दुबई। भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा रोमांच का दूसरा नाम माना जाता है। दर्शक महीनों पहले से टिकट खरीद लेते हैं, टीवी चैनल इस दिन की टीआरपी के लिए तैयारी करने लगते हैं और खिलाड़ियों से लेकर फैंस तक पर एक खास जुनून दिखाई देता है। लेकिन दुबई में रविवार को हुए एशिया कप के इस हाई-वोल्टेज मुकाबले में न तो रोमांच देखने को मिला और न ही वह पारंपरिक दोस्ताना माहौल, जिसकी झलक अक्सर मैदान पर दिखती रही है।
भारत ने पाकिस्तान को सात विकेट से मात जरूर दी, मगर इस जीत की चमक भी पहलगाम हमले की छाया में फीकी सी पड़ गई। मैच के दौरान और उसके बाद खिलाड़ियों के हावभाव ने साफ़ कर दिया कि इस बार सब कुछ पहले जैसा नहीं है।
जब न दिल मिले, न हाथ
मैदान पर भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी आमने-सामने थे, लेकिन न तो उनके चेहरों पर पुरानी गर्मजोशी थी और न ही उनके बीच संवाद का कोई प्रयास।
टॉस जीतने पर भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने पाकिस्तानी कप्तान सलमान अली आगा को बधाई तक नहीं दी।
मैच खत्म होने के बाद भी दोनों टीमों के खिलाड़ियों ने हाथ मिलाने की परंपरा निभाने से परहेज़ किया।
यहां तक कि जीत का विजयी शॉट लगाने के बाद सूर्यकुमार यादव सीधे शिवम दुबे के साथ ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ गए, बिना पाकिस्तानी खिलाड़ियों की तरफ़ देखे।
दूसरी ओर पाकिस्तान की टीम भी चुप रही—ना कोई पहल और ना ही खेल भावना की झलक।
कप्तान का संदेश और चुप्पी
मैच के बाद सूर्यकुमार यादव ने पहलगाम हमले का ज़िक्र किया और कहा,
“हम पहलगाम हमले के पीड़ितों और हमारी सेना के साथ खड़े हैं। यह जीत भारतीय सेना को समर्पित है।”
दूसरी तरफ़ पाकिस्तानी कप्तान सलमान अली आगा ने प्रेज़ेंटेशन सेरेमनी में इंटरव्यू देने से भी इनकार कर दिया।
दर्शकों का ठंडा उत्साह
भारत-पाकिस्तान मैच का मतलब आमतौर पर होता है—भरे हुए स्टेडियम, हज़ारों दर्शकों की गूँज और कैमरे में कैद होते उत्साही फैंस। लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई थी।
कई सीटें खाली पड़ी रहीं।
मैच से पहले सोशल मीडिया पर बॉयकॉट अभियान भी चला।
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने बीसीसीआई के पाकिस्तान से खेलने के फ़ैसले पर सवाल उठाए।
ये सब उस उत्साह से बिल्कुल अलग था, जिसकी उम्मीद भारत-पाक क्रिकेट मुकाबलों से की जाती रही है।
पहले जैसे रिश्ते क्यों नहीं रहे?
क्रिकेट के इतिहास में भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच कई ऐसे पल रहे हैं, जब राजनीतिक तनाव को खेल ने पीछे छोड़ दिया।
2023 वर्ल्ड कप में रोहित शर्मा और बाबर आज़म हंसी-मज़ाक करते दिखे।
जसप्रीत बुमराह के पिता बनने पर शाहीन अफ़रीदी ने उन्हें गिफ्ट दिया और दोनों गले मिले।
विराट कोहली ने 2022 में हारिस रऊफ़ को अपनी जर्सी दी थी, जिसकी खूब चर्चा हुई।
2021 में हार के बावजूद विराट कोहली ने मोहम्मद रिज़वान को गले लगाकर खेल भावना की मिसाल पेश की थी।
लेकिन इस बार माहौल अलग था। खिलाड़ियों ने नज़रें तक नहीं मिलाईं।
खेल या कूटनीति का आईना?
भारत और पाकिस्तान के बीच हर मैच महज़ क्रिकेट तक सीमित नहीं होता। यह दोनों देशों के रिश्तों और जनता की भावनाओं का आईना भी होता है। पहलगाम हमले ने इस रिश्ते पर एक गहरी खाई खींच दी है, और रविवार का मुकाबला उसी खाई का प्रतिबिंब था।
जहां कभी क्रिकेट ने दोस्ती और मेलजोल का संदेश दिया था, वहीं इस बार उसने दूरी और तनाव की तस्वीर खींच दी।
भारत की जीत, खिलाड़ियों का ठंडापन, दर्शकों की बेरुख़ी और कप्तान का सेना को समर्पण—इन सबने यह साफ़ कर दिया कि भारत-पाकिस्तान क्रिकेट अब सिर्फ खेल नहीं रह गया है। यह रिश्तों का वह आईना बन चुका है जिसमें दोस्ती से ज़्यादा तनाव और भरोसे से ज़्यादा दूरी नज़र आती है।
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