अध्याय 1 : अंधेरे में साजिश
रात के 10 बजे थे। उदयपुर शहर की सड़कें सन्नाटे में डूबी थीं, लेकिन एटीएस यूनिट और सुखेर थाने की टीम के लिए यह रात बाकी रातों से अलग थी। एक सूचना ने पुलिस बल को अलर्ट कर दिया था—मध्यप्रदेश से आए कुछ संदिग्ध हथियार तस्करों की गतिविधियां बढ़ रही थीं। इनका मकसद शहर में अवैध हथियारों का जखीरा पहुंचाना था।
जिला पुलिस अधीक्षक योगेश गोयल के निर्देश पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक महावीर सिंह राणावत ने अपनी टीम को हरकत में ला दिया। उन्हें पता था कि यह कोई आम मामला नहीं था। हथियार तस्करों का नेटवर्क इंटरस्टेट था और इनमें से कुछ पहले भी कानून की पकड़ से बच चुके थे।
अध्याय 2 : सुराग का पीछा
सूचना देने वाले मोहम्मद सलीम, एटीएस यूनिट के एक कुशल सिपाही, ने बताया कि संदिग्ध व्यक्तियों की स्कूटी पर शहर में आवाजाही देखी गई है। इस खबर से पूरी टीम सतर्क हो गई। हिमांशु सिंह, थानाधिकारी सुखेर, ने तुरंत नाकाबंदी की योजना बनाई।
सुखेर रोड पर पुलिस ने स्कूटी सवार एक युवक को रोक लिया। पहले तो वह पुलिस को झांसा देने की कोशिश करने लगा, लेकिन जब उसकी स्कूटी की तलाशी ली गई, तो सच्चाई सामने आ गई। डिक्की में छिपी थीं 5 पिस्टल, 6 मैगजीन और 8 जिंदा कारतूस। युवक ने अपना नाम तोसीफ खान बताया और कबूल किया कि उसके पास और हथियार हैं।
अध्याय 3 : दूसरे शिकारी का शिकार
तोसीफ की जानकारी पर पुलिस टीम भैरवगढ़ रोड के एक ढाबे पर पहुंची। यहां संदिग्ध युवक ऐजाज खां पुलिस को देख भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन टीम की सतर्कता ने उसे दबोच लिया। उसके थैले की तलाशी लेने पर 4 पिस्टल, 11 मैगजीन और 5 जिंदा कारतूस मिले।
दोनों तस्करों को हिरासत में ले लिया गया। उनके पास से बरामद हुए कुल 9 पिस्टल, 13 जिंदा राउंड और 8 खाली मैगजीन यह साबित करने के लिए काफी थे कि ये लोग कितने खतरनाक थे।
अध्याय 4 : साजिश की गहराई
पूछताछ के दौरान तोसीफ और ऐजाज ने कुबूल किया कि वे लंबे समय से इस कारोबार में हैं और पहले भी उदयपुर में हथियारों की खेप पहुंचा चुके हैं। उन्होंने कई और नामों का खुलासा किया, जिससे पुलिस की जांच और तेज हो गई।
यह ऑपरेशन पुलिस की एक बड़ी कामयाबी थी, लेकिन यह महज शुरुआत थी। एटीएस और जिला पुलिस की टीम को अब पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करना था।
अध्याय 5 : गुमनाम हीरो
इस ऑपरेशन में मोहम्मद सलीम की भूमिका खास थी। उनके द्वारा दी गई सूचना से ही यह कार्रवाई संभव हो पाई। टीम के अन्य सदस्य जैसे हिमांशु सिंह, सुनील बिश्नोई, भानु प्रताप, और दानिश खान ने बेहतरीन तालमेल के साथ इस मिशन को अंजाम दिया।
समाप्ति
यह कहानी यह दिखाती है कि कैसे पुलिस और एटीएस के प्रयासों से एक बड़े अपराध को रोका गया। लेकिन हर बरामद हथियार एक और अनसुलझे सवाल की तरफ इशारा करता है—इस अंधेरे नेटवर्क की जड़ें कितनी गहरी हैं? जवाब ढूंढने की यात्रा अभी बाकी है।
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