सैयद हबीब

स्थान : उदयपुर का प्रतापनगर-बलीचा बाईपास, जहां निर्माणाधीन पुलिया का ढहना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक गहरी लापरवाही का प्रमाण है। एक और नाम जुड़ गया उस लंबी सूची में, जहां अनदेखी, घटिया निर्माण और गैर-जिम्मेदाराना प्रबंधन की कीमत लोगों की जान से चुकानी पड़ती है।
घटना का विवरण : शुक्रवार की रात, जब बेड़वास निवासी श्यामलाल मेघवाल अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा निभाते हुए बाइक पर सवार होकर नौकरी के लिए जा रहे थे, तो शायद उन्हें नहीं पता था कि उनकी जिंदगी एक पुलिया के ढहने से खत्म हो जाएगी। उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) की देखरेख में चल रहे इस निर्माण कार्य में रात को पुलिया का हिस्सा गिर गया। यह हादसा श्यामलाल के जीवन का अंतिम अध्याय बन गया। अस्पताल में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई।
आलोचना के केंद्र बिंदु
- प्रशासनिक लापरवाही और घटिया निर्माण कार्य :
यह पहली बार नहीं है कि सार्वजनिक निर्माणों में इस तरह की लापरवाही सामने आई हो। जब यह कार्य उदयपुर विकास प्राधिकरण की देखरेख में हो रहा था, तो सवाल उठता है कि क्या निर्माण प्रक्रिया में मानकों का पालन किया गया? ठेका कंपनियां घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग कर रही हैं, और प्रशासन आंखें मूंदकर सिर्फ कागज़ी कार्रवाई कर रहा है। - हादसे के बाद की राजनीति :
घटना के बाद एमबी अस्पताल में विरोध प्रदर्शन और मुआवजे की मांग को लेकर जुटी भीड़ में नेता भी शामिल हुए। मुआवजा और संविदा नौकरी दिलाने की मांग करने वाले ये नेता अचानक सक्रिय हो गए, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये सक्रियता केवल मीडिया कवरेज और राजनीतिक लाभ तक सीमित है? क्या इन नेताओं ने पहले कभी इस पुलिया के निर्माण की गुणवत्ता की जांच की मांग की थी? - 16 लाख का मुआवजा : समाधान या जिम्मेदारी से भागने का तरीका?
प्रशासन ने मृतक के परिवार को 16 लाख रुपये और मृतक की पत्नी को संविदा पर नौकरी देने का आश्वासन दिया। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या श्यामलाल की जान इतनी सस्ती थी कि कुछ लाख रुपये और एक नौकरी उनके जीवन का मूल्य चुकता कर सके? यह मुआवजा असली सवालों से बचने का तरीका प्रतीत होता है, जैसे – इस हादसे के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार कौन है? - चिरंजीवी योजना का उपयोग : सही या गलत?
इस मुआवजे में से 5 लाख रुपये चिरंजीवी योजना के अंतर्गत दिए जाएंगे। यह योजना स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसका उपयोग यहां मुआवजे के लिए किया जा रहा है। क्या यह उस योजना के मूल उद्देश्य का हनन नहीं है?
गहरी समस्याएं और संभावित समाधान
गुणवत्ता जांच का अभाव: पुलिया जैसी संरचनाओं के निर्माण में गुणवत्ता और निगरानी का अभाव साफ झलकता है। स्वतंत्र जांच समिति का गठन होना चाहिए, ताकि निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और लापरवाही पर लगाम लगाई जा सके।
जवाबदेही तय करना : ठेका कंपनी और यूडीए अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। सिर्फ मुआवजा देकर जिम्मेदारी से भागना अस्वीकार्य है।
हादसों का सबक : हर बार हादसा होने पर मुआवजे का खेल दोहराया जाता है। जरूरी है कि भविष्य में इस तरह के निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित हो।
राजनीति का कम हस्तक्षेप : नेताओं का हादसे के बाद मौके पर पहुंचना केवल जनता को शांत करने का तरीका बन गया है। इससे वास्तविक मुद्दे दब जाते हैं।
कॉमेंट : श्यामलाल की मौत न सिर्फ उनके परिवार का, बल्कि समाज का भी नुकसान है। यह घटना एक चेतावनी है कि हम जिन व्यवस्थाओं और अधिकारियों पर भरोसा करते हैं, वे अपनी जिम्मेदारियां निभाने में असफल हो रहे हैं। मुआवजा और नौकरी केवल तात्कालिक राहत है, लेकिन जब तक ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित नहीं किया जाएगा और व्यवस्थागत सुधार नहीं होंगे, श्यामलाल जैसे और भी लोग इस लापरवाही की बलि चढ़ते रहेंगे।
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