेखा गुप्ता क्या दिल्ली में एक मजबूत नेता के रूप में उभरेंगी, या फिर वह केवल बीजेपी की रणनीति का हिस्सा बनकर रह जाएंगी? अगले कुछ महीनों में उनकी नीतियों और प्रशासनिक फैसलों से इस सवाल का जवाब मिल सकेगा। लेकिन एक बात तो साफ है कि दिल्ली की राजनीति में अब एक नया अध्याय शुरू हो चुका है।
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