वह जो प्रेम का पैग़ाम बनकर आया
88 वर्षीय पोप फ्रांसिस—कैथोलिक चर्च का वह नाम जिसने दुनियाभर में करुणा, दया और शांति की भाषा को नया आयाम दिया—अब इतिहास की शांति में समा गए हैं। सोमवार सुबह उनका निधन वेटिकन स्थित कासा सांता मार्टा में हुआ, जिससे वैश्विक कैथोलिक समुदाय ही नहीं, समूची मानवता ने एक करुणाशील मार्गदर्शक को खो दिया।
उनके पार्थिव शरीर को देखने के लिए हजारों लोग सेंट पीटर्स बेसिलिका पहुंचे, बेसिलिका को पूरी रात खुला रखना पड़ा। लाखों श्रद्धालुओं की मौन आंखें, माला थामे वह शांत चेहरा, और एक साधारण लकड़ी का ताबूत—यह सब कुछ उस अध्याय का प्रतीक था, जिसे पोप फ्रांसिस ने खुद लिखा और अब आत्मीयता से बंद कर दिया।
1. एक अलौकिक विदाई : बेसिलिका की भीड़ और मौन प्रार्थनाएं
वेटिकन द्वारा बुधवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 90,000 से अधिक श्रद्धालु पोप फ्रांसिस को अंतिम बार देखने पहुंचे। सेंट पीटर्स बेसिलिका, जिसे सामान्यतः रात को बंद कर दिया जाता है, बुधवार को सुबह 5:30 बजे तक खुला रखा गया, ताकि एक भी चाहने वाला उनकी अंतिम झलक से वंचित न रह जाए। यह दृश्य महज़ एक धार्मिक रस्म न होकर, प्रेम, आदर और श्रद्धा की अंतर्राष्ट्रीय अभिव्यक्ति बन गया।
श्रद्धालु धूप में खड़े थे, कतारों में थे, लेकिन चेहरे पर कोई शिकन नहीं, बस एक विनम्र निवेदन—”हमें उन्हें एक बार देख लेने दो।”
2. अंतिम क्षण: मृत्यु का वह क्षण जब सब कुछ थम गया
डॉ. सर्जियो अल्फिएरी, जो रोम के जेमेली अस्पताल में कार्यरत हैं, सोमवार सुबह 5:30 बजे वेटिकन पहुंचे थे। उन्होंने बताया, “जब मैं उनके कमरे में पहुंचा, उनकी आंखें खुली थीं, लेकिन वे प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे। वे कोमा में चले गए थे।” अल्फिएरी ने बताया कि जब उन्होंने पोप का नाम पुकारा, तो कोई उत्तर नहीं मिला। बस मौन था—शायद वह मौन जो एक संत का मौन होता है।
डॉक्टर ने आगे कहा कि शनिवार को पोप उनसे मिले थे और पूरी तरह स्वस्थ दिखाई दे रहे थे। लेकिन मृत्यु एक पूर्वनियत सच्चाई होती है, और यह सच्चाई उस सुबह आई—शांत, लेकिन निर्णायक।
3. एक अधूरी रस्म: जो दिल में रह गई
डॉ. अल्फिएरी ने इटली के समाचार पत्र ला रिपब्लिका को बताया कि पोप फ्रांसिस ने अंतिम बार उन्हें अफसोस के भाव में कहा: “इस बार मैं कैदियों के पैर नहीं धो सका।” यह वही रस्म थी जिसे फ्रांसिस हर साल पवित्र गुरुवार को करते थे—मसीह की तरह कैदियों, शरणार्थियों, और समाज के हाशिए पर जी रहे लोगों के पैर धोना।
यह शब्द उनके पूरे पोपसी की आत्मा को बयान करते हैं। उनकी सोच में सबसे पहले ‘गरीब’ थे। वे कहते थे—“गरीबों को परमेश्वर के दिल में खास स्थान प्राप्त है।”
4. साधारणता की मिसाल: ताबूत, वस्त्र और परंपरा का त्याग
पोप फ्रांसिस का ताबूत किसी भव्य मंच पर नहीं रखा गया, जैसा कि अतीत में उनके पूर्ववर्तियों के साथ होता रहा है। यह खुद फ्रांसिस की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार साधारण हो, उनका ताबूत लकड़ी का हो, वस्त्र सामान्य हो, और उनके हाथ में बस एक माला हो।
उनके खुले ताबूत पर लाल कपड़ा रखा गया, और दो स्विस गार्ड निगरानी में थे। उन्होंने अंतिम संस्कार की परंपराओं को सरल बनाया, यह जताते हुए कि मृत्यु में भी विनम्रता और समानता होनी चाहिए।
