उदयपुर। साल 2003 में जब गुलाबचंद कटारिया बड़ी सादड़ी छोड़कर उदयपुर से चुनाव लड़ने आए, तब भी उनका कद किसी सियासी किले से कम नहीं था। चुनाव लड़वाने वाली उनकी टीम को किलेदार कहा गया जो उनके ईद-गिर्द दिखाई देती थी। 2008 में भी सियासत के इस किले को किलेदारों ने उस वक्त विधानसभा पहुंचाया, जब तमाम राजस्थान के सियासी किले चुनाव हारकर राजनीति में ध्वस्त हो गए, लेकिन कटारिया का किला खड़ा रहा। इसका पूरा श्रेय किलेदारों को ही दिया गया।
2008 के चुनावों के बाद जब जिलाध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए तो किलेदारों ने किसी एक किलेदार को ही जिलाध्यक्ष बनाने का दावा रखा, लेकिन सियासत की पटरी पर किलेदारों का विरोधी गुट पटरी पर आ खड़ा हुआ। यहीं से कटारिया रूपी किले और किलेदारों के संबंधों में दरार पैदा हो गई। मतभेद के साथ मनभेद भी हो गए। जब कोशिशें शुरू हुई तो किलेदार भी दो गुटों में बंट गए। इन किलेदारों ने कटारिया को चुनाव तो जिताए, लेकिन वे राजनीति में कटारिया का कुछ नहीं बिगाड़ सके।
बहरहाल एक दशक के बाद जब कटारिया राज्यपाल बन गए और उदयपुर शहर सीट पर बीजेपी का कब्जा बरकरार रखने के लिए पुराने किलेदार यानी ताराचंद जैन को प्रत्याशी बनाया गया। ऐसे में किलेदारों में नई ऊर्जा संचरण हुआ है। अब तमाम किलेदार पार्टी के दौरों में दिखाई दे रहे हैं।
लंबे समय तक दूर रहने के कारण किलेदारों का पब्लिक कनेक्ट उतना नहीं रहा, लेकिन दौरों में शामिल इन किलेदारों के चेहरे और उनके आसपास लगने वाली भीड़ इस बात को बयां कर रही है कि आने वाले समय में उदयपुर बीजेपी में बड़ा बदलाव देखने को मिलने वाला है।
About Author
You may also like
-
तृतीय मुस्लिम विद्यार्थी छात्रवृत्ति वितरण समारोह : आवेदन आमंत्रित
-
देश-दुनिया की प्रमुख खबरें : चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा की
-
कोरोनाकाल में उदयपुर के सीएमएचओ रहे डॉ. दिनेश खराड़ी को मिला प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा सम्मान
-
चौथी नेशनल दिव्यांग T-20 क्रिकेट चैंपियनशिप का पुरज़ोर आगाज़ : प्लेयर ऑफ़ द सीरीज़ को इनाम में मिलेगी कार
-
देश-विदेश के प्रमुख समाचार : महिला T 20 वर्ल्डकप में न्यूजीलैंड सेमीफाइनल में पहुंचा