संस्कृति की श्रेष्ठता तभी सिद्ध होगी, जब समाज में आपसी संघर्ष खत्म होंगे : मेहता

विद्या भवन गोविंद सेकसरिया शिक्षक महाविद्यालय में “अध्यापक शिक्षा में कला एवं संस्कृति का समेकन” विषयक पर तीन दिवसीय कार्यशाला हुई।

इस कार्यशाला की समन्वयक अख्तर बानो ने बताया कि इसका उद्देश्य भावी अध्यापकों में कला व संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता, घटकों की समझ, प्रसंशात्मक मूल्यों का विकास तथा अपने विषयों में की अवधारणाओं को सहज सरल तथा आनंददायी तरीकों से सीखाने में भूमिका की समझ विकसित करना है।

इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष अजय मेहता ने वर्तमान समय में समाजिक विसंगतियों पर कहा कि अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता सिद्ध करने में आपसी संघर्ष खत्म होने चाहिए। सभी धर्मों को एक दूसरे की संस्कृति को सम्मान का भाव तथा अच्छी बातों की ग्रहणशीलता होनी चाहिए।

इस कार्यशाला की थीम पर बात करते हुए प्राचार्य फरजा़ना इरफ़ान ने कहा कि कला समेकित शिक्षा कलाओं के माध्यम से सीखना है न की कलाकार बनाना। छोटी छोटी सरल सहज कला कार्यो में विद्यार्थियों को सम्मिलित करते हुए उसे किसी तरह के प्रेशर से बाहर निकलना होगा।

उसे यह नहीं लगता कि उसका दोस्त उससे अच्छा कर रहा है या उसे तो यह आता ही नहीं। सीखने वाला स्वयं जुड़ता है उन्हें मनोबल, स्वतंत्रता तथा पहचान मिलती है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. एमपी शर्मा ने कहा कि शिक्षा में सौन्दर्य और आनन्द के लिए कला आवश्यक है। कला संवेदनाओं, भावों को विकसित नई सोच पहल करने की क्षमता का विकास करने में सहायक है। मनुष्य में उपस्थित दिव्यता को समाज से लाभ मिलना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मालचंद काला ने किया।

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