उदयपुर। उदयपुर का महालक्ष्मी मंदिर, जो समृद्धि, ऐश्वर्य और आस्था का अद्वितीय केंद्र है, इस वर्ष 31 अक्टूबर 2024 को दीपावली पर्व को भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाने की तैयारी कर रहा है। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष भगवती लाल दशाेत्त्र ने इस विशेष अवसर पर बताया कि इस वर्ष प्रदोष (प्रदोष: एक विशेष समय जो संध्या और रात्रि का मिलन है) में अमावस्या का संयोग विशेष महत्व रखता है। इसलिए, दीपावली का यह पर्व 31 अक्टूबर को मनाने का निर्णय लिया गया है।
ट्रस्ट के अध्यक्ष भगवतीलाल ने बताया, “उदयपुर का महालक्ष्मी मंदिर लगभग साढ़े 400 वर्षों पुराना है। यहाँ हर वर्ष धनतेरस से दीपावली तक चार से पाँच लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जो इस मंदिर की दिव्यता (दिव्यता: दिव्य गुण) और ऐतिहासिकता का प्रमाण है।” इस महापर्व की तैयारियों में श्रीमाली जाती संपत्ति व्यवस्था ट्रस्ट के सभी ट्रस्टी और पदाधिकारी पिछले एक महीने से सक्रिय हैं, ताकि प्रत्येक तत्व को भव्यता प्रदान की जा सके।
ट्रस्टी जतिन श्रीमाली ने बताया- दीपावली की तैयारी के तहत, 29 अक्टूबर 2024 को धनतेरस के दिन प्रातः 4:00 बजे से दर्शन प्रारंभ होंगे और यह रात्रि 12:00 बजे तक जारी रहेंगे। इस दिन मातेश्वरी महालक्ष्मीजी को चांदी के वेश और सोने-चांदी के आभूषणों से सजाया जाएगा, जो शुद्धता (शुद्धता: पवित्रता) और भक्ति का प्रतीक है। यह प्रथा सदियों से चली आ रही है, जिसमें भक्तजन देवी के प्रति अपने स्नेह और श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं।
30 अक्टूबर को रूप चौदस (रूप चौदस: एक विशेष दिन जब देवी को विशेष रूप में सजाया जाता है) के दिन भी महालक्ष्मीजी को तीन से चार बार वेश धारण कराकर विशेष श्रृंगार किया जाएगा। यह परंपरा भक्तों के मन में आस्था (आस्था: विश्वास) और प्रेम का संचार करेगी।
31 अक्टूबर को दीपावली के दिन, महालक्ष्मी जी को ₹500,000 का सोने और चांदी के वर्क का वेश धारण कराया जाएगा, जो इस पर्व के दौरान भक्तों की समृद्धि और सुख की कामना का प्रतीक है। मंदिर में आकर्षक विद्युत सज्जा (विद्युत सज्जा: रोशनी की सजावट) और फूलों की भव्य सजावट भी की जाएगी, जो वातावरण को दिव्य और उल्लासपूर्ण बना देगी।
इस पर्व का समापन 1 नवंबर 2024 को अन्नकूट (अन्नकूट: विभिन्न खाद्य वस्तुओं का भव्य भोग) की आरती के साथ होगा, जो शाम 5:00 बजे होगी। इसके बाद अन्नकूट दर्शन का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भक्त एकत्रित होकर माता जी का आभार व्यक्त करेंगे।
ट्रस्टी जतिन श्रीमाली ने बताया-सनातन धर्म की परंपराओं में महालक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि का संचार करती हैं।दीवाली के दौरान महालक्ष्मी पूजन की परंपरा, भक्तों के लिए एक विशेष अवसर होती है। इस दिन, घरों को दीपों से सजाया जाता है और देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। हर एक दीया, हर एक फूल, और हर एक भोग में उनकी कृपा का आशीर्वाद छिपा होता है। जब हम देवी की प्रतिमा के समक्ष अपने हाथ जोड़ते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे उनकी दिव्यता हमारे चारों ओर एक सुखद आभा फैलाने लगी है।
इस दीपावली, महालक्ष्मी जी की कृपा से हर भक्त के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार हो, यही हमारी कामना है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को जीवित करेगा, बल्कि समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी फैलाएगा। महालक्ष्मी की आराधना का यह अवसर हम सभी के लिए आनंद और उत्सव का प्रतीक बनकर उभरेगा, जिससे हर कोई इस पर्व की खुशी में सम्मिलित हो सके।
इस प्रकार, महालक्ष्मी मंदिर की यह अद्भुत परंपरा, सदियों से चली आ रही है और हर बार यह भक्तों को अपने प्रेम और श्रद्धा से जोड़े रखती है।
आपको बता दें कि महालक्ष्मी का प्रकट होना स्वयं में एक अद्भुत घटना है। जब देवी लक्ष्मी ने समुद्र मंथन के दौरान प्रकट होकर भगवान विष्णु का हाथ थामा, तब उन्होंने यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति और सेवा के साथ, मानव जीवन में कभी कोई कमी नहीं होगी। जैसे ही भक्त सच्चे मन से देवी की आराधना करते हैं, उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है।
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