पारस की स्वाभिमानी रैली और स्वाभिमान के मायनों पर बहस, रैली में पुलिस से उलझे समर्थक

फोटो जर्नलिस्ट : कमल कुमावत

उदयपुर। उदयपुर नगर निगम के डिप्टी मेयर पारस सिंघवी और उनके समर्थक टिकट नहीं मिलने से जबरदस्त नाराज हैं। विरोध में पहले गुलाबचंद कटारिया को खूब भला बुरा कहा गया। सोमवार को स्वाभिमानी रैली निकाली गई। सोशल मीडिया और चौराहों की चर्चा में यही मुद्दा सबसे गरमागरम चल रहा है। माहौल को ठंडा करने के लिए मौसम भी बदला है। फिलहाल भाजपा में सब तरफ सियासत गरम है।


स्वाभिमानी रैली में पारस सिंघवी के बीजेपी के तमाम समर्थकों ने किनारा कर लिया। रैली में इक्का-दुक्का व्यक्ति को छोड़कर पार्टी का कोई पदाधिकारी या जाना पहचाना चेहरा दिखाई नहीं दिया। रैली में लोगों की संख्या अच्छी थी, जिसमें सिंघवी के वार्ड के लोग, पड़ोसी, चैम्बर ऑफ कॉमर्स के व्यापारी, कुछ समाज के लोग शामिल थे।


टाउनहॉल से रवाना हुई रैली में महिलाएं भी शामिल हुईं। जगह जगह पारस सिंघवी का लोगों ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। रैली में शामिल माइक और सिस्टम को पुलिस ने हटवा दिया। बड़ा बाजार में पुलिस और समर्थकों के बीच हलकी झड़प हुई। यह सबकुछ रैली में दिखाई दिया। जगदीश मंदिर के दर्शन करने के बाद सिंघवी ने कहा कि वे पार्टी के साथ हैं। सिर्फ ताराचंद जैन को टिकट दिए जाने का विरोध है। पार्टी और नेताओं को इस पर एक बार विचार करना चाहिए। आगे जो भी मुझे निर्णय करना होगा, समर्थकों व शहर के लोगों से बातचीत के बाद करूंगा।


बहरहाल रैली से अलग जो बातचीत हो रही है, उसमें पारस सिंघवी के निर्णय से पार्टी के लोग सहमति नहीं जता रहे हैं। उनका मानना है कि ताराचंद जैन भी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। पार्टी के लिए समर्पित रहे हैं। अगर सिंघवी का विरोध सही है तो अन्य दावेदार क्यों नहीं बोल रहे हैं? स्वाभिमान रैली पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जो लोग स्वाभिमान की बात कर रहे हैं, वे लोग पहले जिनकों को गाली देते थे, फिर उनके साथ हो गए, फिर उनके विरोधी हो गए।

शहर ऐसे कई नेता हैं जिन्होंने अपने स्वाभिमान को ठेस लगने पर पार्टी को और अपने नेता को छोड़ दिया और पीछे मुड़कर नहीं देखा। स्वाभिमान रैली में शामिल ज्यादातर लोग जिस गर्मजोशी के साथ् शामिल हुए, वही लोग दूर जाकर अलग बात करते हुए देखे गए हैं। सिंघवी की तरफदारी करने और समर्थन करने वाले पार्टी लोग इस रैली में शामिल नहीं हुए। इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। बहरहाल लोकतंत्र में विरोध करना नागरिक का अधिकार है।

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