5. अंतिम यात्रा और दफ़न की नई परंपरा
शनिवार को सेंट पीटर्स स्क्वायर में अंतिम संस्कार आयोजित होगा, जिसमें 50 राष्ट्राध्यक्ष और 10 सम्राट शिरकत करेंगे। अंतिम यात्रा सेंट पीटर्स से सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका तक जाएगी—एक मार्ग जो इतिहास में दर्ज होगा।
इस दफ़न स्थल का चयन भी फ्रांसिस ने स्वयं किया। यह स्थान, जहां पहले केवल एक कैंडलस्टैंड रखा जाता था, अब उस संत का विश्राम स्थल बनेगा, जिनके नाम की पहचान ही “विनम्रता” रही। बस एक शिलालेख होगा: “Franciscus”।
6. विनम्रता की प्रतीक एक ज़िन्दगी
पोप फ्रांसिस के जीवन को समझना हो तो बस कुछ दृश्य ही काफी हैं:
लेसबोस में प्रवासी बच्चे से हाथ मिलाते हुए,
अफ्रीकी शरणार्थियों के बीच भोजन करते हुए,
कैदियों के पैर धोते हुए,
या फिर LGBTQ+ समुदाय को अपनत्व देते हुए।
उन्होंने हर उस ‘बाहर’ खड़े व्यक्ति को ‘भीतर’ लाने की कोशिश की जिसे दुनिया ने दरकिनार किया था। वे दरअसल ‘ब्रिज बिल्डर’ थे, एक पुल जो धर्मों, जातियों, वर्गों और सीमाओं को जोड़ता था।
7. अगला अध्याय: उत्तराधिकारी कौन?
बुधवार की शाम 103 कार्डिनल्स की बैठक हुई जिसमें नौ दिवसीय शोक की प्रक्रिया को मंजूरी दी गई। इसके बाद एक गुप्त कॉन्क्लेव (गुप्त मतदान प्रक्रिया) द्वारा नया पोप चुना जाएगा। 5 मई से पहले यह प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है।
अभी कोई स्पष्ट दावेदार नहीं है, लेकिन फिलीपींस के कार्डिनल लुइस एंटोनियो टैगले और वेटिकन के राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन प्रमुख नामों में माने जा रहे हैं।
8. जनता की आवाज़ और मीडिया की भूमिका
इतालवी मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम को अत्यंत सम्मान और संवेदना के साथ कवर किया। कोरिएरे डेला सेरा, ला स्टाम्पा, और ला रिपब्लिका ने पोप फ्रांसिस को “पोंतेफिसे डेला मिज़ेरिकोरडिया” यानी “दया के पोप” की संज्ञा दी।
सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आई—नेताओं से लेकर आम नागरिकों तक, सभी ने एकजुट होकर यह स्वीकारा कि वे केवल एक धार्मिक नेता नहीं, एक मानवतावादी शक्तिशाली आवाज़ थे।
9. फ्रांसिस के विचार: विश्व को जो उन्होंने दिया
“संसार को दीवारें नहीं, पुल चाहिए।”
“धर्म वह है जो प्रेम सिखाए, डर नहीं।”
“गरीबी किसी की पहचान नहीं, हमारी असफलता है।”
“हम सब एक ही नाव में हैं—ईश्वर का प्यार सबके लिए समान है।”
इन विचारों ने वेटिकन की सीमाओं से बाहर जाकर दुनिया के हर हिस्से में गूंज मचाई।
10. अंतिम नम्रता की ओर एक यात्रा
पोप फ्रांसिस का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं है। यह उस विचारधारा की विदाई है जो दुनिया को नर्म बनाती थी, जो सत्ता में भी सेवा देखती थी, और जो चमत्कार नहीं बल्कि बदलाव की बात करती थी।
उनके अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे लाखों लोगों की मौन आंखें और झुकी हुई गर्दनें इस बात की गवाही हैं कि यद्यपि उनका शरीर अब शांत है, परंतु उनके विचार, उनका प्रेम और उनका दया भाव अब इस सदी के मानवतावादी इतिहास का स्थायी हिस्सा बन चुके हैं।
उनकी समाधि पर लिखा गया “Franciscus” केवल एक नाम नहीं, बल्कि वह संदेश है—जो समय से परे है।
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