एक युग की पुनर्परिभाषा
31 मई 2025 का दिन भारतीय इतिहास में एक गौरवशाली क्षण के रूप में दर्ज हुआ, जब भोपाल के जंबूरी मैदान में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार के संयुक्त प्रयास से लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जन्म जयंती अत्यंत भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं उपस्थित हुए और एक प्रेरणादायी भाषण के माध्यम से न केवल अहिल्याबाई के जीवन को श्रद्धांजलि दी, बल्कि आधुनिक भारत में नारी शक्ति, सुशासन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की महत्ता को रेखांकित किया।
यह आयोजन न केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व के सम्मान में था, बल्कि भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक विकास की उस धारा को भी पुनः उजागर करने का अवसर था, जिसे लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने जीवन और शासन के माध्यम से परिभाषित किया।
प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषण: शासन के मूल्यों की पुनर्पुष्टि
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मां भारती और भारत की महिलाओं से आशीर्वाद का आह्वान कर यह स्पष्ट कर दिया कि यह समारोह केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा है। उन्होंने कहा:
“लोकमाता अहिल्याबाई राष्ट्र निर्माण में हमारी नारी शक्ति के अमूल्य योगदान का प्रतीक हैं।”
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि देवी अहिल्याबाई का शासन एक ऐसा उदाहरण है, जिसमें ‘जन सेवा’ को ‘राजधर्म’ माना गया। उन्होंने अहिल्याबाई के इस कथन को उद्धृत करते हुए कहा:
“सच्चा शासन लोगों की सेवा करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में निहित है।”
प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, वैज्ञानिक योगदान, और सामाजिक नेतृत्व पर बल देते हुए कहा:
“आज बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिक हमारे सभी प्रमुख अंतरिक्ष अभियानों में भाग ले रही हैं।”
उन्होंने स्वयं सहायता समूहों (SHGs) से जुड़ी 10 करोड़ महिलाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ये महिलाएं विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं और सरकार उन्हें आय सृजन के नए साधनों से जोड़ रही है।
लोकमाता अहिल्याबाई: शासन की आदर्श परंपरा
लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का जीवन भारतीय इतिहास में नारी नेतृत्व, धार्मिक सहिष्णुता और जनकल्याण की त्रिवेणी के रूप में जाना जाता है। उन्होंने एक ऐसे समय में शासन किया जब समाज में महिलाओं की भागीदारी को सीमित माना जाता था, लेकिन उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में सत्ता को जनसेवा का माध्यम बनाया।
उनका शासनकाल न केवल प्रशासनिक दृष्टि से अनुकरणीय था, बल्कि उसमें सामाजिक सुधार, धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक संरक्षण का समावेश भी था। उन्होंने देशभर के कई तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण करवाया और समाज के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाईं।
प्रदर्शनी: जीवन और दृष्टिकोण का सांस्कृतिक प्रतिबिंब
समारोह के एक प्रमुख आकर्षण के रूप में लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर आधारित एक विस्तृत प्रदर्शनी प्रस्तुत की गई, जिसे चार प्रमुख भागों में विभाजित किया गया था:
1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
इस खंड में अहिल्याबाई की बाल्यावस्था, उनके भावी ससुर मल्हारराव होल्कर से मुलाकात, तथा प्रशासन, लेखा, कूटनीति, और युद्ध-कला जैसे विषयों में उनकी शिक्षा का उल्लेख था।
2. सुशासन और आध्यात्मिक नेतृत्व
यह खंड उनके शासन के दर्शन पर केंद्रित था, जिसमें राज्य को भगवान शिव को समर्पित करने और जनता को ‘परिवार’ मानकर शासन करने की भावना प्रदर्शित की गई।
3. बुनियादी ढांचा और धार्मिक पुनर्निर्माण
इस खंड में काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, बद्रीनाथ और रामेश्वरम जैसे तीर्थ स्थलों के जीर्णोद्धार कार्यों को चित्रित किया गया था।
4. महेश्वरी वस्त्र उद्योग
