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उदयपुर पुलिस, यूट्यूबर पत्रकार और स्वास्थ्य अधिकारी : क्या है असल कहानी?


उदयपुर में एक यूट्यूबर पत्रकार कपीश भल्ला द्वारा रिकॉर्ड किया गया नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी के इंटरव्यू के वीडियो का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। यह वीडियो स्वच्छ भारत अभियान और सफाई व्यवस्था पर अधिकारी के विचारों के साथ उनकी सड़क पर पान की पीक थूकने की हरकत को उजागर करता है। यह घटना कई सवाल खड़े करती है—न केवल पत्रकारिता की भूमिका पर, बल्कि सार्वजनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी और आचरण पर भी। हालांकि यूट्यूबर पत्रकार ने सिर्फ स्वास्थ्य अधिकारी से बातचीत की खबर चलाई थी, लेकिन कई अन्य पत्रकारों व अन्य लोगों ने पीक थूकने वाली वीडियो क्लिप को विशेष कॉमेंट के साथ वायरल किया है।

पहला पक्ष : पत्रकार कपीश भल्ला और उनकी छवि

कपीश भल्ला का नाम पहले भी विवादों में आ चुका है। हाल ही में, उन्हें ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार कर फर्जी पत्रकार करार दिया गया था। एक सरकारी स्कूल के कवरेज के दौरान प्रिंसिपल की शिकायत पर पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी की थी। यह मामला मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के नैतिक मानदंडों पर गंभीर बहस छेड़ता है।

यह समझने की जरूरत है कि क्या कपीश का काम सही पत्रकारिता का हिस्सा है या फिर इसे व्यक्तिगत लाभ के रूप में देखा जा सकता है? हालांकि, उनके पास पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है और वह स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी गिरफ्तारी ने उनकी छवि पर गहरा असर डाला। पुलिस द्वारा उन्हें फर्जी पत्रकार घोषित करने के मामले में वे अपनी लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं।

दूसरा पक्ष : स्वास्थ्य अधिकारी की लापरवाही

वीडियो में स्वास्थ्य अधिकारी का स्वच्छ भारत अभियान पर बोलते हुए पान की पीक थूकने का दृश्य इस अभियान की सफलता और उसकी निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या ऐसे अधिकारियों के भरोसे सरकार सफाई अभियान की उम्मीद कर सकती है? जनता का गुस्सा इस बात को लेकर जायज है कि जो व्यक्ति खुद स्वच्छता का पालन नहीं कर सकता, वह जनता को इस दिशा में प्रेरित कैसे करेगा?

यह घटना न केवल उस अधिकारी की व्यक्तिगत लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सरकारी सिस्टम में ऐसे आचरण पर कितनी लचर निगरानी है।

तीसरा पक्ष : सोशल मीडिया और वीडियो का वायरल होना

वीडियो के वायरल होने ने इस मुद्दे को जनता के बीच चर्चा का केंद्र बना दिया। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या किसी अधिकारी की इस तरह की निजी लापरवाही को बड़ा मुद्दा बनाना मीडिया का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए? या फिर इसे एक संतुलित रिपोर्टिंग के साथ प्रशासन तक पहुंचाया जाना चाहिए था? सोशल मीडिया पर क्लिप काटकर वायरल करना एक गंभीर समस्या बन चुका है। यह सही और जिम्मेदार पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

मुद्दा : कौन जिम्मेदार?

स्वास्थ्य अधिकारी : ऐसे संवेदनशील पद पर रहते हुए स्वच्छता अभियान को मजाक बनाना अस्वीकार्य है। अधिकारी पर कार्रवाई होनी चाहिए।

पत्रकारिता : यदि पत्रकार द्वारा ही इस तरह की क्लिप काटकर चलाई जाती है तो, यह उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करती है, जैसा कि कई पत्रकारों ने क्लिप काटकर इसको आगे बढ़ाया है।

प्रशासन : अधिकारियों के आचरण पर निगरानी की कमी भी इस समस्या का बड़ा कारण है।

यह घटना एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा है। जहां एक तरफ सार्वजनिक अधिकारी अपने आचरण से अपने विभाग की छवि धूमिल कर रहे हैं, वहीं पत्रकारिता भी अपनी नैतिकता और जिम्मेदारी पर सवालों के घेरे में है। जनता, प्रशासन और मीडिया—तीनों को मिलकर इस व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है।

आखिरकार, सवाल यह है: क्या हम व्यक्तिगत विवादों और गलतियों को वायरल करके समाधान निकाल सकते हैं, या हमें एक ठोस और ईमानदार व्यवस्था की जरूरत है?

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