स्मृति शेष — नारायणजी शर्मा : एक गुरु, जिनसे संबंध बस पढ़ाई तक सीमित नहीं थे

फोटो : कमल कुमावत

सैयद हबीब, उदयपुर

बात केवल स्कूल की नहीं है, न ही किसी विषय की—ये उस रिश्‍ते की बात है, जो एक शिक्षक और समाज के बीच किसी अलिखित अनुबंध की तरह होता है। उदयपुर के आलोक स्कूल में यह अनुबंध एक जीवंत अनुभव था, और उसका नाम था—नारायणजी शर्मा।

वे केवल गुरु नहीं थे। वे समय के ऐसे साक्षी थे, जिन्होंने अपने विद्यार्थियों के जीवन में केवल पाठ नहीं पढ़ाए, उन्होंने मूल्य गढ़े, दृष्टिकोण तराशे और आत्मा में राष्ट्र का बीज बोया। उनके बारे में यह कहना कि वे जनसंघ के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद भानुकुमार शास्त्री के भाई थे, शायद परिचय के औपचारिक दस्तावेज़ में दर्ज होगा। लेकिन वे स्वयं में एक संस्था थे—बिना किसी ईंट-गारे की।

उनकी छवि ऐसी थी जैसे गर्मियों की दोपहरी में बरगद की छांव। जहाँ ज्ञान, अनुशासन और आत्मीयता साथ बैठते थे। वे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की तरह शिक्षक थे—जहाँ हर सवाल का जवाब था, और हर उत्तर में भविष्य की झलक।

नारायणजी की अंतिम यात्रा में सिर्फ वो लोग नहीं आए जो उनके छात्र रहे थे, बल्कि वे भी आए जिन्होंने उनका नाम भर सुना था। शायद यही एक सच्चे गुरु की सबसे बड़ी परीक्षा है—वो शरीर से कितना गया, और स्मृति में कितना रह गया।

84 वर्ष की उम्र में उनके जीवन की आख़िरी पंक्ति लिखी गई। लेकिन ये अंत नहीं, एक अध्याय की पूर्णता थी। वे केवल आलोक स्कूल के नहीं, उदयपुर के शैक्षणिक चेतना के स्तम्भ थे। उन्होंने कोटपुतली कॉलेज में पढ़ाया, फिर राजकीय सेवा छोड़ विद्या निकेतन में साधारण शिक्षक बन जाना चुना। यह ‘साधारण’ नहीं था—यह एक घोषणा थी कि शिक्षा केवल नौकरी नहीं, साधना है।

संघ के तृतीय वर्ष के शिक्षित स्वयंसेवक, विचारधारा के प्रति अडिग, स्पष्टवक्ता और निष्ठावान। नारायणजी उन विरलों में थे, जो अपने विचारों को जीवन के अंतिम क्षण तक जीते हैं—बिना समझौता किए, बिना थके।

उनकी अंतिम यात्रा में जो जनसैलाब उमड़ा, उसमें केवल आंसू नहीं थे, स्मृतियों की माला भी थी। आलोक संस्थान के विद्यार्थियों ने उन्हें ‘गुरुमंत्र’ से विदा दी, वेद मंत्रों से उनका शरीर अग्नि को समर्पित हुआ, लेकिन उनकी उपस्थिति… वह अग्नि में नहीं, उस शून्य में घुली है, जो हर विद्यार्थी के भीतर उठे ‘क्यों’ का जवाब बन जाती है।

जय प्रकाश चौकसे अक्सर कहा करते थे, “कुछ लोग मृत्यु के बाद भी रोज़ सुबह हमारे पास बैठते हैं—एक खामोश संवाद में।”
नारायणजी शर्मा अब उसी संवाद का हिस्सा हैं।

उनके जाने से जो रिक्तता बनी है, वह शब्दों से नहीं भरी जा सकती। लेकिन हर वह छात्र, जो सही या गलत की लड़ाई में नैतिकता के साथ खड़ा होगा, हर वह शिक्षक जो वेतन से पहले सेवा को चुनेगा—नारायणजी वहाँ जीवित रहेंगे।

उन्हें प्रणाम।

आज उनकी अंतिम यात्रा शिवाजी नगर आवास से आरंभ होकर अशोक नगर स्थित श्मशानघाट पहूची, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी अंतिम यात्रा में विधायक ताराचंद जैन, ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा, पूर्व विधायक धर्मनारायण जोशी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक हेमेंद्र श्रीमाली, बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रवींद्र श्रीमाली, उनके पड़ोसी और बीजेपी नेता अनिल सिंघल, युवा नेता जतिन श्रीमाली, भाजपा जिलाध्यक्ष गजपालसिंह राठोड़, चन्द्रगुप्त सिंह चौहान, पूर्व उपमहापौर लोकेश द्विवेदी, पारस सिंघवी, भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रमोद सामर, डॉ. विजय विप्लवी, दिनेश माली, जगत नागदा, नानालाल बया, पूर्व उपजिला प्रमुख लक्ष्मीनारायण पंड्या, आलोक संस्थान के डॉ. प्रदीप कुमावत, पूर्व पार्षद, एडवोकेट दिनेश गुप्ता, दिग्विजय श्रीमाली, कृष्णकांत कुमावत, साहित्यकार श्यामसुंदर भट्ट, कांग्रेस नेता अरुण टांक, वरिष्ठ अधिवक्ता मांगीलाल जैन, ऋषभ जैन, रमण सूद सहित विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी उपस्थित थे।

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