सैयद हबीब, उदयपुर। डॉ. मनमोहन सिंह, भारतीय राजनीति के शिखर पर अपनी अद्वितीय छवि और शांत नेतृत्व के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उनके जीवन और कार्यों को यदि ऐतिहासिक फिल्मों की तरह देखा जाए, तो यह एक ऐसे किरदार की कहानी है, जिसने बाधाओं और चुनौतियों के बीच अपनी दृढ़ता और समझदारी से न केवल अपनी भूमिका निभाई बल्कि इतिहास रच दिया।
उनकी कहानी वैसी ही लगती है जैसे फिल्म ‘लगान’ का भुवन, जिसने मुश्किल परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखा और अपनी सामूहिक नेतृत्व क्षमता से सबको साथ लेकर चला। 1991 के आर्थिक संकट के दौरान, जब भारत पर वित्तीय आपदा का साया मंडरा रहा था, डॉ. सिंह ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। उनके द्वारा लाए गए सुधारों ने देश को एक नई दिशा दी। वह एक सच्चे ‘नायक’ थे, जिनके पास न केवल समस्याओं को समझने का गहरा दृष्टिकोण था, बल्कि उन्हें हल करने का साहस भी।
उनका राजनीतिक सफर वैसा ही प्रतीत होता है, जैसे ‘गांधी’ फिल्म में महात्मा गांधी का संघर्ष। डॉ. सिंह ने हमेशा अपने काम और मूल्यों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के, संयम और समझदारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभाया। चाहे 2008 का परमाणु समझौता हो या भारत के वैश्विक मंच पर बढ़ते प्रभाव को आकार देना, डॉ. सिंह ने हर बार साबित किया कि शांत और विवेकपूर्ण नेतृत्व भी इतिहास रच सकता है।
डॉ. सिंह का जीवन ‘नेहरू: द मेकिंग ऑफ इंडिया’ की तरह था, जहां विकास, आर्थिक प्रगति, और राष्ट्र के निर्माण पर जोर दिया गया। उन्होंने भारत को दुनिया के सामने एक नई पहचान दिलाई।
उनकी यादें एक ऐसी ऐतिहासिक फिल्म की तरह हैं, जो हमें सिखाती है कि कड़ी मेहनत, ईमानदारी और ज्ञान के साथ हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह का स्मृति शेष भारतीय राजनीति में एक ऐसा अध्याय है, जिसे हर पीढ़ी गर्व के साथ याद करेगी। उनका जीवन न केवल प्रेरणा है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि सच्चा नेता वही होता है, जो अपनी विरासत में नायकत्व की छवि छोड़ जाए।
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