उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर आचार्य भगवंत हितवर्धन सुरिश्वर महाराज संघ के सान्निध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। वहीं साध्वी कल्याण दर्शनाश्रीजी 90वीं ओली का पारणा सम्पन्न हुआ।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि मंगलवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर महाराज ने कहा कि सामायिक समता की साधना है जो भी साधक अतीत काल में मोक्ष में गये हैं। वर्तमान काल में जा रहे है, गये है और भविष्य में जाएंगे यह सब सामायिक का प्रभाव है। सामायिक साधना में प्रवेश करने वाला साधक दो प्रतिज्ञाएं करता है। एक मैं समता भाव रखूंगा और दूसरा पाप मुक्त क्रियाएं न तो करूँगा, न करवाऊंगा। इन दोनों प्रतिज्ञाओं में सामायिक का संपूर्ण भाव समाविष्ट हो जाता है। दोनों में आत्म-विशुद्धि का लक्ष्य होता है।
उन्होने कहां कि जैसे पुष्पों का सा गंध है, सुगंध है, दूध का सार घृत है, तिल का सार तेल है। ऐस ही द्वादशांगी रूप जिनवाणी का सार सामायिक है। सामायिक आध्यात्मिक साधना है। सामायिक में मन बाहर भटकता हो, फिर भी साधक को घबराना नहीं चाहिए। वचन से मौन और काया को स्थिर रखते हुए मन को बार-बार राम- स्वभाव में प्रतिष्ठित करने का प्रयास करने चाहिए रहना चाहिए।
सामायिक में प्रत्य शुद्धि, क्षेत्र शुद्ध काल शुद्धि एवं भाव शुद्धि की परम आवश्यकता रहती है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चन्द्रसिंह सुराणा, श्याम हरकावत, तेज सिंह नागोरी, चन्द्र सिंह बोल्या, प्रकाश नागौरी सहित कई श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
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