यह हिस्सा माहेश्वरी बुनाई पर केंद्रित था, जिसमें महेश्वर किले और आसपास के मंदिरों की शिल्पकला से प्रेरित कपड़ों के डिज़ाइन प्रदर्शित किए गए।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर छठी पीढ़ी की बुनकर हेमलता जी से भी संवाद किया और महेश्वरी साड़ियों की समृद्ध परंपरा को सराहा।
डाक टिकट और स्मारक सिक्का: अमर विरासत की प्रतीक
इस आयोजन में देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती की स्मृति में एक विशेष डाक टिकट और एक स्मारक सिक्का भी जारी किया गया। ये प्रतीक न केवल ऐतिहासिक सम्मान के प्रतीक हैं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति के शाश्वत योगदान को राष्ट्रीय चेतना में स्थायी रूप से अंकित करने का माध्यम भी हैं।
फिल्म: “संस्कृति की संरक्षिका, शासन की शिल्पकार”
संस्कृति मंत्रालय के स्मरणोत्सव प्रभाग द्वारा तैयार की गई लघु फिल्म “अहिल्याबाई होल्कर: संस्कृति की संरक्षिका, शासन की शिल्पकार” ने कार्यक्रम में विशेष जीवंतता लाई। इस फिल्म में देवी अहिल्याबाई के जीवन के संघर्ष, उनके राजनैतिक निर्णय, धार्मिक सौहार्द्र और आमजन के प्रति उनकी करुणा को सिनेमाई तरीके से प्रस्तुत किया गया।
फिल्म ने यह भी दर्शाया कि किस प्रकार एक महिला ने सामाजिक धारणाओं को चुनौती देते हुए पूरे मराठा साम्राज्य के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र को न केवल कुशलता से शासित किया, बल्कि उसे एक आदर्श राज्य का स्वरूप प्रदान किया।
प्रधानमंत्री द्वारा विकास परियोजनाओं का उद्घाटन
समारोह के अवसर पर प्रधानमंत्री ने भोपाल सहित मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों में अनेक विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। इनमें प्रमुख थे:
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इंदौर मेट्रो रेल का उद्घाटन
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दतिया और सतना से नई हवाई सेवाएं
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शहरी बुनियादी ढांचे और विरासत संरक्षण योजनाएं
प्रधानमंत्री ने कहा:
“इन परियोजनाओं से मध्य प्रदेश में जन सुविधाएं बढ़ेंगी, विकास में तेजी आएगी और रोजगार के अनेक नए अवसर पैदा होंगे।”
नारी रचनात्मकता को सम्मान: जयमती कश्यप को सम्मान
प्रधानमंत्री ने जनजातीय, लोक और पारंपरिक कलाओं में उत्कृष्ट योगदान देने वाली कलाकार डॉ. जयमती कश्यप को “देवी अहिल्याबाई राष्ट्रीय पुरस्कार” से सम्मानित किया। यह पुरस्कार भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और महिला कलाकारों के योगदान को मान्यता देने का प्रतीक है।
आयोजन का राष्ट्रीय महत्त्व
यह आयोजन केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति को श्रद्धांजलि नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक था—भारत की नारी शक्ति को नेतृत्व की धुरी बनाना, सांस्कृतिक पुनरुत्थान को प्राथमिकता देना, और शासन को सेवा का पर्याय बनाना।
भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और प्रशासनिक नवाचारों में लोकमाता अहिल्याबाई की प्रेरणा को पुनर्प्रकाशित करने की यह पहल अत्यंत आवश्यक और समयोचित है। प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि उनकी सरकार ‘नागरिक देवो भव’ की भावना से कार्य कर रही है और महिलाओं को नेतृत्व में प्राथमिकता देकर विकास को समावेशी बना रही है।
इतिहास से भविष्य की ओर
लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर हुआ यह आयोजन एक सदी के दृष्टिकोण को जोड़ने का प्रयास था। इसमें अतीत की उस उज्ज्वल लौ को वर्तमान और भविष्य के रास्ते का दीपक बनाने की कोशिश की गई जो न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणास्रोत है।
लोकमाता की जीवन गाथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी वह उनके समय में थी। उनका जीवन यह सिखाता है कि सत्ता का वास्तविक मूल्य सेवा में है, और नारी शक्ति न केवल परिवार, बल्कि राज्य और राष्ट्र के संचालन में भी केंद्रीय भूमिका निभा सकती है।
अहिल्याबाई ने अपने युग को गढ़ा, और आज भारत उन्हें याद करके अपने भविष्य को सशक्त कर रहा है।
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