
उदयपुर | राजसी वैभव और राष्ट्रधर्म की चेतना सोमवार को उस वक्त एक साथ नज़र आई, जब विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेशजी और महाराणा प्रताप के वंशज, मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के बीच सिटी पैलेस में एक अहम शिष्टाचार भेंट हुई। ये मुलाकात सिर्फ परंपराओं का निर्वहन नहीं थी, बल्कि यह उस सांस्कृतिक व वैचारिक सेतु का प्रतीक बनी, जो हिंदुत्व की सोच और शौर्य परंपरा को जोड़ती है।
राजसी स्वागत और धर्मनिष्ठ संवाद
सिटी पैलेस की प्राचीन दीवारों के बीच जब विहिप अध्यक्ष पहुंचे, तो डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने मेवाड़ी रिवाजों के अनुसार उनका शाही स्वागत किया। चंदन-तिलक, पुष्पवर्षा और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने माहौल को ऐसा बना दिया, जैसे किसी धार्मिक-राजनीतिक गठबंधन का शंखनाद हो रहा हो।
जब याद आए ‘धर्माधिराज’ महाराणा भगवत सिंह
इस मुलाकात में इतिहास ने भी दस्तक दी। चर्चा उस दौर की हुई जब महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ ने 1969 में विश्व हिंदू परिषद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर एक शाही परंपरा को हिंदू राष्ट्रनिष्ठा से जोड़ दिया था। दिनेशजी और डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने माना कि मेवाड़ ने कभी तलवार से मातृभूमि की रक्षा की थी, आज विचारधारा से संस्कृति की रक्षा कर रहा है।
क्या यह सिर्फ भेंट थी या भविष्य की रणनीति?
हालांकि इसे ‘शिष्टाचार भेंट’ बताया गया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि विहिप और मेवाड़ राजपरिवार के इस संवाद का बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक असर देखने को मिल सकता है। एक तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सैद्धांतिक संगठन, तो दूसरी तरफ हिंदुत्व के प्रतीक महाराणा की वंश परंपरा – दोनों के मिलने से आने वाले समय में हिंदू समाज को दिशा देने वाले कई कार्यक्रमों की रूपरेखा तय हो सकती है।
समसामयिक मुद्दों पर भी हुई चर्चा
दोनों हस्तियों के बीच आधुनिक भारत में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थिति, शिक्षा में सनातन ज्ञान की भूमिका, और हिंदू समाज की समरसता जैसे विषयों पर भी गंभीर चर्चा हुई। ये साफ है कि दोनों सिर्फ अतीत की बातों में नहीं उलझे, बल्कि वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर भी विचार कर रहे थे।
सियासत में शाही ‘सॉफ्ट पॉवर’ की वापसी?
डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़, जो सामाजिक कार्यों से लेकर युवाओं के आदर्श बनने तक की भूमिका निभा रहे हैं, क्या अब धार्मिक-सांस्कृतिक सियासत में भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे? यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि आरएसएस और विहिप लगातार ऐसे ‘सॉफ्ट पॉवर’ चेहरों की तलाश में हैं, जो जनता के बीच प्रभावी हों लेकिन सीधे राजनीति में उतरने की ज़रूरत न हो।
यह मुलाकात सिर्फ एक शिष्टाचार नहीं, बल्कि संस्कृति, शौर्य और सियासत का ऐसा त्रिकोण है, जो आने वाले वर्षों में हिंदू समाज के पुनरुत्थान में भूमिका निभा सकता है। जब सिटी पैलेस की गलियों में धर्म और सत्ता की गूंज एकसाथ सुनाई देती है, तब इतिहास एक नई करवट लेता है — और यह मुलाकात उसी करवट की एक आहट हो सकती है।
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